Friday, 29 May 2020

Baji Rao Pashwa

80 साल की उम्र के राजपूत  राजा छत्रसाल जब मुगलो से घिर गए,और बाकी राजपूत राजाओं से कोई उम्मीद ना थी तो उम्मीद का एक मात्र सूर्य था " ब्राह्मण  बाजीराव बलाड़ पेशवा"
एक राजपुत ने एक ब्राह्मण को खत लिखा:-

जो गति ग्राह गजेंद्र की सो गति भई है आज!
बाजी जात बुन्देल की बाजी राखो लाज!

( जिस प्रकार गजेंद्र हाथी मगरमच्छ के जबड़ो में फंस गया था ठीक वही स्थिति मेरी है, आज बुन्देल हार रहा है , बाजी हमारी  लाज रखो) ये खत पढ़ते ही बाजीराव खाना छोड़कर उठे उनकी पत्नी ने पूछा खाना तो खा लीजिए तब बाजीराव ने कहा 

अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक #क्षत्रिय_राजपूत ने #मदद मांगी और #ब्राह्मण भोजन करता रहा "-

ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर #बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा #छत्रसाल की मदद को बिजली की गति से दौड़ पड़े ।  दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके आते ही

ब्राह्मण योद्धा बाजीराव बुंदेलखंड आया और फंगस खान की गर्दन काट कर जब राजपूत राजा छत्रसाल के सामने गए तो छत्रसाल से बाजीराब बलाड़ को गले लगाते हुए कहा:-

जग उपजे दो ब्राह्मण: परशु ओर बाजीराव।
एक डाहि राजपुतिया, एक डाहि तुरकाव।।

।। जय महाकाल ।।

Brahmins Kings

MAHARAJA TEKARI GOPAL SHARAN SINGH (BRAHMAN BHUMIHAR MAHARAJA )
  When it comes to Motor Racing or Formula 1, you probably recall Narain Karthikeyan. Wait a moment, did you ever think of an Indian participating in motor race way back in the earlier 20th Century? Even before India got independence and Formula 1 became the new Cool for we Indians, an Indian Prince used to motor race and participate in Grand Prix races in Europe. Yes, an Indian Prince – Maharaja GOPAL SHARAN NARAIN SINGH – Sounds Cool!

GOPAL SHARAN NARAIN SINGH (born 1883) was the king of Tekari Raj also called as (Tekari Raj of 9 Annas). He received the charge of the estate from the Court of Wards in 1904. Tekari, at present is a block located westwards from district headquarters of Gaya. Pre – Independence, Tekari Raj was a minor estate and Mr. Cotton Senior was the manager of the Estate by appointment of the Courts of Wards whereas Cotton Junior was the counsel of Mahant of Bodh Gaya.

Raja Gopal Sharan Singh 2
1883 – 1958
Gopal Sharan Singh studied at St. Georges School, Mussourie and by private British tutors, he received the charge of the estate from the Court of Wards in 1904. He also appointed his teacher Mr. M. Keith as first Manager of his Estate.

The Captain-Life
He was the first Indian prince to motor race in France and England and several other early Grand Prix races in Europe at the turn of the century. He was a noted game hunter of the time and he also volunteered for active service as Lieutenant at the break of World War I in 1914. He was special dispatch officer to Field Marshall Haig and active in the trenches in France while serving with the Corps Signal Company. He was also promoted to Captain during the war. He donated the Skidder Tank to England Government and later joined the Indian freedom movement as a member of the Indian National Congress.

Political Life
Gopal Sharan Singh contested elections under 1919 Govt of India Act and he defeated Maharajadhiraj Sir Rameshwar Singh of Darbhanga twice. He was elected as one of the 39 delegates in Bihar Rajya Regional Congress Conference at Patna; Bhagalpur in 1908. He was also elected a member of Indian National Congress in 25th conference held in 1912 at Bankipoore, Patna. The Swaraj Party of Motilal Nehru and C R Das was founded during the 37th All India Congress conference in 1922 at his residence White House in Gaya.

A dive into captain’s personal life
Maharaja Gopal Sharan Narain Singh was born to Maharani Radheshwari Kuer and Ambika Saran Singh.

1st Marriage: Maharajah Kumar Gopal Saran Narain Singh married Rajkumari of Tamkuhi in 1902. Maharani (name unknown) was the sister of Raja Indrajit Pratap Shahi of Tamkuhi Raj, Gorakhpur. Unfortunately she died in 1903 because of Tuberculosis.

2nd Marriage: On 2nd May 1909 in Lucknow, he got married to Maharani Sita Devi (also known as Elsie Thompson). She was born (1883) in Sydney, Australia, died in 1967 in Australia. She was the daughter of James Thompson. She received a perpetual annuity starting in May 1913 of Rs 36,000 P.A. 37 villages of Aurangabad Circle, from the Maharaja.

3rd Marriage: In 1912, He married Kumar Rani Sayeeda Khatoon.

Maharaja Gopal transferred the Aurangabad Circle of Tikari Raj to Kumar Rani Sayeeda Khatoon and her sons where she formed the ‘Kumar Rani Aurangabad Estate’, which had an annual income of Rs 1,200,000. She left Maharaja Gopal Sharan Singh and went Pakistan. She married a citizen in Pakistan and settled there where she died in 1972 in Karachi, Pakistan.

4th Marriage: In 1919, he married Maharani Vidyawati Kuer, daughter of Kumar Chote Narain Singh.

 
 

Maharaja’s friends and associates :

He had a fast friend Pt Deoki Nandan Bajpai, Circle Officer, Jehanabad (later he became the Circle Officer cum Assistant Manager of Tekari Raj).

Mr. JG Wakefield was at the post of manager till 1934. Maharaja  donated 11 villages near Bodh Gaya to his manager J.G. Wakefield in lieu of income/salary. After JG Wakefield, Mr. Willey Hathaway became the manager of his Estate. Bachchu Narayan Singh, Singhaul, Bela, Gaya was also the manager of his Estate. Harihar Nath was assistant manager of his state from 1912 to 1918. Maharaj also wrote an application to the Commissioner of Income Tax about his property worth to two crores.His legal representatives were eminent lawyer Sir Sultan Ahmad of Allahabad, P.R. Das, Hassan Imam of Patna. Sidheshwar Prasad Sinha and Rai Hari Prasad Lall, Deoki Nandan Bajpai were circle officers of his Estate. Dr. K.S.R. Swami, Gaya, Dr. T K Banerjee, Patna, Dr. Sheo Narayan Bajpai, Tekari were his family doctors.

Maharaja GOPAL SHARAN NARAIN SINGH took his last breathe on 17th February 1958 at Kharkhari/ Zarlahi Kothi. It is located in front of the residence of senior SP, Gaya.

The article has been contributed by Rajneesh Bajpai (Bajpai Bhavan, Tekari) of Tekari and to know more about Tekari and Tekari Estate, please follow the page टिकारी राज managed by him.

If you would also like to share something about the history of Tekari and Gaya, please let us know.

Paliwal Brahmins

महावीर श्री दुर्गाशंकर पालीवाल जी की कहानी

जब राजस्थान का एक ब्राह्मण बारूद से भरी ट्रेन लेकर पाकिस्‍तान में घुस गया था, लड़ाकू विमान भी नहीं बिगाड़ पाए थे कुछ।

"पाकिस्‍तान की सेना ने मुझ पर एक हजार पौंड का बेम फेंक दिया. इस बम से निकलती हुई चिंगारियों से मेरा हाथ और मुंह भी जल गया था लेकिन उसकी परवाह किये बिना मैंने अपनी कोहनियों से ट्रेन चलाना जारी रखा।"

भारत और पाकिस्‍ताान के बीच पिछले काफी दिनों से तनातनी का माहौल है. पुलवामा हमले से लेकर भारतीय सेना द्धारा की एयर स्‍ट्राइक. उसके बाद से लगातार दोनों देशों के बीच हालात बेहद खराब हैं. ऐसी स्‍थितियों में एक शख्‍स हैं, जो दुश्‍मन देश की सरजमीं पर जाकर उनसे दो-दो हाथ करने की ताकत रखते हैं।

उनकी उम्र भले ही 83 वर्ष की हो लेकिन उनके हौसलो में कोई कमी नहीं है. उनका कहना है कि अगर उनको मौका मिले तो वे आज भी दुश्‍मनों को मात दे सकते हैं।

हम बात कर रहे हैं वीर चक्र से सम्‍मानित उदयपुर, राजस्थान निवासी रेलवे पायलट दुर्गाशंकर पालीवाल की, जिन्‍होंने जिन्होंने 1971 के पाकिस्तानी हवाई हमले में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उस वक्‍त जब समय भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सीमा में करीब 30 किलोमीटर तक कब्ज़ा कर लिया था और जब सेना का असलहा खत्‍म होने को आया था तब बारूद और असलहा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दुर्गाशंकर पालीवाल को दी गई थी। उन्‍होंने भारतीय सेना को सीमा के उस पार जाकर असलहा और बारूद पहुचानें का काम किया था. कैसे किया था उन्‍होंने ये सबकुछ आइए जानते हैं उनकी ही जुबानी… )

