Tuesday, 2 June 2020

Brahmin Pandit Kings ( Bhumihar / Tyagi Brahmins )





14वीं व 15वीं शताब्दी में यूपी के पूर्वांचल से जाकर बंगाल भूमि में अपनी रियासत स्थापित करने वाले सभी #कश्यप_गोत्रिय_राय_सरनेम वाली बहुचर्चित राजाओं को क्यूँ भूल जाता आज का हाईटेक भू समाज ..? 

■ #राजा_योगेन्द्र_नारायण_राय - लालगोला के बहुचर्चित राजा जिनके महल में "आनंदमठ" व राष्ट्रीय गीत "बन्देमातरम्" की रचना हुई ... देशभक्तों के आश्रयदाता 

■ #राजा_बीरेंद्र_नारायण_राय - लालगोला के राजा सह दिग्गज वामपंथी नेता , मुर्शिदाबाद ज़िले के #नाबाग्राम_विधानसभा क्षेत्र से वामदल/निर्दलीय 8 बार विधायक 

■ #राजा_भैरवेंद्र_नारायण_राय  - सिंहाबाद रियासत के राजा जिन्होंने बंगाल में कला संस्कृति व संगीत के क्षेत्र में नयी आधारशिला रखी ..

■ #राजा_रमाकांत_राय - नटौरा स्टेट के राजा जिन्होंने नटौरा को नया भौगोलिक आधार दिया ... इनकी पत्नी #रानी_भवानी बड़ी वीरांगना थी ... काशी नरेश से बेहद मधुर रिश्ते थे .. इनकी व इनकी पुत्री #तारा_सुंदरी के जीवन के आख़री दौर काशी नरेश के यंहा ही गुजरे ... बंगाल के सूबेदार सिराजोदौला द्वारा तारा सुंदरी को विवाह प्रस्ताव के बाद रानी भवानी गंगा जलमार्ग से ही बंगाल से काशी पहुँच गयी थी ... 

इन सबों के वंशजों ने बंगाली संस्कृति को adopt कर लिया है ... परन्तु इनके पुरखों का अपने परिवार व क्षेत्र गाजीपुर बनारस से गहरा जुराव हुआ करता था ... पूर्वांचल से लोग रियासत में 20वीं सदी तक कई पीढी से बड़ी जिम्मेदारी सँभालते मिले 😊 

अलग थलग पड़े #भू_समाज के इन हस्तियों को शत शत नमन 


#बंग_भूमि 

जैसा की सर्वज्ञात है गाजीपुर ज़िले के #कश्यप_किनवारों ने मुर्शिदाबाद में लालगोला और मालदा में सिंहाबाद रियासत की नींव रखी ..😊 

उसी तरह पश्चिम से आये एक एक अन्य ब्रह्मर्षि #कामदेव_भट्ट ने  15वीं शताब्दी में बंगाल के #नदीया_ज़िले में 
#ताहिरपुर_स्टेट की नींव रखी ... 

फिर #नदिया_और_नटौरा ज़िले में मुगल काल में इसी शाखा से .. 
#नटौरा_स्टेट 
#पोठिया_स्टेट
#नदिया_स्टेट की नींव रखी गयी .... 

पोठिया राज से उभरकर #राज_नटौरा ने एक समय में बेहद ख्याति  अर्जित की ... 
चूँकि कामदेव भट्ट #कश्यप_गोत्रिय_ब्रह्मर्षि थे इस लिए ताहिरपुर से उद्गमित रियासत "कश्यप" ही हुए ... 
 
नटौरा के #राजा_रमाकांत_राय की पत्नी #रानी_भवानी बहुचर्चित हुई ... 
काशी नरेश से रानी भवानी की जातिय रिश्ता होने की वजह से सम्बन्ध बेहद मधुर थे ... रानी भवानी ने काशी में दुर्गामन्दिर , धर्मशाला सहित कई गाँव दान में दिया था ... 

एक बार जब  बंगाल सूबेदार सिराजौदुल्ला रानी भवानी की पुत्री #तारा_सुंदरी से विवाह करना चाहता था और जबरदस्ती नटौरा को घेरे हुए था ... 
रानी भवानी जलमार्ग से ही बंगाल से काशी पहुँच गयी .... गंगा के राश्ते रानी के पहुँचने से पूर्व ही तारा सुंदरी ने #जल_समाधी ले ली थी ...

