Sunday, 31 May 2020

Brahmin Pandit King Raja Samrat Pushpmitra Sungh ( पुष्पमित्र शुंग )



प्रतीक रचे जाते है ताकि भविष्य में उन्हें देखकर हम अपने महान पूर्वजो के महान कार्यो द्धारा धर्म वा राष्ट्र रक्षण को समझ सकें और उन्हें यथावत रखने हेतु प्रयासरत रहें....

भारत के इतिहास में महाराज पुष्यमित्र शुंग को जो स्थान मिलना चाहिए था उसे India के कथित शिक्षाविद, बुद्धिजीयों ने “एक राजनयिक विश्वासघात” कहकर प्रचारित किया गया।

हिन्दुओं ने इन इतिहासिक गप्पो को पढा लेकिन कभी प्रश्न नही किये.....

चाणक्य द्धारा निर्मित मौर्य राजवंश के अंतर्गत अखंड भारत का भवन किनका घर बना ?

अशोक ने बौद्ध मत स्वीकार करने के उपरांत सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के लिए क्या किया ?

कैसे एक सुरक्षित शक्तिशाली मगध बोद्ध मत द्धारा कायरता को आत्मसाध कर “अहिंसा परमो धर्म" का जप करते अखंड राष्ट्र को पुनः खंडित होते देखता रहा ?

बौद्ध भिक्षुओं द्धारा यवन आक्रांताओं को सत्ता हेतु निमंत्रण भेजना कैसे मगध के अमात्य वर्ग पचा रहा था ?

यज्ञ अग्नि की प्रजवलित अग्नि को किसका भय था मौर्य राजवंश में ?

क्यों एक ब्राह्मण को अपने ब्राह्मणत्व को त्याग कर सेनापति पुष्यमित्र ही कहना पड़ा ?

सेनापति पुष्यमित्र शुंग को अपने राजा बृहदत्त का वध कर सत्ता अपने नियंत्रण में क्यों लेनी पड़ी ?

बौद्ध मत के राजा बृहदत्त ने सेनापति पुष्पमित्र को यवनों के विरुद्ध युद्ध ना करने का आदेश दिया क्योंकि बोद्ध मत अहिंसक था लेकिन यवन संकट अब सीमाओं के भीतर आ चुका था ऐसे में “अहिंसक" राजा सिंहों की सेना का नेतृत्व करता एक गधा था तो सेनापति पुष्यमित्र ने सिंह की दहाड़ भरते हुए अपनी तलवार को पूर्ण सेना के मध्य ही राजा बृहदत्त के सीने में उतार कर दहाड़ते हुए कहा ....

“ना बृहदत्त मुख्य था ना पुष्यमित्र होगा मगध मेरी जन्मभूमि है मैं इसको यवनों के अधीन ना होने दूंगा, मैं जा रहा युद्धभूमि में, पीछे कौन-कौन है कौन नही आया है नही देखूंगा।"

हर हर महादेव के जयकारों से कई वर्षों बाद मगध की धरती गुंजायमान हुई, 2300 वर्ष पूर्व यह अंतिम युद्ध था जो यवनों और हिन्दुओं के मध्य हुआ इसके उपरांत फिर कभी यवन भरतीय सीमाओं की और ना आए।

बोद्ध राजवंश के प्रतीक हाथी को दबाते हुए सिंह की यह प्रतिमाएं महाराज पुष्पमित्र शुंग का राज्य प्रतीक है।

महाराज पुष्यमित्र शुंग की जय हो

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