ये 1971 के युद्ध की बात है. भारत और पाक के बीच ये जंग 3 दिसंबर को शुरू हुई थी और पूरे 13 दिन तक चली थी. इसी दौरान 11 दिसंबर को भारतीन सेना को बारूद और हथियारों की जरूरत थी. दुश्‍मन देश के भीतर घुसकर सेना को ये चीजें उपलब्‍ध करवानी थी. ऐसे में 11 दिसंबर को ये टास्‍क मुझे दिया गया था.ऑफिसर ने बताया कि बारूद और हथियार से भरी ट्रेन की लेकर मुझे दुश्‍मन देश पाकिस्‍तान में जाना है और वहां हथियारों की सप्‍लाई करके अपने देश लौटना था।

इस काम के लिए मुझे सिर्फ 12 घंटे दिए गए थे. मैं निकल पड़ा. 25 बोगी वाली ट्रेन लेकर पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करना था. यहां मुझे बाड़मेर के समीप मुनाबाव रेलवे स्टेशन होते हुए पाकिस्तान के खोखरापार और फिर परचे की बेरी रेलवे स्टेशन तक पहुंचना था. ये सब कुछ इतना आसान नहीं था, क्‍योंकि हालात उस वक्‍त बेहद खराब थे. कभी भी कुछ भी हो सकता था. कहीं से भी कोई गोलीबारी या बमबारी हो सकती थी लेकिन मैं डरा नहीं, क्‍योंकि सोच लिया था अब तो चाहें कुछ हो जाए. मुझे पीछे नहीं मुड़ना है. बस इसलिए आगे बढ़ता रहा. अब तक रात के 12 बज चुके थे. मैं पाकिस्‍तान के बॉर्डर के आगे खोखरापर पहुंच गया था. यहां मुझे ऑफिसर ने 27 किलोमीटर और परचे की बेरी स्‍टेशन पहुंचने के बारे में बताया।

मैं दोबारा निकल पड़ा. इस दौरान पाकिस्तानी सीमा में खोखरापर से कुछ ही दूरी पर एक विमान दिखा जो की मेरी ट्रेन पर नज़र रख रहा था. ज़रा सी देरी में वो विमान फिर से पाकिस्तान की ओर लौट गया. लेकिन वह विमान खतरा भांप चुका था और सुबह 6 बजे छह मिराज विमान मौके पर पहुंच कर बमबारी करने लगे. इन विमानों ने मेरी ट्रेन को घेर लिया था लेकिन मैं एक पल के लिए भी घबराया नहीं. मैंने अपनी ट्रेन की रफ़्तार बढ़ा दी और सिंध हैदराबाद की ओर जाने लगा. पाकिस्तानी विमानों ने कई बम गिराए लेकिन गनीमत ये रही कि ट्रेन को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाए।

इसी तरह से विमानों में भी बम खत्म हो गए थे और रीलोड करने के लिए वे सिंध हैदराबाद की ओर उड़ान भरते हुए निकल गए. इस समय मैंने रिवर्स में ट्रेन को 25 किलोमीटर तक खींच ले गया और परचे की बेरी पहुंचकर अपने बटालियन को भी घटना की सूचना दे दी. बटालियन ने करीब 15 मिनट में पूरी ट्रेन का माल खाली कर दिया और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल रिलोड कर दी।

वहां से लौटते हुए फिर से पाकिस्तानी विमानों ने मेरी ट्रेन का एक बार फिर पीछा किया और खोखरापर से 5 किलोमीटर से पहले रेल लाइन पर एक हज़ार पौंड का बेम फेंक दिया. इस बम से निकलती हुई चिंगारियों से मेरा हाथ और मुंह भी जल गया था लेकिन उसकी परवाह किये बिना मैं बस अपनी कोहनियों से ट्रेन चलाना जारी रखा।

एक वक्‍त के बाद हाथ में बन्दूक लेकर मैं ट्रेन से निकल गया और और करीब 2 किलोमीटर आगे उन्होंने भारतीय वायुसेना का हेलीकॉप्टर को इशारा कर उतरवाया और अधिकारी को सूचना दे दी.अब तक मेरा टॉस्‍क पूरा हो चुका था, लेकिन हां मेरी तबियत खराब हो चुकी थी. मुझे फौरन हॉस्‍पटिल में एडमिट कराया गया. मगर सारी तकलीफ उस वक्‍त खत्‍म हो गई, जब मुझे राष्‍ट्रपति से सम्‍मानित होने के बारे में सूचना मिली. आखिरकार 30 अक्टूबर 1972 को वो दिन आया और राष्ट्रपति वीवी गिरी ने वीरचक्र से सम्मानित किया।

Brahmin warriors ( Bhumihar Tyagi )


1857 महासमर मे  ब्राह्मणों का योगदान! 



मध्य और दक्षिण बिहार, और आज के झारखंड-उड़ीसा तक, के इलाकों मे 1857 के महासमर मे भूमिहार-ब्राहमणो की भूमिका अद्भुत रही। 

नवादा-नालांदा-राजगीर-बिहारशरीफ 

14-15 अगस्त को भागलपुर मे 5वी घुड़सवार पलटन ने विद्रोह किया था। इस पलटन का बड़ा हिस्सा नालांदा और नवादा की तरफ बढ़ा। 24 अगस्त तक नवादा और नालंदा का बड़ा हिस्सा (हिलसा) क्रांतिकारियों के कब्ज़े मे आ गया। नवादा और फतेहपुर थानो के अंग्रेज़ अफसर और अंग्रेज़ परस्त पुलिस के अधिकारी मार डाले गये। नवादा जेल मे बंद कैदियों को रिहा किया गया। गरीब जनता ने कचहरी पर हमला कर कंपनी राज के कागज़ात जला दिये। हिलसा मे क्रूर महाजनों, सूदखोरों और ज़मींदारों को सज़ा दी गयी। अंग्रेज़ो के कारिंदों को मौत के घाट उतार दिये गये। 

नालंदा-नवादा की आग जल्द ही बिहारशरीफ, राजगीर, अरवल, जहानाबाद, अमरथू और गया पहुंच गयी। अक्टूबर मे देवघर स्थित 32वी पैदल सेना ने विद्रोह कर दिया। फिर क्या था--ऐसी लड़ाई हुई की अंग्रेज़ और उनके सामंत-महाजन पिट्ठू दुहाई भूल गये। 

1857 मे शुरू हुई जंग 1867--यानी दस साल--तक चली।

नाना सिंह और हैदर अली खान 

नालंदा, नवादा खास और राजगीर मे अंग्रेज़ विरोधी जंग का नेतृत्व हैदर अली खान और भूमिहार ब्राहमण नाना सिंह ने किया। मध्य दक्षिण बिहार मे कई जगह भूमिहार ब्राहमण 'सिंह' टाईटिल इस्तेमाल करते थे। इसी वजह से गदर के रिकार्डों मे अंग्रेज़ो ने यहां के भूमिहारों को 'राजपूत' लिख दिया है। पर नाना सिंह जैसे अनेक ज़मींदार, भूमिहार ब्राहमण थे। सब से खास बात है कि इस इलाके मे 1857 विद्रोह ने सामंतवाद विरोधी रूप ले लिया। भूमिहारों के नेतृत्व मे बड़ी संख्या मे आज की पिछड़ी-दलित जनता संहर्ष मे उतरे। 

नाना सिंह अमौन के थे।  अगस्त-सितंबर मे उनको पकड़ने की अंग्रेज़ो ने अथक प्रयास किया। पर नाना सिंह चकमा दे कर निकल गये। हैदर अली खान के साथ अहमद अली, मेंहदी अली, हुसैन बख्श खान, गुलाम अली खान, नक्कू सिंह (भूमिहार), फतेह अली खान जैसे दिग्गज योद्धा थे। 

हैदर अली खान और नक्कू सिंह (भूमिहार) की पूरी टीम अंतूपुर मे इकट्ठा हुई। कंपनी-अंग्रेज़ी राज के अंत की आधिकारिक घोषणा हुई। बहादुर शाह ज़फर को मुल्क का बादशाह और कुंवर सिंह को बिहार का राजा स्वीकृत किया गया। 

नवादा मे नामदर खान और वारसलीगंज मे कामगार खान के वंशजो ने भी विद्रोही बिगुल बजा दिया। 

8 सितंबर को भागलपुर से और एक भारतीय फौज नवादा पहुंची। उधर पटना से चली अंग्रेज़ फौज भी नवादा पहुंची। नवादा के प्रमुख विद्रोही भागलपुर की फौज के साथ मिल गये। नवादा कचहरी फूंक दी गयी। स्थानीय जनता ने अंग्रेज़ी राज के सभी चिन्ह मिटा दिये। 8 से 30 सितंबर तक विद्रोहियों का नवादा पर कब्ज़ा रहा।  30 सितंबर को अंग्रेज़ो और भारतीय फौजों मे भंयकर युद्ध हुआ। दलाल महाजनों और ज़मीदारों ने अंग्रेज़ो का साथ दिया। पर निचली जातियों के लड़ाके, अंग्रेज़ परस्त ज़मीदारों का विरोध कर, भारतीय फौज से जा मिले। 

नवादा की जंग इतनी भीषण थी कि गोला-बारूद मे अव्वल होने के बावजूद, अंग्रेज़ो आगे नही बढ़ सके। उनको भारी क्षति उठानी पड़ी। भारतीय विद्रोही गया की तरफ बढ़ गये। 

