Saturday 30 May 2020

How can we stop Dowry System and Killing Girl children?

आटा साटा शादी यानि जिस घर लडकी दो उसी घर से लडकी लो....

यह मुख्य तौर पर जाट, गुज्जर, कुम्हार, पंजाबी खत्री आदि जातियों मे होती है लेकिन ये एक अच्छी रिवाज है जिसे सब जातियो को अपनाना चाहिए... ना कुछ देना ना लेना..दहेज ना लेने- देने से बच्चियों की हत्या भी रुकेंगी और दहेज हत्याएं भी रुकेंगी 

कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की गई कन्या शिशु की हत्या होती है। ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या से जुड़े तथ्य

  • यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सुनियोजित लिंग-भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां एवं महिलाएं गायब हैं।
  • विश्व के अधिकतर देशों में, प्रति 100 पुरुषों के पीछेWomen Foeticide लगभग 105 स्त्रियों का जन्म होता है।
  • भारत की जनसंख्या में प्रति 100 पुरुषों के पीछे 93 से कम स्त्रियां हैं।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।

छुपे खतरे

संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि भारत में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या, जनसंख्या से जुड़े संकट उत्पन्न कर सकती है जहां समाज में कम महिलाओं की वज़ह से सेक्स से जुड़ी हिंसा एवं बाल अत्याचार के साथ-साथ पत्नी की दूसरे के साथ हिस्सेदारी में बढ़ोतरी हो सकती है। और फिर यह सामाजिक मूल्यों का पतन कर संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।

कारण

लेकिन यह स्त्री-विरोधी नज़रिया किसी भी रूप में गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है। भेदभाव के पीछे सांस्कृतिक मान्यताओं एवं सामाजिक नियमों का अधिक हाथ होता है। यदि यह प्रथा बन्द करना है तो इन नियमों को ही चुनौती देनी होगी।

भारत में स्त्री को हिकारत से देखने को सामाजिक-आर्थिक कारणों से जोड़ा जा सकता है। भारत में किए गए अध्ययनों ने स्त्री की हिकारत के पीछे तीन कारक दर्शाए हैं, जो हैं- आर्थिक उपयोगिता, सामाजिक-आर्थिक उपयोगिता, एवं धार्मिक कार्य।

  • अध्ययन आर्थिक उपयोगिता के बारे में यह इंगित करते हैं कि पुत्रियों की तुलना में पुत्रों द्वारा पुश्तैनी खेत पर काम करने या पारिवारिक व्यवसाय, आय अर्जन या वृद्धावस्था में माता-पिता को सहारा देने की सम्भावना अधिक होती है।
  • विवाह होने पर लड़का, एक पुत्रवधू लाकर घर की लक्ष्मी में वृद्धि करता है जो घरेलू कार्य में अतिरिक्त सहायता देती है एवं दहेज के रूप में आर्थिक लाभ पहुंचाती है जबकि पुत्रियां विवाहित होकर चली जाती हैं तथा दहेज के रूप में आर्थिक बोझ होती हैं।
  • स्त्री की हिकारत के पीछे सामाजिक-आर्थिक उपयोगिता संबंधी कारक यह है कि चीन की तरह, भारत में, पुरुष संतति एवं पुरुष प्रधान परिवारों के प्रथा यह है कि वंश चलाने के लिए कम से कम एक पुत्र होना अनिवार्य है, एवं कई पुत्र होना परिवारों के ओहदे को अतिरिक्त रूप से बढ़ा देता है।

स्त्री से हिकारत का अंतिम कारक है धार्मिक अवसर, जिनमें हिन्दू परम्पराओं के अनुसार केवल पुत्र ही भाग ले सकते हैं, जैसे कि माता/पिता की मृत्यु होने पर आत्मा की शांति के लिए केवल पुत्र ही मुखाग्नि दे सकता है।

भ्रूण हत्या को रोकने के उपाय और सरकार की पहल

इस कुरीति को समाप्त करने तथा लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। सरकार द्वारा देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए अपनाई गई बहुआयामी रणनीति इसमें जागरुकता पैदा करने और विधायी उपाय करने के साथ-साथ महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक रूप से अधिकार संपन्न बनाने के कार्यक्रम शामिल हैं। इनमें से कुछ उपाय नीचे दिए गए हैः 

  • गर्भ धारण करने से पहले और बाद में लिंग चयन रोकने और प्रसवपूर्व निदान तकनीक को नियमित करने के लिए सरकार ने एक व्यापक कानून, गर्भधारण से पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर रोक) कानून 1994 में लागू किया। इसमें 2003 में संशोधन किया गया।
  • सरकार इस कानून को प्रभावकारी तरीके से लागू करने में तेजी लाई और उसने विभिन्न नियमों में संशोधन किए जिसमें गैर पंजीकृत मशीनों को सील करने और उन्हें जब्त करने तथा गैर-पंजीकृत क्लीनिकों को दंडित करने के प्रावधान शामिल है। पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड उपकरण के इस्तेमाल का नियमन केवल पंजीकृत परिसर के भीतर अधिसूचित किया गया। कोई भी मेडिकल प्रैक्टिशनर एक जिले के भीतर अधिकतम दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ही अल्ट्रा सोनोग्राफी कर सकता है। पंजीकरण शुल्क बढ़ाया गया।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे अधिनियम को मजबूती से कार्यान्वित करें और गैर-कानूनी तरीके से लिंग का पता लगाने के तरीके रोकने के लिए कदम उठाएं।
  • सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वे लिंग अनुपात की प्रवृति को उलट दें और शिक्षा और अधिकारिता पर जोर देकर बालिकाओं की अनदेखी की प्रवृत्ति पर रोक लगाएं।
  • स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से कहा है कि वे इस कानून को गंभीरता से लागू करने पर अधिकतम ध्यान दें।
  • पीएनडीटी कानून के अंतर्गत केंद्रीय निगरानी बोर्ड का गठन किया गया और इसकी नियमित बैठकें कराई जा रही हैं।
  • वेबसाइटों पर लिंग चयन के विज्ञापन रोकने के लिए यह मामला संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समक्ष उठाया गया।
  • राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी समिति का पुनर्गठन किया गया और अल्ट्रा साउंड निदान सुविधाएं के निरीक्षण में तेजी लाई गई। बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में निगरानी का कार्य किया गया।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कानून के कार्यान्वयन के लिए सरकार सूचना, शिक्षा और संचार अभियान के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता दे रही है।
  • राज्यों को सलाह दी गई है कि इसके कारणों का पता लगाने के लिए कम लिंग अनुपात वाले जिलों/ब्लाकों/गांवों पर विशेष ध्यान दें, उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन संपर्क अभियान तैयार करे और पीसी और पीएनडीटी कानून के प्रावधानों को प्रभावकारी तरीके से लागू करे।
  • धार्मिक नेता और महिलाएं लिंग अनुपात और लड़कियों के साथ भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में शामिल हैं।

