सभी ऋषि गुरु ही थे जैसे वशिष्ट ऋषि भगवान राम के, भारद्वाज ऋषि भगवान कृष्ण के, भगवान परशुराम कर्ण और भीष्म पितामह के, गुरु द्रोण कौरव पान्डुवो के आदि
सुदामा के साथ भगवान कृष्ण ने भी दान मांगा था ये उस समय की शिक्षा पद्धति का हिस्सा था ताकि किसी योद्धा को घमंड ना हो.....
जो कोई भी साधु बाबा के भेष मे हो या भगवा/सफेद कपडे पहने हो या पुजा-पाठ, हवन-फेरे-मरण कर्म कान्डी आदि करवाने वाला ज्योतिष/याचक/पंडा/ पुजारी आदि जरुरी नही है कि वह जाति से ब्राह्मण ही हो.... आजकल कोई भी किसी भी जाति या धर्म का आदमी ये कार्य कर रहा है कर सकता है......
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