नवादा मे मुस्लिम क्रांतीकारी ज़्यादातर घुड़सवार थे।  वहीं भूमिहार नेतृत्व मे दलित-पिछड़े पैदल योद्धा एक-आध मैचलोक छोड़, तलवारों और भालों ही से लैस थे। इनकी समूह मे इकट्ठा हो कर हमला करने की बहादुराना नीति की अंग्रेज़ो ने भी तारीफ की। 

नादिर अली खान, जो रांची-झारखंड मे तैनात रामगढ़ बटालियन के नेता थे, और जो उस छेत्र मे 1857 बगावत के बड़े सूत्रधार बने, बिहारशरीफ के समीप चरकौसा गांव के निवासी थे। ये इलाका GT रोड के नज़दीक था। GT रोड से अंग्रेज़ कलकत्ता से बिहार/UP  के बाग़ी इलाकों तक रसद और कुमुक पहुंचाते थे। GT रोड अंग्रेज़ो के लिये नर्व-सेंटर थी। बिहारशरीफ के क्रांतीकारियों ने GT रोड पर कई दिनो तक अपना कब्ज़ा बनाये रखा। 

मांझी नादिरगंज मे दलित रजवारों की संख्या अच्छी-खासी थी। एक बड़ा क्रांतीकारी जत्था यहां से राजगीर की पहाड़ियों मे घुस गया। 

राजगीर विद्रोह का नेतृत्व हैदर अली खान करते रहे। उनकी गिरफ्तारी के बाद, 9 अक्टूबर को अंग्रेज़ो ने उन्हे  फांसी दे दी। राजगीर के मुहम्मद बख्श, ओराम पांडे (भूमिहार), दाऊद अली, सुधो धनिया, भुट्टो दुसाध, सोहराई रजवार, जंगली कहार, शेख जिन्ना, सुखन पांडे (भूमिहार), देगन रजवार और डुमरी जोगी को 14 साल की सज़ा हुई। हिदायत अली, जुम्मन, फरजंद अली और पीर खान की संपत्तियां जब्त हुईं। अंग्रेज़ परस्त कारिंदो को बड़े-बड़े पुरुस्कार दिये गये। 

गया-वज़ीरगंज की लड़ाई 

इस छेत्र मे जनवरी, 1858 से प्रारम्भ वज़ीरगंज का विद्रोह खास अहमियत रखता है। यहां भूमिहार लड़ाके खुशियाल सिंह, कौशल सिंह और राजपूत यमुना सिंह ने नेतृत्व संभाला। 

वज़ीरगंज की लड़ाई बिहार मे भूमिहार-राजपूत एकता की मिसाल बनी। यह इलाका आज गया जिले की एक विधान सभा है। वज़ीरगंज विद्रोह मे 15 से अधिक गांव शामिल थे। कौशल सिंह का गांव खबरा, क्रांतीकारी गतिविधियों का केन्द्र था। 

वज़ीरगंज महीनो आज़ाद रहा। यहां शहीदों और कालापानी भेजे जाने वालों की लिस्ट लंबी है: रणमस्त खान और नत्थे खान, ग्राम-समसपुर, थाना-बेलागंज; मनबोध दुसाध, ग्राम-ऐरू, थाना-वज़ीरगंज; मोती दुसाध, सहाय सिंह एवं चरण सिंह, ग्राम- बभंडी, थाना-वज़ीरगंज; बुल्लक सिंह, केवल सिंह, ग्राम-कढ़ौनी, थाना-वज़ीरगंज; बुधन सिंह एवं मोती सिंह, ग्राम-दखिनगांव, थाना-वज़ीरगंज; दुखहरण सिंह, ग्राम-सिंधौरा, थाना-वज़ीरगंज; चुलहन सिंह, ग्राम-प्रतापपुर, थाना-अतरी; अमर सिंह, ग्राम-दशरथपुर, थाना-वज़ीरगंज; मोती साव, ग्राम-दखिनगांव, थाना- वज़ीरगंज; जयनाथ सिंह, ग्राम-बेला, थाना-वज़ीरगंज; मिलन सिंह एवं नेउर सिंह, ग्राम-सिंगठिया, थाना-वज़ीरगंज; जिया सिंह, ग्राम-चमौर, थाना-वज़ीरगंज; जेहल सिंह, ग्राम-नवडीहा, थाना-वज़ीरगंज। इसके अलावा अन्य 40 की संपत्ती जप्त हुई। 

ग्राम पुरा, थाना-वज़ीरगंज के महावीर सिंह, जुमाली सिंह, रामदेव सिंह, विद्याधर पांडे, चमन पांडे और कोलहना को पीपल के पेड़ पर फांसी हुई। 

राजगीर की पहाड़ियों मे 1859 तक युद्ध चलता रहा। कई सिक्ख बटालियन के लोग भी विद्रोहियों से आ मिले! लोदवा और सौतार मे अंग्रेज़ परस्त कारिंदो और सामंतो को पीछे हटना पड़ा। अंग्रेज़ दरोगा 48 घंटे मे 90 मील तक मार्च करते रहे। पर विद्रोही, लखावर, किंजर और अरवल से होते हुए, सोन नदी के पास महाबलीपुर पहुंच गये! इस दौर के विद्रोहियों मे लक्ष्मण सिंह (राजपूत), भरत सिंह (राजपूत), लाल बर्न सिंह (भूमिहार), करमन सिंह (भूमीहार), हुलास सिंह (भूमिहार), जुम्मन खान और मेघू ग्वाला प्रमुख रहे। 

नवादा-अरवल-गया-जहानाबाद और दलित आंदोलन

नवादा-अरवल-गया-राजगीर मे 1857 ही वो घड़ी थी, जब दलित आंदोलन लिखित रूप मे दर्ज हुआ। इसके पहले, दलित विद्रोह का कोई रिकार्ड उपलब्ध नही है। इस छेत्र के दलित रजवार अंग्रेज़ो और सामंतो, दोनो के खिलाफ लड़े। उच्च और OBC जाति के विद्रोहियों ने दलितों का पूर्ण समर्थन किया। 

19 जून, 1857 को मौजा ओसदुरा, परगना गोह के सामंत इनामुल अली के घर रजवार लड़ाकों ने धावा बोला और 36 मन धान उठा ले गये। 5 अगस्त, 1857 को 30 सवार (राजपूत) और 300 रजवारों के दल ने मौजा साकची, परगना बिहार के अमीर भोजू लाल वकील के यहां रेड डाल कर 2019 रू की संपत्ती क्रांतीकारी खजाने मे जमा करने हेतु
उठा ली। 6 अगस्त, 1857 को रजवार गुरिल्ला squad ने घोसरनवा के सामंत के ठेकेदार गणेश दत्त के घर हमला किया। बिहार थाने का अंग्रेज़ो के लिये काम कर रहा दरोगा जब दल-बल के साथ यहां पहुंचा, तो 1200 ग्रामीणों से उसकी भिड़ंत हुई। कई घंटो तक लड़ाई चली। सामंत के आदमी दरोगा के पक्ष मे उतरे, तो क्रांतीकारियों ने आधा दर्जन लठैतों को मार गिराया। 

मौजा सत्तवार और हुसैपुर के ज़मींदारों ने जवाहर और एटवा रजवार नाम के दो गुरिल्ला units के नेताओं का समर्थन किया। 

20 सितंबर, 1857 के दिन, जमादार रजवार के नेतृत्व मे रजवारों ने मौजा उर्सा के गया प्रसाद और ख्वाजा वज़ीर के यहां हमला किया। सकरी नदी के किनारे, खरगोबीघा, खुरारनाथ, पुसई मे भीषण संग्राम हुऐ। रजवार इलाकों ने देवघर की विद्रोही 32वी पैदल पलटन का पूरा समर्थन किया। लड़ाई हज़ारीबाग तक चली जहां खड़गडीहा ग्राम मे मुखो और झूमन रजवार के नेतृत्व मे बाबू राम रतन नागी और नंदेर के आदमी सांमतो से भिड़ गये। और हज़ारीबाग मे पहली बार भूमि वितरण को अंजाम दिया। 

28 सितंबर 1857 को दोना के सामंत नंदकिशोर सिंह ने जवाहर रजवार की हत्या की साज़िश रची। जवाहर रजवार के साथ जो 5 अन्य शहीद हुऐ, उनमे भूमिहार ब्राहमण केवल सिंह, समझू ग्वाला और कान्यकुब्ज ब्राहमण बंसी दिक्षित प्रमुख थे। बंसी दिक्षित 7वी पैदल सेना के सिपाही थे। बक्सर के रहने वाले थे। जिनको राजा कुंवर सिंह ने खास मध्य बिहार मे क्रांती की ज्वाला भड़काने भेजा था। 

एकतारा के सामंत टीप नारायण अलग से रजवारों पर हमला करते रहे। इसी छेत्र के सांमत गंगा प्रसाद ने भी गद्दारी की। 