भारत सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। इसमें धनलक्ष्मी जैसी योजना शामिल है।


कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है। बेटे की इच्छा  परिवार नियोजन के छोटे परिवार की संकल्पना के साथ जुडती है और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म दिया है जहाँ बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है। इसलिए समाज के अगुआ लोग माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। इस तरह के अनाचार ने मानवाधिकार, वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग की नैतिकता और लैंगिक भेदभाव के मुद्दों को जन्म दिया है।

गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है। केवल पहले लड़का पाने की परिवार में बुजुर्ग सदस्यों की इच्छाओं को पूरा करने के लिये जन्म से पहले बालिका शिशु को गर्भ में ही मार दिया जाता है। ये सभी प्रक्रिया पारिवारिक दबाव खासतौर से पति और ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा की जाती है। गर्भपात कराने के पीछे सामान्य कारण अनियोजित गर्भ है जबकि कन्या भ्रूण हत्या परिवार द्वारा की जाती है। भारतीय समाज में अनचाहे रुप से पैदा हुई लड़कियों को मारने की प्रथा सदियों से है।

लोगों का मानना है कि लड़के परिवार के वंश को जारी रखते हैं जबकि वो ये बेहद आसान सी बात नहीं समझते कि दुनिया में लड़कियाँ ही शिशु को जन्म दे सकती हैं, लड़के नहीं।

कन्या भ्रूण हत्या का कारण

कुछ सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक नीतियों के कारण पुराने समय से किया जा रहा कन्या भ्रूण हत्या एक अनैतिक कार्य है। भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के निम्न कारण हैं-

कन्या भ्रूण हत्या की मुख्य वजह बालिका शिशु पर बालक शिशु की प्राथमिकता है क्योंकि पुत्र आय का मुख्य स्त्रोत होता है जबकि लड़कियां केवल उपभोक्ता के रुप में होती हैं। समाज में ये गलतफहमी है कि लड़के अपने अभिवावक की सेवा करते हैं जबकि लड़कियाँ पराया धन होती है।

दहेज़ व्यवस्था की पुरानी प्रथा भारत में अभिवावकों के सामने एक बड़ी चुनौती है जो लड़कियां पैदा होने से बचने का मुख्य कारण है।

  • पुरुषवादी भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति निम्न है।
  • अभिवावक मानते हैं कि पुत्र समाज में उनके नाम को आगे बढ़ायेंगे जबकि लड़कियां केवल घर संभालने के लिये होती हैं।
  • गैर-कानूनी लिंग परीक्षण और बालिका शिशु की समाप्ति के लिये भारत में दूसरा बड़ा कारण गर्भपात की कानूनी मान्यता है।
  • तकनीकी उन्नति ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है।

कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ और परिभाषा

कन्या भ्रूण हत्या का मतलब है माँ की कोख से मादा भ्रूण को निकल फेंकना। जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक (दुरुपयोग के नियमन और बचाव) अधिनियम 2002 की धारा 4 (1) (b,c )के तहत के अनुसार भ्रूण को परिभाषित किया गया है- “निषेचन या निर्माण के सत्तानवे दिन से शुरू होकर अपने जन्म के विकास की अवधि के दौरान एक मानवीय जीव।”

कन्या भ्रूण हत्या के प्रभाव

कन्या भ्रूण हत्या ने बुराइयों की एक श्रृंखला को जन्म दिया है। पिछले तीन दशकों में बड़े पैमाने पर कन्या भ्रूण हत्या के कुप्रभाव गिरते लिंगानुपात और विवाह योग्य लड़कों के लिए वधुओं की कमी के रूप में सामने आये हैं। इसके अलावा जनसंख्या विज्ञानी आगाह करते हैं कि अगले बीस सालों में चूँकि विवाह योग्य महिलाओं की संख्या में कमी आएगी इसलिए पुरुष कम उम्र की महिलाओं से विवाह करेंगे जिससे जन्मदर में वृद्दि के कारण जनसंख्या वृद्धि के दर भी ऊँची हो जाएगी। लड़कियों को अगवा करना भी इसी से जुडी एक समस्या है। अविवाहित पुरुषों की अधिक तादाद वाले समाज के अपने खतरे हैं। यौनकर्मी के तौर पर अधिक महिलाओं का शोषण होने की सम्भावना है। यौन शोषण और बलात्कार इसके स्वाभाविक परिणाम हैं। पिछले कुछ सालों से यौन अपराधों का तेजी से बढता ग्राफ असमान लिंगानुपात के परिणामों से जुड़ा है।

अपराध से जुड़े क़ानूनी प्रावधान

भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान : भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है: ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’। इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी  धारा 312 से 318  गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318)। हालाँकि भ्रूण हत्या या शिशु हत्या शब्दों का विशेष तौर पर इस्तेमाल नहीं किया गया है , फिर भी ये धाराएं दोनों अपराधों को समाहित करती हैं।

इन धाराओं में जेंडर के तटस्थ शब्द का प्रयोग किया गया है ताकि किसी भी लिंग के भ्रूण के सन्दर्भ में लागू किया जा सके। हालाँकि भारत में बाल भ्रूण हत्या या शिशु हत्या के बारे में कम ही सुना गया है। भारतीय समाज में जहाँ बेटे की चाह संरचनात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ी हुई है, वहीँ महिलाओं को बेटे के जन्म के लिए अत्यधिक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दबाव झेलना पड़ता है। इन धाराओं ने कुछ और जरूरी मुद्दों पर विचार नहीं किया है जिनमें महिलाएं अत्यधिक सामाजिक दबावों की वजह से अनेक बार गर्भ धारण करती हैं और लगातार गर्भपातों को झेलती हैं।