#काशी_और_नटौरा में अटूट रिश्ता था ... 
आजकल नटौरा महल बांग्लादेश का हिस्सा है .... इनके वंशजों ने पूर्ण बंगाली कल्चर adopt कर लिया है ... 
आज भी ये लोग बंगाल में कुलीन भूमिहार ब्राह्मण खुद को मानते हैं


 

मिथिला क्षेत्र के बहुचर्चित ओइनवार वंश में प्रतापी राजा शिवा सिंह हुए ... ओइनवार कश्यप गोत्रिय ब्राह्मण थे ...

#ओइनवारों_के_भूमिहार_ब्राह्मण_समाज_में_वंश 

■ #बरुआर - बरुआर कश्यप गोत्रिय भूमिहार ब्राह्मण होते हैं .. ओइनवार वंश की राजा भैरव सिंह ने 1480 ई में अपनी राजधानी बछौर परगने के "बरुआर गाँव" में बनायी थी ... राजा भैरव सिंह के पीढी से बरुआर डीह से आने वाले कश्यप गोत्रिय बरुआर भूमिहार कहलाये ■ 

ओइनवारों के वंशज के रूप में कश्यप गोत्रिय #बेतिया_राज को कई इतिहासकारों ने अपने मत के रूप में रखे हैं ... 

बेतिया राज की उतपत्ति के किस्से अब भी विवादित हैं ... कई मत हैं इनके प्रति ... 

■ बेतिया राज के संस्थापक मोहयाल शाखा के वैद क्लेन से आते थे जो कि विकिपीडिया भी दर्शा रहा .. 
मैं इसका खण्डन करता हूँ ... वैद क्लेन के गोत्र धन्वन्तरी होते हैं कश्यप नही ... बेतिया राज कश्यप थे .. 
भूमिहार शाखा में मोहयाल के बालि क्लेन से पराशर गोत्रिय #इकशरिया_भूमिहार ही सिर्फ हैं ... ■ 

■ एक किवदन्ती ये है कि "गोरख राय" पृथ्वीराज चौहान के सेनापति थे ... जो कि निराधार है 

■ सबसे महत्वपूर्ण मत जिसे कई इतिहासकारों ने सरहाया है ... वो है "ओइनवार वंश का विघटन व बेतिया (सुगौना) वंश का उदय .. कई शोधकर्ता मानते हैं .. ओइनवारों को चम्पारण क्षेत्र से बेहद लगाव हुआ करता था ...वँहा मजबूत सरदार की आवश्यकता होती थी ...चम्पारण क्षेत्र में ओइनवार अपने ही पीढी से लड़ाकू योद्धा को अपना सरदार नियक्त करते थे ... जिसमे "राजा पृथ्वी नारायण सिंहः देव" चम्पारण के बहुचर्चित सरदार थे (1436) ... वो भी ओइनवार के कश्यप कूल से थे ... 
ओइनवार कूल का विघटन होने के बाद इनकी पीढी ने अपना राज चम्पारण के हिस्से में कायम किया .... 
कलांतर में मुगल बादशाह अकबर को अफगानों के खिलाफ मदद की एवज में इनके पीढी के #उग्रसेन को राजा की उपाधि मुगलों द्वारा मिली ... उसके बाद उनके पुत्र गज सिंह बेतिया स्टेट के राजा हुए ...😊😊 

हालांकि कश्यप गोत्रिय ओइनवार और कश्यप गोत्रिय बेतिया राज के जुड़े इतिहास को लेकर मतभेद तो होना लाजमी है ... लेकिन ये मत सबसे पुख्ता प्रमाणिक भी सिद्ध होते हैं ... 
जुझौतिया (कश्यप) को लेकर भी यही मत है ... 



#च्यार_भूमिहार 

जब च्यार भूमिहारों के आदि पुरुष #महर्षि_च्यवन ने क्षत्रिय राजपुत्री सुकन्या से विवाह कर भृगु वंशी #चैयार_भूमिहार_वंश की नींव रखी ..😊 
#चयव्न्_प्रास औषधि की खोज इन्होंने ही की थी 

औरंगाबाद ज़िले के रफीगंज में #लट्टागढ़_स्टेट इन्ही च्यारों का था .... आज जे तारीख में ये ग्राम बेहद प्रभावशाली है ... यंहा च्यवन ऋषि का आश्रम है ..😊 