भूमिहारों/रजवारों को 'देखते ही गोली मारो' का आदेश 

रजवार-विरोधी अभियान जल्द ही भूमिहार-विरोधी अभियान बन गया। अंग्रेज़ अफसर वर्सली ने रजवारों के गांव के गांव जला डाले। भूमिहारों को देखते ही गोली मारने का आदेश पारित हुआ। वर्सली ने माना कि, "और कोई चारा नही था। भूभिहार ब्राहमणो ने इस इलाके (मगध) को बसाया है--यहां के जंगल साफ कर, खेती योग्य बनाया। इनका छोटी जातियों मे प्रभाव है। मुसलमानो से इनके रिश्ते अच्छे हैं। यह हमारी सत्ता को चुनौती दे रहे हैं। यही काम सुल्तानपुर, फ़ैजाबाद और गोरखपुर मे सरयूपारी ब्राहमणो ने किया। सरयूपारियों ने  सुल्तानपुर-गोरखपुर बसाया। हमारी फौज मे भरती हुऐ। और हमारे खिलाफ विद्रोह कर दिया। कान्यकुब्ज ब्राहमणो तो और भी दोषी हैं। ये सबसे प्राचीन हैं। हमने इनपर भरोसा किया। बंगाल आर्मी की दिल्ली से पेशावर तक तैनात बड़ी-बड़ी रेजीमेंटो मे अवध और द्वाबा के कान्यकुब्जों का ही ज़ोर था। हमने इनपे सबसे अधिक विश्वास किया। और इन्होंने हमारे राज को धूल मे मिला दिया"। 

वर्सली ने मौजा ताजपुर और करनपुर जला कर राख कर दिया था। उसके जाने के बाद कैंपबल मध्य-बिहार आया। कैंपबल ने मुरई को आग के हवाले किया। जिसको पाया फांसी दे दी। फिर भी विद्रोह काबू मे नही आया। 24 मार्च 1858 को अपने सीनीयर अफसर को पत्र मे उसने माना कि "मै तीन महीने टेंट मे रह रहा हूं। रजवारों और भूमिहारों ने जीना हराम कर दिया है। कचहरी और मजिस्ट्रेट के बंगलो को जला दिया है। हम नई पुलिस चौकियां बनाते हैं और वे धवस्त कर देते हैं"। 

अंग्रेज़ो ने 4 छोटी कोठरियों मे सैंकड़ों कैदी ठूस दिये थे। कमरों के कोने मे मिट्टी पड़ी रहती, जिसमे कैदी पेशाब करते। पुआल भी नही पड़ा! इस भंयकर बदबू से कई कैदी बेहोश हो जाते। कई प्रतिष्ठित भूमिहार परिवारों के औरतें और बच्चों को अकथनीय यातना दी जाती। 

असाढ़ी गांव के रजवारों ने भूमिहारों और अपनी जाति पर हो रहे अत्याचार  का बदला लिया। नेहालुचक गांव के सांमतो पर हमला कर के! 

तब तक दिल्ली और लखनऊ दोनो गिर चुके थे। अप्रैल 1858 मे राजा कुंवर सिंह जगदीशपुर की अंतिम जंग जीत गये--पर वीरगति को प्राप्त हुऐ। नाना साहब पेशवा के नाम क्रांती आगे बढ़ रही थी। 

जून-जुलाई 1858 के बीच भूमिहारों-रजवारों और मुस्लिम लड़ाकों ने फिर तारतम्य बैठाया। अंग्रेज़ परस्त सामंतो पर फिर हमले तेज हुए। उत्तम दास की कचहरी पर हमला; पतरिहा के करामत अली की संपत्ती की लूट; भवानीबीघा, मोहनपुरवा, मौलानागंज, गोपालपुर, दौलतपुर, खुशियालबीघा मे लड़ाई--एक नया उबाल आ गया। रजवारो, भूमिहार, और कुछ कुर्मी, कुशवाहा तथा ग्वालों (यादव) के गांवो को जलाया गया। कैंपबल ने अपने एक पत्र मे साफ किया कि, "सिर्फ रजवारों को दोशी ठहराना ठीक नही है। इनके साथ बड़ी मात्रा मे राजपूत, भूमिहार तथा मुसलमान शामिल हैं"।

रजवार और अन्य क्रांतीकारीयों ने अंग्रेज़ो की नाक मे ऐसा दम किया कि ब्रिटिश प्रशासन मे आपसी विवाद पैदा हो गया। एटवा रजवार और कई कमांडर पुलिस की गिरफ्त मे आ ही नही रहे थे। गुरिल्ला दस्तों से निपटने के लिये 1863 मे 10 हज़ार की फौज मैदान मे उतारनी पड़ी! 

पश्चिम मे बसगोती और पूरब मे कौआकोल की ओर से घेराबंदी की गयी। सामंतो को हज़ारीबाग, दक्षिण की तरफ से हमला करना था। 

पर ये घेराबंदी फेल हो गयी। कई जगह क्रांतीकारियों के खिलाफ हिंदुस्तानी सिपाहियों ने हथियार चलाने से मना कर दिया। सौतार के सामंत फूल सिंह की सेना मे विद्रोह हो गया। एटवा रजवार फूल सिंह के एस्टेट का ही था। अंग्रेज़ो ने फूल सिंह को खिल्लत बख्शी थी। पर 1863 अभियान की असफलता के बाद, अंग्रेज़ फूल सिंह के 'दोहरे चरित्र' की बात करने लगे।

अवध और मगध

1867 तक मध्य बिहार-मगध के छेत्र मे अंग्रेज़-विरोधी/सामंतवाद विरोधी संहर्ष चलता रहा। अवध मे अंग्रेज़ो ने किसानो-ज़मीदारों की सारी ज़मीन जब्त कल ली। पर 1858 मे अंग्रेज़ो को घुटने टेक दिये--किसानो की जब्त ज़मीने लौटाईं--और पट्टीदारी व्यवस्था--जो सामंतवाद-विरोधी थी--बहाल की। 

अवध के बाद मगध ही मे अंग्रेज़ो को मुंह की खानी पड़ी। मगध-बिहार मे बंगाल की तर्ज पर, कुछ फेर-बदल के साथ, अंग्रेज़ो ने permanent settlement यानी यूरोपीय सामंतवाद लागू किया था। जहां अधिकतर किसान tenants थे। बंधुआ मज़दूरी और बेगार, कमियाटी प्रथायें चल निकली थी। 

मगध किसान विद्रोह और सामंतवाद विरोधी क्रांती 

अवध की तरह मगध की अपनी भाषा-संस्कृति रही है। मान-सम्मान का मनोवैज्ञानिक ढांचा और आत्म-सम्मान/राजनीतिक सत्ता का आर्थिक ढांचा सदियों से मौजूद रहा है। 

मगध किसान विद्रोह के बाद अंग्रेज़ो को अपने थोपे गये सामंतवाद मे सुधार लाना पड़ा। 1867 मे आये सुझावों के अनुसार: 
1. बंधुआ प्रथा खत्म होनी चाहिये। बाज़ार के दर पर मज़दूरी तय की जानी चाहिये। 
2. ज़बरदस्ती करने वाले सामंतो पर धारा 374 के हिसाब से कार्यवाही होनी चाहिये। 
3. किसानो के कर्ज़ के जो बांड्स (bonds) हैं, उन्हे एक वर्ष के अंदर खत्म किया जाना चाहिये। 
4. रजवारों और गरीब किसानो के लिये रोज़गार की व्यवस्था होनी चाहिये। 
मगध के अन्य क्रांतीकारीयों जिनको सज़ा हुई: 
जोधन मुसहर, उग्रसेन रजवार, घनश्याम दुसाध, गोविन्द लाल, पुनीत दुसाध, शिवदयाल, बंधु, रुस्तम अली, रज्जू कहार। 

अलीपुर कैदियों की लिस्ट यूं थी: 
लच्छू राय (भूमिहार-ब्राहमण), सीरू राय (भूमिहार-ब्राहमण), रामचरण सिंह (राजपूत), रातू राय (भूमिहार-ब्राहमण), बोरलैक (कुर्मी), हरिया (चमार), रामटहल सिंह (राजपूत), दुल्लू ( भोक्ता-जन जाति), झंडू अहीर, शिवन रजवार, भुट्ठो रजवार, सोनमा दुसाध, चुम्मन रजवार, कारू रजवार, दरोगा रजवार, मेघु रजवार, लीला मुसहर, गुनी कहार, गछमा कहार, गणपत सेवक, मनोहर (चमार), जेहल मुसहर, मेघन रजवार। 

 गया और जिवधर सिंह 

3 अगस्त 1857 से लेकर, करीब दस दिनो तक गया आजाद रहा। विद्रोहियों ने अंग्रेज़ों की कचहरी-दफ्तर सब कुछ जला दिया। जेलखाना तोड़ दिया गया। अंग्रेज़ गया किले मे घुस गये। विद्रोहियों ने कई बार किले की घेराबंदी की। 8 सितंबर 1857 को अंग्रेज़ो और विद्रोहियों मे भिड़ंत हुई, जिसमे अंग्रेज़ो को भारी क्षति पहुंची। 

1857 की लड़ाई मे गया, नवादा, जहानाबाद, अरवल और औरंगाबाद मे अंग्रेज़ विरोधी लड़ाई के प्रमुख किरदार भूमिहार-ब्राहमण जिवधर सिंह थे। बिक्रम थाना क्षेत्र में जिवधर के भाई हेतम सिंह ने विद्रोह का झंडा बुलंद रखा। एक समय था जब आधे जिले पर जिवधर सिंह का सिक्का चलता था। कलपा के राम सहाय सिंह, सिद्धि सिंह और जागा सिंह, जिवधर सिंह के प्रमुख सहयोगी थे। टेहटा की सारी अफीम एजंसियों को जिवधर सिंह ने कब्ज़े मे कर लीं। जिवधर सिंह ने नालंदा मे हिल्सा तक कब्ज़ा जमाया। अंग्रेज़ो ने कालपा, टेहटा और कई गांव के गांव जला दिये। 