1964 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया । शांतिलाल शाह नाम से गठित इस समिति को महिलाओं द्वारा की जा रही गर्भपात की कानूनी वैधता की मांग के मद्देनजर महिला के प्रजनन अधिकार के मानवाधिकार के मुद्दों पर विचार करने का काम सौंपा गया। 1971 में संसद में गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम, 1971 (एमटीपी एक्ट) पारित हुआ जो 1 अप्रैल 1972 को लागू हुआ और इसे उक्त अधिनियम के दुरुपयोग की संभावनाओं को को ख़त्म करने के उद्देश्य से गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति संशोधन अधिनियम (2002 का न।64) के द्वारा 1975 और 2002 में संशोधित किया गया। गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम केवल आठ धाराओं वाला छोटा अधिनियम है। यह अधिनियम महिला की निजता के अधिकार, उसके सीमित प्रजनन के अधिकार , उसके स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के अधिकार, उसका अपने शरीर के सम्बन्ध में निर्णय लेने के अधिकार की स्वतंत्रता की बात करता है लेकिन कुछ बेईमान लोग केवल कन्या भ्रूण को गिराकर इसका बेजा फायदा उठा रहे हैं।

एमटीपी एक्ट में गर्भ को समाप्त करने की दशाएं (धारा 3), और ऐसा करने के लिए व्यक्ति (धारा 2 d) और स्थान (धारा 4) को निर्धारित किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार निम्न दशाओं में गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जाती है-

(1)  जिसमें गर्भ को जारी रखने की सलाह नहीं दी गयी हो और गर्भ महिला के जीवन के लिए खतरा बन सकता है और यह बतौर गर्भवती उसे कुछ गंभीर रोगों से पीड़ित बना सकता है-

  • रक्तचाप में अत्यधिक वृद्धि
  • गर्भावस्था के दौरान अनियंत्रित उल्टियाँ
  • स्तन और गले का कैंसर
  • आँखों में परेशानी के साथ (रेटिनोपैथी)
  • मिर्गी
  • मानसिक बीमारी

(2)  जहाँ पर गर्भावस्था के जारी रहने पर नवजात शिशु के लिए काफी जोखिम हो सकता है और इससे गंभीर तौर पर मानसिक/ बौद्धिक विकलांगता उत्पन्न हो सकती है। जैसे-

  • गुणसूत्रीय विकृतियाँ
  • पहले तीन हफ़्तों में माँ को खसरे का संक्रमण
  • अगर पहले से बच्चों में जन्मजात विकृतियाँ हों
  • आर एच  विसंगति से जुड़े जोखिम
  • तय समयसीमा से अधिक भ्रूण को विकिरणों के सामने रखना

(3)  जहाँ पर बलात्कार के कारण गर्भ ठहरा हो (1 से धारा 3 में व्याख्यायित)

  • जहाँ माँ आर्थिक और सामाजिक दशाओं के मद्देनजर उसे स्वस्थ रूप से गर्भवती रहने और स्वस्थ शिशु को जन्म देने में कठिनाई हो और
  • उपाय अपनाने के बावजूद गर्भ निरोध उपकरणों की असफलता (2 से धारा 3 में व्याख्यायित)

किसी भी गर्भपात से पहले स्त्री रोग विशेषज्ञ की पूर्व सलाह लेना आवश्यक है। और अगर 12 हफ़्तों से अधिक और 20 हफ़्तों से कम दिनों का है तो दो डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी है (धारा 2(क) और (ख))। गर्भ गिराने के लिए निश्चित प्रपत्र पर महिला की लिखित सहमति लेना आवश्यक है। महिला की सहमति स्वतंत्र होनी चाहिए और उक्त दशाओं पर ही आधारित होनी चाहिए। पति की सहमति की आवश्यकता नहीं है।18 साल से कम उम्र की लड़कियों, और मानसिक रूप से अस्थिर महिलाओं के सम्बन्ध में उनके अभिभावकों की सहमति लेना आवश्यक है (धारा 3)। इस सहमति में यह आश्वासन दिया जाता है कि चिकित्सक के द्वारा किये जाने वाले गर्भपात के लिए वह अपनी मर्जी से राजी है और उसे प्रक्रिया, उसमें निहित खतरे और उसके बाद बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जानकारी दे दी गयी है।

यह अधिनियम गर्भपात करने वाले चिकित्सकों की योग्यता का भी निर्धारण करता है और केवल सरकारी लाइसेंस प्राप्त केन्द्रों पर ही गर्भपात कराया जा सकता है। इन संस्थानों को सरकार द्वारा जारी प्रमाणपत्र को केंद्र में ऐसी जगह पर लगाना होगा जिससे कोई भी बाहरी व्यक्ति उसे देख सके।

इस अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य अवैध गर्भपात के खतरों को कम करना है जो कि नीम-हकीमों के अप्रशिक्षित हाथों से गर्भपात करने पर किसी महिला के जीवन और सेहत के लिए खतरनाक बन सकता है। इसके साथ ही इस अधिनियम का मकसद महिलाओं को उनके शरीर पर अधिक नियंत्रण देने और समग्र भलाई के लिए गर्भपात को उदार बनाना है। लेकिन यह अधिनियम पुराना हो चुका है क्योंकि यह विवाद के उन मुद्दों को संबोधित करने में असमर्थ है जो कि विधिक अधिकारों की दृष्टि से अजन्मे बच्चे बनाम आपराधिक और संपत्ति अधिकार के रूप में सामने आते हैं। आज गर्भ में बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद लापरवाही बरतने के कारण विकृति के साथ पैदा हुए एक बच्चे की वजह से लॉ ऑफ़ टोर्ट्स के तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है। 18 दिसम्बर 1979 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभावों के उन्मूलन की वियना घोषणा (सीडॉ) को मंजूर किया । 19 जून 1993 को भारतीय सरकार ने इसी घोषणा को यथावत मंजूर कर लिया। सीडॉ की प्रस्तावना में कहा गया है - महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव समानता के सिद्धांत और मानवीय गरिमा के आदर का घोर उल्लंघन है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कानूनों में बदलाव या मौजूदा कानूनों, नियमों, परिपाटियों और प्रथाओं में से जेंडर आधारित भेदभाव को ख़त्म करने के लिए उचित कदम उठाए।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन के अधिकार” की घोषणा करता है। अनुच्छेद 51A (e) महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग की व्यवस्था भी करता है। उपरोक्त दोनों घोषणाओं के आलोक में भारतीय संसद ने लिंग तय करने वाली तकनीक के दुरुपयोग और इस्तेमाल से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक (दुरुपयोग का नियमन और बचाव ) अधिनियम, 1994 पारित किया। इस अधिनियम के प्रमुख लक्ष्य हैं-