#लट्टागढ़_की_कथा 
 #ब्रह्मर्षि_च्यवन_आश्रम 
जहां आकर लोगों को एक सुकून और शांति मिलती है। जिला औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 42 किमी दूर बसा है गांव लत्ता। इसी गांव मे वधूसरा नदी के किनारे अवस्थित है—महर्षि च्यवन आश्रम। इस आश्रम को महर्षि च्यवन की तपोस्थली माना जाता है। लोगों की मान्यता है कि इसी आश्रम में महर्षि च्यवन ने कुछ दिव्य जड़ी-बूटियों की खोजकर कायाकल्प की एक दवा तैयार की थी। इस दवा को आज च्यवनप्राश के रूप में जाना जाता है। यानी च्यवनप्राश का आविष्कार इसी च्यवन आश्रम में हुआ था। आश्रम में पर्व त्यौहार के मौके पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु भाग लेते हैं। च्यवन ऋषि के आश्रम के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है, जिसका जिक्र कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। इस कथा के अनुसार महर्षि च्यवन ने लट्टा मे वधूसरा नदी के निकट अपना तपोस्थली बनाया था। इस के किनारे पर बैठकर वे गहन तपस्या में लीन हो गए। लगातार तप में लीन होने के कारण उनके शरीर पर मिट्टी का आवरण जमा हो गया था। एक दिन महान सूर्यवंशी राजा शर्याति अपने परिवार सहित नदी के किनारे पर भ्रमण के लिए आये। उनकी युवा पुत्री राजकुमारी सुकन्या भी उनके साथ थी। सुकन्या खेलते-खेलते उस स्थान पर आ गयी, जहां महर्षि च्यवन तपस्यारत थे। तपस्या की मुद्रा में बैठे च्यवन ऋषि की मिट्टी से ढकी आकृति में सरकंडे घुसा दिए। ये सरकंडे महर्षि च्यवन की आंखों में घुस गए। मिट्टी की आकृति से खून बहता देखकर राजकुमारी डर गयी और उसने अपने पिता राजा शर्याति को वहां बुलाया। जब शर्याति ने मिट्टी को वहां से हटाकर देखा तो उन्हें वहां महर्षि च्यवन बैठे दिखाई दिये, जिनकी आंखें राजकुमारी सुकन्या ने अज्ञानवश फोड़ दी थी। सच्चाई जानकर सुकन्या आत्मग्लानि से भर गयी। सुकन्या ने वहीं आश्रम में रहकर च्यवन ऋषि की पत्नी बनकर उनकी सेवा कर पश्चाताप करने का निर्णय लिया। बताया जाता है कि बाद में देवताओं के वैद्य आश्विन कुमारों ने अपने आशीर्वाद से महर्षि च्यवन को युवा बना दिया। युवावस्था प्राप्त कर महर्षि च्यवन ने उस क्षेत्र को अपने तप के बल पर दिव्य क्षेत्र बना दिया। आज महर्षि च्यवन आश्रम के कारण पूरा क्षेत्र प्रसिद्ध तीर्थस्थान के रूप में माना जाता है। यहां महर्षि च्यवन का प्राचीन मंदिर अवस्थित है, जिसमें महर्षि च्यवन, सुकन्या व ग्राम देवीकी मूर्तियां स्थित हैं। यहीं पर एक गुफा है, । इसके अतिरिक्त यहां स्थित चवधूसरा नदीभी आकर्षण का केंद्र है। इसका जिक्र महाभारत के वन पर्व में भी मिलता है। 

हाँ मैं संस्कार हूँ।
हाँ मैं च्यवनियार(चैयार) हूँ
भाष्कर संहिता का आधार हूँ
अश्वनी द्वय का अधिकार हूँ
भृगुकुल का उदगार हूँ
हाँ मैं च्यवनियार हूँ।।

देवी भागवत का प्रचार हूँ।
राजा कुशिक पर प्रहार हूँ
च्यवन स्मृति का आधार हूँ
ब्रह्मर्षि वंश विस्तार हूँ
हाँ मैं संस्कार हूँ
हाँ मै च्यवनियार हूँ।।

पुलोमन का सँहार हूँ।
माँ सुकन्या का अभिसार हूँ
इन्द्र का स्तम्भकार हूँ
वेदों का पारावार हूँ
हाँ मैं संस्कार हूँ
हाँ मैं च्यवनियार हूँ

राजा शर्याति का सत्कार हूँ
ब्रह्मर्षि का संस्कार हूँ
सहजानंद का ग्रंथागार हूँ
हाँ मैं संस्कार हूँ
हाँ मैं च्यवनियार हूँ।।

वत्स भार्गव आप्रवान
जामदग्न्य का प्रचार हूँ
महर्षि च्यवन का वंशाधार हूँ
हाँ मैं च्यवनियार हूँ
हाँ मैं संस्कार हूँ
है मैं भूमिहार हूँ।।


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