कंपनी-अंग्रेज़ राज के खात्मे के ऐलान के साथ, जिवधर सिंह ने कर वसूली की सामांतर व्यवस्था कायम की, जिससे किसानो को राहत मिली। वहीं सामंत वर्ग पर अंकुश लगा। अरवल, अनछा, मनोरा और औरंगाबाद के सीरीस परगने मे गरीब-भूमिहीन किसानो मे भूमि वितरण हुआ। 

29 जून 1858 को मद्रास आर्मी की बड़ी टुकड़ी जिवधर सिंह के खिलाफ भेजी गई। जिवधर सिंह पुनपुन नदी पार निकल गये। निमवां गांव मे विद्रोहियों ने अंग्रेज़ फौज को ऐसा रोका कि तीन अंग्रेज़ अफसर मारे गये! एक छोटे से गांव से अंग्रेज़ों ने ऐसे प्रतिरोध की उम्मीद नही की थी। 

अरवल घाट की लड़ाई मे भी अंग्रेज़ मात खा गये। जहानाबाद के दरोगा को जिवधर सिंह ने मार कर उसकी लाश को टांग दिया। 

अंग्रेज़ों ने जिवधर सिंह के गांव खोमैनी पर अंग्रेज़ों ने हमला किया। यहां भी जिवधर सिंह अंग्रेज़ों को हराने मे सफल रहे।  

सरयूपारी ब्राहमण लाल भूखंद मिश्र जिवधर सिंह के एक कमांडर थे। उस समय बिहार मे कान्यकुब्जों के मुकाबले, सरयूपारी संख्या मे कम थे। लाल भूखंद मिश्र बहादुरी से लड़ते हुऐ, वीरगति को प्राप्त हुऐ। 

जिवधर सिंह का पीछा अंग्रेज़ों ने पलामू के अंटारी गांव तक किया। पलामू मे क्रांति का नेतृत्व भूमिहार ब्राहमण नीलांबर-पीतांबर शाही और और चेरो जन जाति के सरदार कर रहे थे। 

जिवधर सिंह दाऊदनगर और पालीगंज तक लड़े। अनेक अंग्रेज़ बरकंदाज़ों और प्लांटरों को मार गिराया। अंग्रेज़ परस्त सामंत उनके खौफ से भाग खड़े हुऐ। आर. सोलांगो इंडिगो प्लांटर की पटना और गया-जहानाबाद मे फैक्ट्रियों को जला दिया गया। जिवधर सिंह ने शेरघाटी को liberated zone बनाया और कई वर्षो तक युद्ध किया।

झारखंड/छोटा नागपुर

वर्तमान झारखंड 1857 मे छोटा नागपुर ऐजंसी के रूप मे जाना जाता था। दानापुर, शाहबाद, सुगौली, सारण, सिवान, मुज़फ्फ़रपुर, भागलपुर, गया आदि मे विद्रोह का सीधा असर छोटा नागपुर मे पड़ा। 

इस इलाके मे 8वी पैदल सेना, जिसने 7वी, 40वी के साथ, 25 जुलाई को दानापुर मे विद्रोह कर बिहार मे अंग्रेज़-विरोधी लड़ाई की बागडोर राजा कुंवर सिंह के हाथ सौंपी, की एक टुकड़ी, हज़ारीबाग मे तैनात थी। बाकी चायबासा, पुरुलिया, रांची और संभलपुर मे रामगढ़ बटालियन सबसे बड़ी ताकत थी। 

रामगढ़ बटालियन मे भागलपुर, मुंगेर, सारण, शाहबाद-आरा-बक्सर और मगध के सिपाही ज़्यादा थे। 

30 जुलाई को हज़ारीबाग मे 8वी रेजीमेंट की टुकड़ी ने हज़ारीबाग मे विद्रोह किया। जेल से कैदियों की रिहाई और अंग्रेज़ी खज़ाने को कब्ज़े मे लेने के बाद, हज़ारीबाग के विद्रोही रांची की तरफ चले। उधर रांची से रामगढ़ बटालियन की टुकड़ी ले कर, अंग्रेज़ अफसर हज़ारीबाग के विद्रोह को कुचलने निकल पड़ा। पर बीच ही मे, रामगढ़ बटालियन के सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया! बुरमू मे रामगढ़ बटालियन और हज़ारीबाग के सिपाही मिले--और दोनो रांची की ओर चल दिये! 

रांची पहुचते ही वहां मौजूद रामगढ़ बटालियन के बाकी सिपाहियों ने भी विद्रोह कर दिया। जल्द ही, विश्वनाथ साही के नेतृत्व मे रांची क्रांतिकारी सरकार की स्थापना हुई। 

विश्वनाथ साही जाति के भूमिहार थे। विकिपीडिया इत्यादी मे विश्वनाथ साही को 'नागवंशी राजपूत' कहा गया है। छोटा नागपुर मे नागवंशी राजपूत थे और हैं। 1857 मे लड़े भी। जैसे पोरहट के राजा अर्जुन सिंह जिन्होनें 1857 क्रांती की बागडोर चायबासा-सिंहभूम मे संभाली। 

अंग्रेज़ अफसर डाल्टन जो छोटा नागपुर छेत्र मे सबसे उच्च अंग्रेज़ अफसरों मे था, ने अपनी पुस्तक, Mutiny in Chota Nagpur मे साफ-साफ विश्वनाथ साही को 'बाभन' या भूमिहार ब्राहमण बताया है। बल्कि रांची मे क्रांतीकारी सेना के चीफ राय गणपत को भी 'बाभन' कहा गया है। 

विश्वनाथ साही के नेतृत्व मे सभी अंग्रेज़ विरोधी सामंतो की ज़मीन जप्त  कर, भूमिहीनो और छोटे किसानो मे बांटी गई। छोटे ज़मीदारों और किसानो पर जो अंग्रेज़ो और साहूकारों ने कर्ज़ लादा था, माफ किया गया।

रांची क्रांतिकारी सरकार ने बहादुर शाह को अपना बादशाह और राजा कुंवर सिंह को बिहार सूबे का वज़ीर घोषित किया। सैनिक मामलों का नेतृत्व शाहबाद/आरा के सिपाही माधो सिंह, रामगढ़ बटालियन के भागलपुर निवासी सूबेदार जय मंगल पांडे (कान्यकुब्ज ब्राहमण) तथा नादिर अली के हाथ मे था। योजना थी कि रांची से सीधे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हेडक्वार्टर कलकत्ता, जहां गवर्नर-जर्नल कैनिंग विराजमान था, कि ओर कूच किया जाये। कलकत्ता और दिल्ली-लखनऊ के बीच की ग्रांड ट्रंक रोड भी क्रांतिकारियों के कब्ज़े मे आ गयी।  

उड़ीसा 

हज़ारीबाग के विद्रोह के समय, संभलपुर, जो आज उड़ीसा मे है, छोटा नागपुर का हिस्सा था। संभलपुर गद्दी के अंग्रेज़ विरोधी वारिस, सुरेंद्र साही, उस समय हज़ारीबाग जेल मे थे। विद्रोहियों ने उन्हे मुक्त किया। 

सुरेंद्र साही भूमिहार ब्राहमण ही थे, जिनका राज अंग्रेज़ो ने छीन लिया था। लेकिन संभलपुर के भूमिहार, आदिवासियों के राजा थे। अंग्रेज़ अफसर डाल्टन के अनुसार, "सुरेंद्र साही कोई भगवान नही, अपतु भूमिहार ब्राहमण है, जो 17वी सदी मे उड़ीसा की तरफ पलायन कर गये थे। आदिवासियों ने इन्हे अपना देवता माना। और ये भी आदिवासियों से इतना घुल-मिल गये, कि साही की जगह 'साई' लिखने लगे--और बाद के लोगों ने इन्हे 'आदिवासी देवता' मान लिया। पर उड़ीसा के गैर-भूभिहार उत्कल ब्राहमण, जैसे पंडा, पाणिग्रही और 'मिस्र' उपाधि इस्तेमाल करने वाले उत्कल ब्राहमण, इनको ब्राहमण के रूप मे ही जानते हैं।" 

यही वजह थी कि संभलपुर मे 1864 
मे सुरेंद्र साही कि गिरफ्तारी के बाद भी, 1867 तक अंग्रेज़ विरोधी चला। आदिवासी और उड़िया ब्राहमण, पूरी तरह से इस संहर्ष मे शामिल थे। उड़ीसा की 'पटनायक' जाति भी, जो छत्रिय और कुर्मी-पटेल की बीच की सथिति मे थे, सुरेंद्र साही के नेतृत्व मे लड़ी। 

चतरा 

रांची के क्रांतीकारी सिपाहीयों के नेता, जयमंगल पांडे और नादिर अली, हिंदू-मुस्लिम एकता की अदभुत मिसाल पेश करते हुऐ, अक्टूबर 1857 मे चतरा की लड़ाई मे शहीद हो गये। 
आज भी वहां स्मारक जहां लिखा है: 
"जयमंगल पांडे नादिर अली"
दोनो सूबेदार रे
दोनो मिलकर फांसी चढ़े 
हरजीवन तालाब रे" 