गर्भाधान पूर्व लिंग चयन तकनीक को प्रतिबंधित करना

लिंग-चयन संबंधी गर्भपात के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों के दुरूपयोग को रोकना

जिस उद्देश्य से जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों को विकसित किया है, उसी दिशा में उनके समुचित वैज्ञानिक उपयोग को नियमित करना

सभी स्तरों पर अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना

इस अधिनियम को बड़े जोर-शोर से पारित किया गया लेकिन राज्य इसे समुचित तरीके से लागू करने के लिए माकूल व्यवस्था करने में नाकामयाब रहा। क्लीनिकों में अधूरे अभिलेखों अथवा अभिलेखों के देख-रेख के अभाव में यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि कौन-से अल्ट्रा-साउंड का परीक्षण किया गया था। यहाँ तक कि पुलिस महकमा भी सामाजिक स्वीकृति के अभाव में इस अधिनियम के तहत कोई मामला दर्ज करने में असफल रहा है। डॉक्टरों द्वारा कानून का धड़ल्ले से उल्लंघन जारी है जो अपने फायदे के लिए लोगों का शोषण करते हैं। गर्भाधान के चरण के दौरान X और Y गुणसूत्रों को अलग करना, पीसीजी इत्यादि नयी तकनीकों के दुरुपयोगों ने इस अधिनियम को नयी स्थितियों में बेअसर बना दिया है।

इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए और मौजूदा कानून में खामियों पर जीत हासिल करने के लिए स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण मंत्रालय ने संशोधनों की एक श्रृखंला प्रस्तावित की थी जिसे संसद में मंजूर कर लिया गया था। इससे पीएनडीटी अधिनियम 2002 दिसम्बर में अस्तित्व में आया।बाद में इस अधिनियम को गर्भाधान पूर्व-प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक (लिंग चयन प्रतिबन्ध) अधिनियम कहा गया। इसके बाद स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रसव-पूर्व परीक्षण (दुरुपयोग का नियम एवम बचाव) अधिनियम 2003 ने 14 फरवरी को 1996 के नियम को विस्थापित कर दिया।

पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट की प्रमुख विशेषताएं

  • इस अधिनियम ने सभी परीक्षण प्रयोगशालाओं के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया है। और अल्ट्रा साउंड के उपकरणों के निर्माता को अपने उपकरणों को पंजीकृत प्रयोगशालाओं को बेचने के  निर्देश दिए हैं। इसके अनुसार कोई भी निजी संगठन समेत व्यक्ति , अल्ट्रा साउंड मशीन , इमेजिंग मशीन, स्कैनर या भ्रूण के लिंग के निर्धारण में सक्षम कोई भी उपकरण निर्माता, आयातक, वितरक या आपूर्तिकर्ता के लिए इन्हें बेचना, वितरित करना, आपूर्ति करना, किराये पर देना या भुगतान या अन्य आधार पर इस अधिनियम के तहत अपंजीकृत किसी आनुवंशिक परामर्श केंद्र, जेनेटिक प्रयोगशाला, जेनेटिक क्लिनिक, अल्ट्रा साउंड क्लिनिक, इमेजिंग स्क्रीन या अन्य किसी निकाय या व्यक्ति को ऐसे उपकरणों या मशीनों के प्रयोग की अनुमति नहीं दे सकता है। (पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के नियम 3 A के साथ धारा 3 B)
  • फॉर्म-बी में पंजीकरण प्रमाणपत्र को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना चाहिए यानि कि जहाँ से यह सबको दिखाई दे। ( पीएनडीटी नियमों के नियम 4 (i) (ii), नियम 6 (2), 6 (5) एवं 8 (2))।
  • इस अधिनियम के अन्तर्गत ऐसी मशीनों और उपकरणों के पंजीकृत निर्माताओं को सम्बन्ध राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और केंद्र सरकार के उपयुक्त प्राधिकारियों को तीन महीने में एक बार अपने उपकरणों के क्रेताओं की सूची देनी होगी और ऐसे व्यक्ति या संगठन से उसे हलफनामा लेना होगा कि वह इन उपकरणों का इस्तेमाल भ्रूण के लिंग चयन के लिए नहीं करेंगे।
  • पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 के तहत केवल निम्न परिस्थितियों में प्रसव-पूर्व परीक्षण तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जब:
  • महिला की आयु 35 वर्ष से अधिक हो।
  • गर्भवती 2 या 2 से अधिक गर्भपात या भ्रूण की हानि को झेल चुकी हो।
  • गर्भवती संभावित रूप से हानिप्रद अभिकर्म्कों जैसे मादक पदार्थ, विकिरणों, संक्रमण या रसायनों के संपर्क में आ चुकी हो।
  • गर्भवती या उसके पति के परिवार में किसी को मानसिक विकार या शारीरिक विकृति रही हो जैसे अन्य अनुवांशिक रोग; या
  • मंडल द्वारा तय की गयी कोई अन्य दशा।
  • सभी परामर्श केन्द्रों, अनुवांशिक प्रयोगशालाओं, और अल्ट्रा साउंड क्लिनिक्स को जो किसी गर्भवती स्त्री पर स्कैन, टेस्ट या अन्य प्रक्रियाओं को संचालित कर रहे हैं, इन परीक्षणों का पूरा विवरण रखना होगा जिसमें कि नाम, पति का नाम, चिकित्सक का नाम- पता और परीक्षण, स्कैन या प्रक्रियाओं की आवश्यकता के कारण। इन जानकारियों को फॉर्म ‘ऍफ़’ में दर्ज होना चाहिए। (पीएनडीटी अधिनियम का नियम 9 (4))
  • जब भी कोई गर्भवती महिला अनुमति प्राप्त उद्देश्यों के अतिरिक्त प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक से जाँच कराती है तो यह माना जाएगा की उस पर उसके पति या अन्य रिश्तेदारों ने परीक्षण करने का दबाव बनाया है और उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएया।( पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 24)।

पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत प्रतिबंधित कृत्य

(क) लिंग चयन या लिंग का पूर्व-निर्धारण की सेवा देने वाले विज्ञापनों का प्रकाशन;

(ख) गर्भाधान-पूर्व या जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों वाले क्लीनिकों का पंजीकृत नहीं होना या क्लिनिक या संस्थान के भीतर सबको दिखाई देने वाले पंजीकरण प्रमाणपत्र को प्रदर्शित नहीं करना;