माधो सिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हो गये। 

सिंहभूमी 

नागवंशी राजपूत अर्जुन सिंह और कोल आदिवासी लड़ाकू गन्नू के नेतृत्व मे सिंहभूम और चायबासा मे 1858-59 तक अंग्रेज़-विरोधी युद्ध चलता रहा। 14 जनवरी 1858 को मोगरा नदी की लड़ाई मे कोल और अर्जुन सिंह की सेना मे मुकुंद राय के नेतृत्व मे भूमिहार लड़वैय्ये जुड़ गये। 

मोगरा नदी की लड़ाई मे अंग्रेज़ अफसर लशींगटन को मुंह की खानी पड़ी। अंग्रेज़ो ने सपने मे भी नही सोचा था कि वो आदिवासी कोलों, अर्जुन सिंह और मुकुंद राय की सयुंक्त सेना से हार जायेंगें। 

मानभूमि

आज के बंगाल मे स्थित मानभूम मे 5 अगस्त 1857 को वहां के रामगढ़ बटालियन के सिपाहियों ने विद्रोह किया। पांचेट के नागवंशी राजपूत निलोमणि सिंह ने मानभूम की कमान संभाली। मानभूम के संथालों ने कई बड़े सामंतो पर हमला किया। हज़ारीबाग के संथालों ने पुनः विद्रोह किया। 

पलामू

पलामू ने एक नये अध्याय को जन्म दिया। पलामू मे दो ऐसे शख्स थे, जिन्होंने इतिहास की धारा मोड़ने मे अदभुत भूमिका निभाई। नीलांबर और पीतांबर साही भूमीहार थे। जिनका परिवार वहां के आदिवासियों के लिये संभलपुर की तरह देव तुल्य था। अक्टूबर 1857 से लेकर 1858-,59 तक, नीलांबर-पीतांबर के नेतृत्व मे भोगता, चेरो और खरवार आदिवासी जन-समूह जम कर लड़े।

पलामू की लड़ाई ने भी सामंतवाद-विरोधी रूख अपनाया। ठकुराई रघुबीर दयाल सिंह और ठकुराई किशुन दयाल सिंह पलामू के बड़े, अंग्रेज़-परस्त सामंत थे। आदिवासियों से इनकी सीधी लड़ाई थी। 

अक्टूबर 1857 मे क्रांतीकारीयों ने चैनपुर, शाहपुर और लेसलीगंज पर हमला कर दिया। नीलांबर/पीतांबर के नेतृत्व मे आदिवासी फौज ने चैनपुर मे लेफ्टिनेंट ग्राहम को घेर लिया। जब तक मेजर कोटन एक बड़ी फौज लेकर ग्राहम को बचाने नही पहुंचा, घेरेबंदी चलती। देवी बख्श राय नामका भूमिहार योद्धा इस लड़ाई मे गिरफ्तार हो गया। 

क्रांतीकारीयों ने फिर बांका और पलामू के किलों पर हमला किया। ठाकुर किशुन दयाल सिंह ने अगर गद्दारी न की होती तो बांका किला क्रांतीकारियों के कब्ज़े मे आ जाता। नकलौत मांझी भी पलामू मे एक बड़े क्रांतीकारी नेता के रूप मे उभरे। नकलौत ही शाहबाद मे जारी राजा कुंवर सिंह के भाई अमर सिंह की सरपरस्ती मे चल रही लड़ाई और पलामू के बीच की कड़ी थी। भूमिहार राय टिकैत सिंह और उनके मुसलमान दीवान शेख बिखारी भी पलामू मे खूब लड़े। दोनो को एक साथ फांसी पर लटकाया गया। 

1858 के मध्य तक विश्वनाथ साही, राय गणपत, उनके सहयोगी, नीलांबर-पीतांबर साही--सभी फांसी पर चढ़ा दिये गये थे। पर आंदोलन नही रूका। 

आज़मगढ़-गाज़ीपुर-बलिया-इलाहाबाद 

उधर अप्रैल 1858 मे लखनऊ के पतन के बाद, कुंवर सिंह अपनी फौज के साथ वापिस जगदीशपुर, बिहार की ओर पलटे। अतरौलिया, आज़मगढ़ मे दो बार कुंवर सिंह की बिहारी फौज का अंग्रेज़ों की गोरी पलटनो से सामना हुआ। और दोनो बार अंग्रेज़ पराजित हुए। कुवंर सिंह ने सिकंदरपुर, बलिया के पास गंगा पार की और एक बार फिर अंग्रेज़ो को हराते हुऐ, जगशदीशपुर पहुंच कर ही दम तोड़ा। 

कुंवर सिंह के बलिया-गाज़ीपुर आगमन पर, वहां के सरयूपारी ब्राहमण, राजपूत, मुसलमान, अहीर और भूमिहार ब्राहमण सक्रिय हुए। गहमर, गाज़ीपुर के भूमिहार ब्राहमण मेघार राय ने कमान संभाली। 
गाज़ीपुर, विशेषकर जमानियाँ क्षेत्र, मार्च, 1858 तक बहुत उग्र हो गया। मेघार राय की फौज ने सैदपुर-वाराणसी सड़क की घेराबंदी कर दी और बनारस के लिए 'खतरा' बन गए। 

इस नये पूर्वांचल-संघर्ष में भूमिहार ब्राहमणों ने मेघार राय के नेतृत्व में शाहाबाद और गाजीपुर से अधिकतम लड़ाकों को संघर्ष में झोंक दिया। यहां के भूमिहार, राजपूत और पठान--तीनो--सकरवार शाखा से थे। और तीनो ही अपना संबंध कन्नौज-उन्नाव के कान्यकुब्ज ब्राहमणो से जोड़ते थे। 

भूमिहार ब्राहमणों एवम पठानों ने संग्राम सिंह के नेतृत्व में मड़ियाहूं (जौनपुर) पर धावा बोल दिया। निचलौल (गोरखपुर जिला) और सलेमपुर, देवरिया में इंडियन कैवेलरी (घुड़सवार सैनिक दस्ता और तोपखाना) अंग्रेजों के खिलाफ हो गयी। अंग्रेज़ यूनिट का नेतृत्व सर राटन कर रहा था। वहां राजपूतों तथा भूमिहार ब्राहमणों ने अफीम एजेंटों तथा अंग्रेजों का कत्ल कर दिया।

इसके बाद, दिलदारनगर संघर्ष (Dildarnagar Stand off) हुआ।  मेघार राय के साथ भूमिहार सरदार विशेषकर शिवगुलाम राय, रामप्रताप राय, शिवचरण राय, रामजीवन राय, शिवपाल राय, रोशन राय, मोहन राय तथा तिलक राय कंधे से कंधा मिला कर लड़े। 

ब्रिटिश इतिहासकारों ने अपने अभिलेखों में भूमिहार ब्राह्मणों का बहुत 'खतरनाक' एवम आक्रामक व्यक्तित्व दर्ज किया है।

उत्तर-प्रदेश और मध्य प्रदेश के जालौन, गुरसराय तथा सागर के चितपावन ब्राहमण अपने को भूमिहारों से जोड़ते थे। इनहोने भी बाजीराव प्रथम के वंशज नाना साहब के नेतृत्व मे मुसलमानो से मिल कर 1857 मे अथक संहर्ष किया। 

पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के त्यागी ब्राहमण 

1857 की क्रांती में डासना तहसील का भी महत्पूर्ण स्थान रहा है। यहां गूजरों के साथ, भूमिहारों की शाखा,
त्यागी ब्राहमणों ने फिरंगियों से लोहा लिया। अंग्रेज़ों ने त्यागी ग्रामीणों को सबक सिखाने के लिए डासना से मंसूरी तक की उनकी ज़मीन जब्त कर ब्रिटिश इंजीनियर के हाथों बेच दी। मंसूरी नहर के पास बनी ब्रिटिश हुकूमत की कोठी आज भी इसका प्रमाण है। डासना में जिस समय जमीन नीलामी के आदेश की मुनादी हो रही थी, तो बशारत अली और कुछ अन्य ग्रामीणों ने ढोल फोड़ दिया। उन्होंने लगान देने से भी इनकार कर दिया। इस पर सभी को अंग्रेजों ने फांसी दे दी। 

पिलखुवा के मुकीमपुर गढ़ी और धौलाना में भी ब्रिटिशों के खिलाफ राजपूतों के साथ-साथ त्यागी भी लड़े। इसके अलावा सपनावत, हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर, मोदीनगर क्षेत्र में त्यागी बाहुल्य गांवों में फिरंगियों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा। इसमे बड़ी संख्या मे मुस्लिम त्यागी भी शामिल हुए। 

सीकरी खुर्द गांव में स्थित मन्दिर परिसर में वट वृक्ष है। इस पेड़ पर लगभग 100 हिंदू और मुस्लिम त्यागी क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दी गई थी। गाज़ियाबाद जिले में कैप्टन एफ एंड्रीज, सार्जेंट डब्ल्यू एमजे पर्सन, सार्जेेंट आर हेकेट, जे डेटिंग, कारपोरल प्रियर्सन, जे जेटी वगैरा की कब्र भी है। 

इलाहाबाद एवं झूंसी में विद्रोह की अगुआई मौलवी लियाकत अली तथा भूमिहार ब्राह्मण सुख राय ने की। इनके साथ मेजा और बारा क्षेत्र के भूमिहार ब्राह्मण एवम मुसलमान सिपाही थे। सुख राय का साथ राजपूतों, कुर्मियों, ब्राह्मणों, कलवारों और चमारों ने दिया था। सुख राय करछना पहुंचे और वहां पर उभार का नेतृत्व  संभाला जो 1860 तक चला। 


Brahmin Intellectualist

Brahmins, bhakti movement and social reform movements

Raja Ram Mohan Roy, a Brahmin, who founded Brahmo Samaj
Many of the prominent thinkers and earliest champions of the Bhakti movement were Brahmins, a movement that encouraged a direct relationship of an individual with a personal god Among the many Brahmins who nurtured the Bhakti movement were RamanujaNimbarkaVallabha and Madhvacharya of Vaishnavi  Ramananda, another devotional poet sant. Born in a Brahmin family,Ramananda welcomed everyone to spiritual pursuits without discriminating anyone by gender, class, caste or religion (such as Muslims). He composed his spiritual message in poems, using widely spoken vernacular language rather than Sanskrit, to make it widely accessible. His ideas also influenced the founders of Sikhism in 15th century, and his verses and he are mentioned in the Sikh scripture Adi Granth. The Hindu tradition recognises him as the founder of the Hindu Ramanandi Sampradaya the largest monastic renunciant community in Asia in modern times.
Other medieval era Brahmins who led spiritual movement without social or gender discrimination included Andal (9th-century female poet), Basava (12th-century Lingayatism), Dnyaneshwar (13th-century Bhakti poet), Vallabha Acharya (16th-century Vaishnava poet), among others.
Many 18th and 19th century Brahmins are credited with religious movements that criticised idolatry. For example, the Brahmins Raja Ram Mohan Roy led Brahmo Samaj and Dayananda Saraswati led the Arya Samaj.

Friday, 22 May 2020

Who are Adi Gour Brahmans? Their Gotras & Sashans.......




 ADI GOUR BRAHMAN GOTRA & SASHAN
1. PARVRIDH VASISHT GOTRA: Tgunayat, Jhimiriya, Jharmriya, Vijaycharan, Gothwal, Haldolia, Nuliwal,Choubepradhan, Diwedi Pradhan, Narwalia, Brahmpuria, Jharmpuria, Mandoria, Kuruskehtri, Sirohiwal,Sarpdama, Kundolia Bhadrawasia, Basotia, Chandolia, Mainwal, Ramhadia, Yanesaria, Gangawasi, Badiwal,Pidra, Safidmiwala.
2. VASISHT GOTRA : Sinwal, Buntolia, Surolia, Kankrit, Natholia, Chulhat, Khairwal, Balachia, Bankolia, Kalaneria,Dhamani MIshra, Baberwal, Narela, Upadhyay, Ghamunia, Gaudwal, Kharwalia, Narnolia, Bidwaria, ChukaniaGoaswami, Sunpatia, Dwijanaia, Gour Grabhiya, Shipuria, Ugratapa, Mishra, Gomani, Atolia, Bijnet, Nachania,Godhria, Pahaktari, Soria, Pharmania, Chrolia, Vayohaal, Naliyariya, Babroliya, Vadgamiya, Varithwal, Silaniya,Diwachiya, Vishmbhra Pradhan, Biyala, Basotia, Kathaliya, Dewliya, Oudhaka, Suthya, Bartar, Gatalima,Simawat, Luniwal Mata, Kulta Japria, Tundwal, Khariwal, Kheriwal, Shorthia, Gill, Gilan, Ramaniya, Changan,Babarwal, Tilawat, Parbati, Gangawat, Adhichwal Joshi.
3. GOUTAM GOTRA : Indoria, Patodia, Dorliya, Duledia, Dohliya, Bayoliya, Nauotania, Ritambhara, Boghar,Gandharwal, Pandyana, Pantiye, Jhuria, Kanoria, Muhanwan, Sathia, Bajre Simmanwal, Pandey, VadibalChoudhary, Jhandoliya Pradhan.
4. KASHYAP GOTRA : Kurusketriya, Gurpuriya, Chulkaniya, Manchaki.
5. ATRI GOTRA : Dhand, Dhigthaliya, Jhadoliya, Jhadoliya Joshi, Tripathi, Ratiwal, Rohitiya, Sirsonia,Vyas, Kankhaliya, Baleriya, Gourpuria, Ghortapa, Sarpddama, Karpundiya, Tusamariya, Didwania, Pandyan,Tandpade, Saagwal, Ganwariya, Jindiya, Kedeliya, Bupadwal, Disawad, Kundhra (Panda), Bariwal, Phulriye,Bariwal Mota Nagwan, Mangloriya, Kasampariya, Dhuncholiya, Maroliya, Nedhaliya, Sankholiya, Sirsaniya,Moteka Tusania, Bheda, Khaksaya, Kriksa, Magas, Mogra, Mandolia, Rame, Rawalma, Sirsania, Mite.
6.KRISHNAYA GOTRA : Nirmal, Rewaliya, Banbarewal, Brahmwedia, Chinkatia, Kakar.
7.AGUSTYA GOTRA : Maharshi, Wajhra, Tapodhara, Utchala, Shuilkpuria, Vidhyadhara, Mayadiya, Salothia,Pihuwal, Vyas.
8.KOUSHIK GOTRA : Dixhit, Bhridwal Pilodha, Lata, Dokwal, Jhimariya, Panwalia, Karirhat, Nagarwal,Phatwariyavyas, Vidhat, Singhwal, Bishkaria, Dana, Chaturvedi, Brijwal, Kanrwal, Bhudoj, Gandhara, Bagarhata,Bahandia, Baghdolia, Ghaghsani, Kotiya, Sayania, Gorkhpuria, Bruhadania, Sirohiwal, Gogani, Mangaloria,Mandalwal, Mathwal, Maharwal Nakare, Pindane, Varsia Chumheth, Untlodia, Kankar, Tigadia, Barad, KamiyaPhutwa, Kalanoria, Kuranwal, Kankar, Vijaycharan Banhaya, Jaisatwara, Bhura, Aastyan, Sankholia.
9.BHARDWAJ GOTRA : Chaklan, Garwal, Dhand, Panchlangia, Indoria, Sindolia, Bhathra, Kaloondia, Gogyan,Sahal, Nagwan, Nreda, Tungaria, Wamadolia Dhancholia, Luniwal, Biyala, Marahsiya, Pathak, Gangawat,Kalawatia, Vinwal, Pitrot, Khantwal, Dodwadia, Kharith, Satoria, Dolya, Maloo, Baber, Gilyan, Bijechan, Tikdyant,Paslotia, Chatesaria, Ratelwal, Ramparia, Surolia, Dubey, Nayayasthani, Panwalia, Vadiwal, Kedewal,Choubelal, Godharia, Bijret, Tandolia, Bhiwal, Bawelia, Balochia, Alwaria, Simbhala, Anguthia, Bharthalia,Bhartiya, Chandolia, Mandhania, Chourashi Bayoria, Vijayavani, Nirthalia, Silothia, Kandodhia, Sanwlodia,Vishambhara, Sanklash, Sanpalwal, Madothia, Shivahaya, Dulinhat, Sagwal, Barnaya, Ghijwal, Dabodhia,Pithwal, Sirsoulia, Gosrat, Nigambothia, Tapodhana, Sarpdama, Dantolia, Netwalia, Alselia, Bhadchakki,Tantpradhan, Petwadia, Santoria, Jaywal, Dungarpuria, Natwal, Pihulwal, Galiyan, Gilad, Katwadia, BohariaBhunwal, Galyan, Bankolia, Nudiwal Naharia, Goudia, Mahta, Umrawatia, Gurgamia, Mamdolia, Sandolia,Narhedwal, Niralia, Raiwal Bidahat, Thikaria, Padhia, Choubepradhan, Sindolia, Paladia, Naad, Pawta, Damanil,Kuthia, Sorthya, Kaath, Bardwalia, Bagla, Bima, Bacha, Rahthala, Tharal, Lamba, Dadwadya, Roliwal, Dorwal,Kharwal, Batole, Godhalia, Kamdiwal, Sindolia, Kankrit, Toshyan, Marolia, Bhinda, Jhadodia.
10. JAMDAGNI GOTRA : Ratelwal, Basundwal, Mudahhat.
11. VATS GOTRA : Jhimiria, Balmia, Manjithwal, Bahdolia, Gohria, Nagarwal, Marhata, Sikara, Nagwan, Chouhanwal,Mandawaria, Ghatsaria, Bora, Jhaman.
12. MUDGAL GOTRA : Bawlia, Kasaria, Kakyani, Churolia, Bhinda Joshi, Chulkania, Kakyan, Ramudama.
13. PARASHAR GOTRA : Bagdolia, Khedwal, Hinsaria, Gujarka, Ramgadhia, Jhadsaiya, Narhada, Karnalia, Bhunddat,Lokanda.
14. SANDILYA GOTRA : Haritwal, Chulhiwal, Basundwal, Varundwal, Noongarwal, Pancholia, Bhapyawalia, Parwati, Kalinoora, Rurlwal, Kandwal Pathak, Chaitpuria, Monas, Bhattawalia Tiwari, Sojtama.
15. HAARIT GOTRA : Choumal, Salwal, Sabharia, Kaduvadia, Chohmewal, Khoj, Kandira.
16. ANGIRA GOTRA : Banderwal, Chobedixhit, Gangapuria, Mirchiyan, Chajawat, Jilaraya, Gilad, Nagarwal.
17. JAIMINI GOTRA : Mahtapa, Jamniya, Dharmpuria.
18. SHOUNAK GOTRA : Bhadupota
19. OSHESHWAR GOTRA : Phatwadia.
20. SUPRNA GOTRA : Naguwal, Nigarwal, Nagoora.
21. BHIRUGU GOTRA : Dadwaliye, Rame Pradhan, Abhisay Pradhan, Kalsota, Mandorama.
22. HARITAS GOTRA : Chamhal.
23. PIPLAWAN GOTRA : Aabyethaya Pradhan, Bhograan Pradhan, Chandolia Pradhan, Bishambara Pradhan.
24. VYOG GOTRA : Kalyan.
25. SANKRITYA GOTRA : Triwedi (Tiwari)Tiwari-Chuliwal-Tiwari, Tayga-Tiwari, Ghurchadhia-Tiwari, Bhadya-Tiwari, Parasaria-Tiwari, Phalodiye-Tiwari,Bhatawala-Tiwari, Rodi-Tiwari, Korak-Tiwari, Bahrodia-Tiwari.
26. CHANDRAYAN GOTRA : Chandnia.
27. GALAV GOTRA : Kath.
28. KOTSH GOTRA : Kakar.