(ग) अजन्मे बच्चे के लिंग का निर्धारण करना;

(घ) गर्भवती को लिंग निर्धारण परीक्षण के लिए मजबूर करना;

(ङ)  लिंग चयन की प्रक्रिया में सहयोग या सुविधा प्रदान करना;

(च) चिकित्सक द्वारा गर्भवती या अन्य व्यक्ति को अजन्मे बच्चे के लिंग के बारे में किसी भी तरह सूचित करना।

(छ) पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत क्लीनिकों द्वारा अभिलेखों को भली-भांति सहेज कर नहीं रखना।

पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट का क्रियान्वयन

इस अधिनियम के क्रियान्वयन का निरीक्षण और पुनरीक्षण करने के लिए राज्यस्तरीय निरीक्षण निकाय को बनाने की सिफारिश की गयी थी। यह निकाय गर्भाधान पूर्व और जन्म-पूर्व भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने की कुप्रथा के प्रति जनता को जागरूक करेगा। यह राज्य में इस क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के कामकाज की निगरानी करेगा और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहने पर उनके खिलाफ कार्रवाई भी करेगा। इस अधिनियम और इसके नियमों के तहत चलायी जा रही विभिन्न गतिविधियों का भी यह संज्ञान लेगा और केन्द्रीय निगरानी आयोग और केंद्र सरकार को इस सम्बन्ध में ठोस रिपोर्ट भेजेगा।

कोई भी शिकायतकर्ता अपनी शिकायत को राज्य स्तरीय प्राधिकरण में नियुक्त प्राधिकृत अधिकारी के सामने दर्ज करा सकता है। इस अधिकारी का दर्जा स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त निदेशक, स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण विभाग के पद से ऊपर होगा। जिला स्तर पर सिविल सर्जन या मुख्य चिकित्सा अधिकारी और नगर में मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी या वार्ड स्वास्थ्य अधिकारी या चिकित्सा अधीक्षक को प्राधिकृत किया जाएगा। शिकायत लिखित में दर्ज की जाएगी और उसके प्राधिकारी को भी पावती देनी होगी। अगर नियुक्त प्राधिकरण 15 दिन के अन्दर कार्रवाई करने में विफल रहता है तो शिकायतकर्ता उपयुक्त न्यायक्षेत्र वाली अदालत में पावती के साथ जा सकता है।

इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर जिसमें बिना लाइसेंस के प्रयोगशालाओं को चलाना भी शामिल है, उपकरणों को सील कर दिया जाएगा। उपयुक्त प्राधिकरण उपकरणों को सील करने के साथ साथ उनके उपयोग को प्रतिबन्धित कर सकता है। लिंग चयन में लिप्त पाए गए दोषियों की जुर्माना राशी पचास हज़ार से बढ़ाकर एक लाख की गयी है जिसमें चिकित्सक का पंजीकरण रद्द करने, निलंबन का अतिरिक्त प्रावधान है।

कन्या भ्रूण हत्या के प्रतिरोध के लिए सुझाव

केवल कानून बना देने से सामाजिक बुराई का अंत नहीं हो सकता। महिलाओं के प्रति भेदभाव आम बात है और ख़ास तौर पर कन्या के प्रति उपेक्षा हमारे समाज में गहरे जड़ों तक धंसी है। तमाम कानूनों के बावजूद समाज में पुरुषों की श्रेष्ठता की गलत अवधारणा समाज के लिए खतरनाक है। आम जनता को महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध भेदभाव रखने वाली प्रथाओं के उन्मूलन के लिए संवेदनशील बनाने की तत्काल आवश्यकता है।

गिरते लिंग अनुपात को सँभालने की जरुरत है और इसमें राज्य, मीडिया, पत्रकारों, गैर-सरकारी संगठनों, चिकित्सकों, महिला संगठनों और जनता को साथ खड़े होने की आवश्यकता है ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि कन्या भ्रूण हत्या विरोधी कानून पूरे तरीके से और कारगर ढंग से लागू हो पाएं। निगरानी, शैक्षिक अभियान और प्रभावी कानूनी क्रियान्वन, इन सबके संयोजन से लोगों के मन में गहरी बैठी महिला और कन्या विरोधी मानसिकता और कुप्रथाओं को दूर किया जा सकता है। इस संबंध में धार्मिक नेताओं को भी आगे आना चाहिए। उन्हें धर्मग्रंथों के सम्बन्ध में भ्रांतियों के बारे में स्पष्ट करना चाहिए और वैज्ञानिक, तार्किक और मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए। पारंपरिक रूप से पुत्र के जन्म तक सीमित धार्मिक कर्मकांडों को बेटी के सन्दर्भ में भी विस्तृत करना चाहिए।

कई राज्यों ने कन्याओं के लिए योजनाएं जारी की हैं जैसे कि कन्या के जन्म पर माता-पिता को नकदी देना, स्नातक स्तर तक मुफ्त शिक्षा, कुछ पॉलिसी में किश्तों में भुगतान किया जाता है जो कन्या के विवाह के समय परिपक्व होती हैं, इत्यादि। जमीनी स्तर पर स्थानीय पंचायतों को भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। स्थानीय नेताओं को अपने इलाके के शिक्षित लोगों को जागरूक करने, जनता को शिक्षित करने के लिए नियुक्त करना चाहिए ताकि लोगों का सबलीकरण हो और कन्या भ्रूण हत्या विरोधी अभियानों में महिलाओं को अभियानों में सबसे आगे खड़ा करना चाहिए। सूचना देने वालों को पुरस्कार देना चाहिए। इस कुप्रथा की भयावहता और गंभीरता के बारे में मीडिया में व्यापक प्रचार होना चाहिए। गैर-सरकारी संगठनों को जनता को इस सम्बन्ध में शिक्षित करने की भूमिका निभानी चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग, गैर-सरकारी संगठन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को मौजदा कानूनों को समुचित ढंग से लागू करने के लिए बेहतर योजनायें बनानी चाहिए और अख़बारों, रेडियो, दूरदर्शन और इन्टरनेट पर व्यापक स्तर पर जन अभियान चलाने चाहिए।

चिकित्सा व्यवसाय और इसके संगठनों जैसे भारतीय चिकित्सा संगठन, रेडियोलाजिस्ट एसोसिएशन, प्रसूति विशेषज्ञ तथा स्त्री रोग विशेषज्ञों के संगठन इत्यादि के साथ चिकित्सा जगत को मानवता के व्यापक हित में अपने तुच्छ स्वार्थों को छोड़ना चाहिए। चिकित्सकों के लिए एक मजबूत आचार संहिता बनाने की आवश्यकता है। भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम , 1956, चिकित्सा परिषद् की नैतिक आचार संहिता, 1970 वर्तमान कानूनों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए संशोधित किया जाना चाहिए और सबसे बड़ी बात महिलाएं जो जननी हैं उन्हें बेटा पैदा करने की थोपी हुई जिम्मेदारी से स्वयं को मुक्त करना चाहिए। चाहे लड़का हो या लड़की, एक बच्चे को स्वास्थ्य रूप से जन्म लेने का अधिकार है और यह माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वह शिशु को उसके विकास के लिए सुरक्षित, देखभाल से भरा वातावरण प्रदान करें।  सभी महिलायें, चाहे वो माँ हों या सास, सभी को अपने स्तर पर इस दुर्व्यवहार को रोकना चाहिए।  हमें अपनी बेटियों को बेटों की तरह पालना चाहिए और उन्हें समान रूप से सफ़ल बनाना चाहिए और इस पुरानी धारणा को खारिज करना चाहिए कि लड़कियों की शिक्षा केवल विवाह के लिए ही काम आती हैं दुनिया का सामना करने के लिए शिक्षा एक हथियार है। भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या की गंभीर चुनौती को रोकने के लिए हमें महिलाओं को सशक्त बनाना होगा। दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाकर और मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू कर महिला अधिकारों को मजबूती देनी होगी।

कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं रोकने के उपाय

सरकार ने देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई है। इसमें जागरुकता पैदा करने और विधायी उपाय करने के साथ-साथ महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक रूप से अधिकार संपन्न बनाने के कार्यक्रम शामिल हैं। इनमें से कुछ उपाय नीचे दिए गए है-

  1. गर्भ धारण करने से पहले और बाद में लिंग चयन रोकने और प्रसवपूर्व निदान तकनीक को नियमित करने के लिए सरकार ने एक व्यापक कानून, गर्भधारण से पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर रोक) कानून 1994 में लागू किया। इसमें 2003 में संशोधन किया गया।
  2. सरकार इस कानून को प्रभावकारी तरीके से लागू करने में तेजी लाई और उसने विभिन्न नियमों में संशोधन किए जिसमें गैर पंजीकृत मशीनों को सील करने और उन्हें जब्त करने तथा गैर-पंजीकृत क्लीनिकों को दंडित करने के प्रावधान शामिल है। पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड उपकरण के इस्तेमाल का नियमन केवल पंजीकृत परिसर के भीतर अधिसूचित किया गया। कोई भी मेडिकल प्रैक्टिशनर एक जिले के भीतर अधिकतम दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ही अल्ट्रा सोनोग्राफी कर सकता है। पंजीकरण शुल्क बढ़ाया गया।
  3. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे अधिनियम को मजबूती से कार्यान्वित करें और गैर-कानूनी तरीके से लिंग का पता लगाने के तरीके रोकने के लिए कदम उठाएं।
  4. माननीय प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वे लिंग अनुपात की प्रवृति को उलट दें और शिक्षा और अधिकारिता पर जोर देकर बालिकाओं की अनदेखी की प्रवृत्ति पर रोक लगाएं।
  5. स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से कहा है कि वे इस कानून को गंभीरता से लागू करने पर अधिकतम ध्यान दें।

 

  1. पीएनडीटी कानून के अंतर्गत केंद्रीय निगरानी बोर्ड का गठन किया गया और इसकी नियमित बैठकें कराई जा रही हैं।
  2. वेबसाइटों पर लिंग चयन के विज्ञापन रोकने के लिए यह मामला संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समक्ष उठाया गया।
  3. राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी समिति का पुनर्गठन किया गया और अल्ट्रा साउंड निदान सुविधाएं के निरीक्षण में तेजी लाई गई। बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में निगरानी का कार्य किया गया।
  4. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कानून के कार्यान्वयन के लिए सरकार सूचना, शिक्षा और संचार अभियान के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता दे रही है।
  • राज्यों को सलाह दी गई है कि इसके कारणों का पता लगाने के लिए कम लिंग अनुपात वाले जिलों/ब्लाकों/गांवों पर विशेष ध्यान दें, उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन संपर्क अभियान तैयार करे और पीसी और पीएनडीटी कानून के प्रावधानों को प्रभावकारी तरीके से लागू करे।
  • धार्मिक नेता और महिलाएं लिंग अनुपात और लड़कियों के साथ भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में शामिल हैं।

 

भारत सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। इसमें धनलक्ष्मी जैसी योजना शामिल है।

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो से प्राप्त जानकारी के अनुसार 2011 के दौरान देश में कन्या भ्रूण हत्या के कुल 132 मामले दर्ज किए गए। इस सिलसिले में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया, 58 के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया और 11 को दोषी ठहराया गया।


अट्टा-सट्टा atta satta अदला बदली Sister Exchange Marriage

 

आप उत्तरप्रदेश, हरियाणा में हैं तो तय है कि 1000 में से 82 लोगों को तो कुंवारा कहो या अविवाहित ही जिन्दगी बसर करनी है, क्योंकि यहां पर 1000 पर मात्र 912 ही महिलाएं हैं । वहीं यदि आप आगरा में पैदा हुए हैं तो यह तय है कि 1000 में से 125 लोग कभी दुल्हा नहीं बन पाते, कभी घोड़ी नहीं चढ पाते, क्योंकि पश्चिमी उत्तरप्रदेश का लिंगानुपात बेहद पिछड़ा हआ है और इसमें भी आगरा में तो जैसे बेटी पैदा होने से ही दुश्मनी हो । इसलिए यहां पर जहां   पर 1000 पुरूषों पर महिलओं की संख्या 875 ही है । यह कहानी तो 2011 के आंकडे़ बोल रहे हैं लेकिन अब पांच साल में एक नया ट्रेंड अट्टा सट्टा आ गया है । 