How many tpyes of Brahmins/Pandits are Living in world ? All are one/same but they do not marriage each others ......


   A List of Brahmin Communities 

Adi Goud Ahiwasi Brahmins   Anavil Brahmins  Ashtasahasram Iyers  Aravttokkalu Brahmins  Audichya Brahmins  Babburkamme Smartha Brahmins  Badagnadu Smartha Brahmins  Barendra Brahmins of Bengal  Basotra Brahmins  Beyal Brahmins  Bhargava Brahmins of Bundelkhand and Madhya Pradesh  Bhumihar Brahmins  Bral Brahmins  Brahatcharanam Iyers  Brahmabhat Brahmins  Daivajna Brahmins  Deshastha Brahmins  Devrukhe Brahmins of Konkan region in Maharashtra  Dhima Brahmins  Dravida Brahmins (originally from Tamilandu, migrated to parts of Godavari and Srikakulam in Andhra Pradesh)  Embranthiri Brahmins of Kerala  Gaur Brahmins  Gouda Saraswat Brahmins  Gurukkal or Shivacharya Brahmins  Havyaka Brahmins  Hebbar Iyengars  Hoysala Karnataka Brahmins  Jijhotia Brahmins  Jaishreekrishna Bhaisa Sarswat brahmin Kandavara Brahmins  Kanyakubj or Kanaujia Brahmins  Karhada  or Karade Brahmins of Karhad region of Maharashtra  Kashmiri Saraswats or Kashmiri Pundits  Kayastha Brahmins  Kerala Iyers  Khajuria or Dogra Brahmins of Jammu  Khandelwal Brahmins  Khedawal Brahmins  Konkanastha  or Chitpavan Brahmins  Konkani Saraswat Brahmins  Kota Brahmins  Koteshwara Brahmins  Kudaldeshkar Brahmins  Madras Iyengars  Madhwa Brahmins  Maithil Brahmins     Malwi Brahmins  Mandyam Iyengars  Modh Brahmins  Mohyal Brahmins  Muluknadu Brahmins  Nagar Brahmins  Namboothiri Brahmins  Nandimukh or Nandwana Brahmins of Gujarat and Rajasthan area.  Naramdeo or Narmdiya Brahmins  Nepali Brahmins  Niyogi Brahmins  Padia Brahmins  Paliwal Brahmins  Pangotra Brahmins  Pottee Brahmins of Kerala  Punjabi Saraswat Brahmins  Pushkarna Brahmins  Rajapur Saraswat Brahmins  Rahri Brahmins of Rahr region of Bengal  Rigvedi Deshastha Brahmins  Sadotra Brahmins of Jammu  Sakaldwipi Brahmins  Saklapuri Brahmins  Sanadhya Brahmins mainly of western Uttar Pradesh  Sanketi Brahmins  Sarwaria Brahmins  Sarypari Brahmins of Eastern Uttar Pradesh and Madhya Pradesh  Sirinadu Smartha Brahmins  Shrimali Brahmins  Shivalli Brahmins  Smartha Brahmins  Srigaur Brahmins  Sthanika Brahmins  Suryadwij Brahmins (of Kota region in Rajasthan)  Thenkalai (a.k.a.Thengalai) Iyengars  Tuluva Brahmins  Tyagi Brahmins  Uppal Brahmins  Utkal Brahmins  Uluchakamme Brahmins  Vadagalai Iyengars  Vadama Iyers  Vaidik or Vaidiki Brahmins  Vaishnava Brahmins  Vathima Iyers  Yajurvedi Deshastha Brahmins




1. Sarswat  2. Kanyakubj  3. Gaur  4. Maithil  5. Utkal  ... 6. Karnatak  7. Tailang  8. Dravid  9. Gurjar  10. Maharashta  11. Snadya  12. Saryupari  13. Akshayamangal  14. Agastwal  15. Tahwasi  16. Agachi  17. Asoya  18. Ari  19. Aryafakka  20. Agnihotri  21. Angal  22. Aal  23. Tahalmari  24. Ambardar  25. Alikwal  26. Almora  27. Amir  28. Awasthi  29. Anki  30. Tadharj  31. Tkshtaakpal  32. Acharaj  33. Anvaal  34. Agaasi  35. Aapte  36. Indrachauk  37. Itiya  38. Itari  39. Indoriya  40. Issar  41. Uthasane  42. Uthaniyan  43. Aere  44. Aujha  45. Aapadi  46. Aumival  47. Aukhilakar  48. Kashyap Kasni  49. Kanjelata  50. Kapila  51. Kesarmaur  52. Kashiram  53. Kanchniya  54. Kanje  55. Kareli  56. Karoda  57. Kayetvanshi  58. Kinwar  59. Kulahi  60. Kashtwar  61. Kakora  62. Kahi  63. Karpuri  64. Kurmachili  65. Kanaudiya  66. Koshal  67. Kaphatiya  68. Koka  69. Kutalldiya  70. Kakliya  71. Kaliya  72. Kural  73. Kathpel  74. Kapala  75. Kaijar  76. Kundi  77. Kaland  78. Kusrit  79. Kardma  80. Kali  81. Kinaar  82. Kalhan  83. Kalaas  84. Kutwal  85. Kardhvaje  86. Kaai  87. Kudal  88. Kandhari  89. Kalvit  90. Kulli  91. Gaud  92. Gangli  93. Grawru  94. Gangaputra  95. Gangawasi  96. Gyawal  97. Gangoliya  98. Gangwali  99. Gandharwal  100. Gautam  101. Gurwal  102. Goswami  103. Gandhar  104. Ganghar  105. Gajesu  106. Gaandhe  107. Gature  108. Galbdh  109. Gadotare  110. Gaud Purohit  111. Gujrati  112. Gronda  113. Gurjar Gaud  114. Golhe  115. Ghaghsan  116. Ghotke  117. Ghakpaliye  118. Ghode  119. Chandanpuriya  120. Chapala  121. Charpniha  122. Chillupar  123. Charpand  124. Chaukhar  125. Chanderwala  126. Champaran  127. Chaursiya  128. Chahunwal  129. Chatdhar  130. Chainpuriya  131. Chachend  132. Chaube  133. Chamargaud  134. Chamarwa  135. Chhutri  136. Chheriyar  137. Chhangola  138. Chhitpuri  139. Chhiwar  140. Jotishi  141. Jalli  142. Jatle  143. Joshi  144. Jetli  145. Jaithke  146. Jalpatr  147. Joti  148. Jasrawa  149. Jaichand  150. Jaitare  151. Jalriya  152. Juwal  153. Jangra Gaud  154. Jangra Vishwkarma  155. Jhosetol  156. Jhiltum  157. Jhas  158. Taak  159. Tandi  160. Tripathi  161. Tgaa  162. Takht Ladli  163. Tiwari  164. Thatrapane  165. Tilak  166. Tajwal  167. Tinuni  168. Tule  169. Tute  170. Tinganiwate  171. Tinmani  172. Talan  173. Tagle  174. Dadhich  175. Dhanjaya  176. Dhosu  177. Dhannyotre  178. Dhani  179. Dhande  180. Dhamaniye  181. Dharakar  182. Nirmaal  183. Nagwaan  184. Nagarwal  185. Nade  186. Nawale  187. Nahar  188. Narad  189. Nabh  190. Narmdiya  191. Naavkar  192. Patel  193. Pyaasi  194. Paryaga  195. Ptaviha  196. Prasa  197. Pichhora  198. Pahatiya  199. Pachhade Gaud  200. Pushkarni    etc etc 1900 types of Brahmins are there !


ब्राह्मण

ब्राह्मण में ऐसा क्या है कि सारी दुनिया ब्राह्मण के पीछे पड़ी है। इसका उत्तर इस प्रकार है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी न...