बहन देकर लाओ बहू 
दरअसल आगरा में एक तो लड़कियों की संख्या कम, उपर से लड़कियां पढी लिखी हैं । अब ऐसे में यदि लड़का सरकारी नौकरी में लग गया तो उसकी शादी में तो कोई समस्या नहीं आती लेकिन यदि बेरोजगार है तो उसके लिए मां-बाप को दीपक लेकर खोजने पर भी बहू नहीं मिलती । अब ऐसे में अपने ही जैसे बेरोजगार लड़के वाले किसी अन्य परिवार से एक समझौता किया जाता है  कि आपकी लड़की हमारे लड़के को ब्याह दो और हमारी लड़की से आपके लड़के की शादी कर देते हैं । इसे ही स्थानीय भाषा में अट्टा-सट्टा कहते हैं । हालांकि यह चलन पहले भी था लेकिन तब आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर जातियों में ही प्रचलित था । अब तो बडे़-बडे़ घ्ररों में यह समस्या आ रही है और इसलिए यह अट्टा-सट्टा शब्द ज्यादा ही प्रचलन में आ गया है । 

नहीं करते बेटी की शादी 
परम्परागत रूप से पश्चिमी उत्तरप्रदेश में यदि शादी लायक लड़की घर में हो तो पहले उसका ही ब्याह किया जाता है लेकिन अब उल्टा होने लगा है । लोगों को डर सताता है कि यदि बेटी पहले ब्याह दी और लड़का बेरोजगार रह गया तो फिर उनके बेटे को बहू नहीं मिल पाएगी । उनको डर रहता है कि लड़की की शादी पहले कर दी तो अट्टा-सट्टा का विकल्प भी नहीं रह जाएगा । 



A woman trafficked five years ago from West Bengal by her sister and brother-in-law. Photo: Priyanka Parashar/Mint<br /><br />
A woman trafficked five years ago from West Bengal by her sister and brother-in-law. 

Human trafficking caters to demand for brides


A field study in Haryana found that over 9,000 married women were bought from other states


Haryana-  Last year, she was raped by someone she called mausa (uncle) in front of and on the bed of a woman she called mausi (aunt). Then, the mausa sold her off as a bride to a 45-year-old widower, father of a three-year-old, in Haryana. Price of the exchange: 70,000.

Haryana, with the country’s worst sex ratio of 879 girls to 1,000 boys, now has to increasingly import brides from poverty-stricken states such as Assam, West Bengal, Jharkhand and Odisha. It’s the same story in Punjab and Uttar Pradesh where female foeticide is high and the sex ratio skewed. According to the 2013 National Crime Records Bureau (NCRB) report, 24,749 children and women between the ages of 15 and 30 were kidnapped and sold into marriage across the country.

Hundreds of girls and young women are sold into forced marriages in northern India, finds a report by the non-governmental organization (NGO) Shakti Vahini. “They are bartered at prices that vary depending on their age, beauty and virginity, and exploited under conditions that amount to a modern form of slavery," the report states.

A field study on the impact of the sex ratio on marriage by NGO Drishti Stree Adhyayan Prabodhan Kendra that covered over 10,000 households in Haryana found that over 9,000 married women were bought from other states. The study, which covered 92 villages of Mahendragarh, Sirsa, Karnal, Sonepat and Mewat districts, said that most people accepted this as a common practice, even though they personally denied having purchased a bride in their family.

With its blend of poverty, illiteracy, naiveté, trust and betrayal, the story of this family in North Bengal is being repeated in countless villages across India. An old, ailing mother, an estranged son, a 23-year-old illiterate, unmarried daughter, another daughter, and a deaf and mute son—the family’s sole breadwinner making no more than 80 a day by working in a tea plantation.

Most households in the Darjeeling hills and the Dooars-Terai region located in the foothills of the Himalayas depend on the 300-odd plantations located here. In the late 1990s, when tea leaf prices dropped, many owners cut wages and, in some cases, abandoned their plantations altogether. By 2003-04, many tea estates had shut down. Newspapers reported starvation deaths; according to The Times of India, nearly 100 people have died of starvation and acute malnutrition in the five gardens closed in the Dooars since January last year. Five died in June alone.

Tall with sharp features and long hair, the 23-year-old lives in a village in Banarhat, nearly 95km from Siliguri. She walks with difficulty and complains of soreness and a constant stomach ache. The weakness caused by malnutrition is evident. Those who could afford to migrate did. But for this family with its physically disabled son, migration was not an option and so they stayed on, even though there were days when the chulha (cook stove) could not be lit.

The so-called mausa, Rajendra Pal, lived next door. Originally from Haryana, he had married the teenager’s neighbour by hiding the fact of his previous marriages.

It was Rajendra Pal who suggested the family make a trip to Haryana to see a famous godman who, he claimed, would cure them of their chronic problems. He even offered to pay for their travel.

The girl was reluctant. “I kept saying I am a woman. They wouldn’t do anything to my mother. They couldn’t have taken anything from my brother. But I am a woman. They can do anything they want to with me, and I will be ruined for life," she says she told her mother.

But Rajendra Pal persisted. She was like his daughter, he said. Just stepping into the godman’s ashram would cure her problems. Why, the godman had even healed mausa’s leg after an accident, he said.

The family relented. “The problem with us poor people is that we trust very easily, and we trust everyone," says the 23-year-old’s elder sister. Three days after they reached Haryana, mausa locked the girl’s mother and brother in a room and raped the 23-year-old.

“Mausi was watching and kept asking me not to cry. Let him do what he wants. He is your mausa," the girl says.

Two days later, Pal sold her to a 45-year-old resident of Kheri Mansingh village in Karnal district of Haryana and married the two off in his lawn. He told the girl he would kill her if she tried to run away.

There was nowhere to run to. Once, she said, she hid in a maize field for close to 24 hours, hungry and thirsty and soaked in sludge till her waist. She thought she had escaped till they found her again.

“I had to do all the household chores—cleaning the house, cooking, rearing the cattle and a horse—and still they kept complaining," she says.

Brides for sale

Large-scale bride trafficking has been taking place in Haryana, Punjab and other low-sex-ratio states for over two decades, say NGOs. Even if the Haryana government ensures that not a single sex-determination test or sex-selective abortion takes place, demographers believe it will take 50 years for the population to stabilize and return to its natural ratio. The challenge before not just Haryana but also western Uttar Pradesh, Punjab and Rajasthan is to ensure that bride demand is not catered through human trafficking. “The governments in these regions should ensure legislations which protect the rights of women and children," the United Nations Office on Drugs and Crime (UNODC)’s anti-trafficking report released in 2013 states.

Many men in Haryana, however, claim that the shortage of brides is not caused by the skewed sex ratio as much as the rising levels in women’s education.“Women here study much more than men do. And she obviously will want to marry a man who has studied at least as much as she has, if not more. This is making it increasingly difficult for lesser educated men to find brides," says Vinod Bala Dhankar, a social activist and woman khap leader based in Jhajjar district of Haryana.

Moreover, bringing in a molki, or purchased bride, actually works out cheaper. “Even if you are poor, you would give a bride from Haryana gold worth at least  1.5 lakh plus clothes and other gifts. But for a molki you only pay for a mangalsutra and a gold ring," says Dhankar.

Strict caste and marriage rules among the Jats of Haryana also place restrictions on marriages between two people from within the same gotra, same village or even adjoining villages. This, too, limits the options before the state’s marriageable men.

Faced with these limitations, organized groups of unmarried youth have sprung up in the state with famous slogans such as bahu-dilao-vote-lo (brides-for-votes). The Kunwara Union (Unmarried Youth Organization) was founded five years ago by social activist Pawan Kumar. A similar outfit, Avivahit Purush Sangthan (Unmarried Union), was set up by Bibipoor village panchayat head Sunil Jaglan to look into the issue of gender imbalance caused by female foeticide.

Dhakla village in Haryana’s Jhajjar district has a population of nearly 4,000 people. A narrow, dusty, single lane leads to Rekha’s house. She has tied a dupatta around her head in the form of a bandana, and speaks Haryanavi as fluently and with as much confidence as the locals. In 2007, she came to Sonepat from North Bengal, after her cousin invited her to visit. The day she arrived, she was sold off for  50,000.

But Rekha bursts into laughter at the suggestion that she was sold. “I don’t want to think of what happened. Probably I wouldn’t have had such a happy life if I was still with my family. We were very poor," she says.

Just half a mile from Rekha’s house lives another woman, nearly 30 years old. Five years ago, her sister sold her off to a man who had two brothers, one older and one younger. The two brothers have decided not to marry. The woman, who does not want to be named, says her husband beats her up almost every night and has asked her more than once to leave.

Worse, within a month of her marriage, the elder brother tried to rape her. Just last month, he sexually assaulted her again, she says. Even the younger brother has assaulted her twice.

“The scarcity of women has been there for long. But earlier, if a family had four brothers, they would just get one woman and she would take care of everyone and everything," says Om Parkash Dhankar, Sarv Khap Panchayat coordinator in Haryana.

Since the women are “purchased", men think they can do whatever they want to with them. “In the beginning, brides were imported from adjoining regions like Ganganagar and Rajasthan’s Alwar area, but slowly women were brought from West Bengal, Assam and such states," says Rakesh Senger from NGO Bachpan Bachao Andolan. “These women do not go back to their native places and so their husbands do not feel accountable to anyone. They think they can do anything with them and no one will question them. Because they have purchased them, these women serve both as sex slaves as well as labour slaves for these men."

Recently, the Bharatiya Janata Party’s National Kisan Morcha president O.P. Dhankar stoked a controversy by saying his party would get girls from Bihar for the unmarried young men of Haryana. More than a month after his controversial statement, Dhankar says: “We cannot stop migration. What we should look for is ways to legalize this process. I think both the source and the destination states should make it mandatory to register these inter-state marriages."

On September 16 last year, when the 23-year-old was working in the kitchen, she heard someone shout her name. It was her sister accompanied by Haryana Police and NGO Shakti Vahini. When the villagers learned about the joint rescue operation, a huge crowd gathered around her house with knives and sticks, shouting that they wouldn’t let anyone take their bride away as they had paid for her and she was their property.

Under police protection, the 23-year-old was brought to the local thana. “Finally I was free. It felt like nothing worse could happen to me any more," she says.

And then a pregnancy test confirmed that she was pregnant. The child, she says, is Pal’s, who is now out on bail. Even though nothing legally stops an investigating officer from conducting an investigation anywhere in the country, Pal has relocated to West Bengal, out of the reach of Haryana Police.

“They forced us to withdraw the case against Pal’s wife by emotionally blackmailing us, saying she has a small child," the 23-year-old’s elder sister says. “But my sister’s life is ruined. Nothing happened to the people who did this to her. When an item in the market is damaged or has some flaw, no one wants it...there are no buyers."




Friday 29 May 2020

Famous Brahmins / Pandits


List of Brahmins those are succesfull

Spiritual Persons/Saints

Scientists

  • Aryabhata – Mathematician, Astronomer  (Identity theft by Brahmins for racial promotion will be exposed in this blog soon)
  • Charaka – Medicine (Identity theft by Brahmins for racial promotion will be exposed in this blog soon)
  • Sushruta – Medicine (Identity theft by Brahmins for racial promotion will be exposed in this blog soon)
  • Jogesh Pati– Theoretical Physicist
  • Varahamihira – Mathematician, Astrologer, Astronomer (Identity theft by Brahmins for racial promotion will be exposed in this blog soon)
  • Brahmagupta – Mathematician, Astronomer (Identity theft by Brahmins for racial promotion will be exposed in this blog soon)
  • Ramanujan – Mathematical Genius
  • C.V.Raman – Physicist
  • Subrahmanyan Chandrasekhar – Physicist
  • Yellapragada Subbarao – BioChemist
  • M S Swaminathan (Agriculture Scientist)

Freedom Fighters

Nobel Prize

Sports

Athletics

Archery

Badminton

Chess

Cricket

Shooting

Tennis

Media and entertainment

Ajay Devgun, Bollywood Actor Arjun Rampal Manoj bajpai Raj kumar Manoj joshi Sanjay dutt Piyush mishra Mahesh bhatt Mahika Sharma Manoj kumar Vishal Bhardwaj Sharmila tagore Prakash jhaSudhir mishra Rani mukhrjee Anupam kher

Defence forces

Film stars

Actors

Actress

Musicians

Recipients of the Civilian awards

Recipients of the Gallantry awards

Literature

Authors

Novelists

Poets

Crossword Writer

Arts

Intellectuals

Politics

Pre Independence (British Raj)

Peshwas (Appointed as ministers by Maratha Kings)
Indian national congress

Governor General

Speaker (Lok Sabha)

MPs and MLAs

Chief Ministers

Members of Parliament/Legislative Assembly

Presidents of India

Prime Ministers of India



Name of the Chankya eliminated from the list its because it has been detected he is not belongs to Brahmins race but Brahmins wants  to bag his credits making him as Brahmin to promote their race.

ब्राह्मण

ब्राह्मण में ऐसा क्या है कि सारी दुनिया ब्राह्मण के पीछे पड़ी है। इसका उत्तर इस प्रकार है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी न...