मै दीपक पराशर रोयल पंडित (सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य (1501–1556) का वंसज) एक कट्टर पंडित हू और मरने और मारने के लिए तेयार रहता हू. ! मुझे गर्व है की मै उस जाती में जन्मा हु जिसमे अश्वत्थामा, राजा बाली , व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कंडेय, राजा धीर, राजा पुरुस, रानी लक्ष्मीबाई, भगवन बुद्ध, राजा हरिश्चंदर, राजा रावन, सम्राट हेमू चन्द्र विक्रमादित्य, राजा बीरबल, चकरवर्ती राजा भरत, राजगुरु , बतुकेश्वार दत्त, सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य (1501–1556), मंगल पाण्डेय, नानाविनायक दामोदर सावरकर , साहिब पेशवा रानी लक्ष्मीबाई ऑफ़ झाँसी, तात्या टोपे, चन्द्रशेकर आजाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, बालगंगाधर तिलक, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल, गोपाल कृष्ण गोखले, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, चाणक्य, गोस्वामी तुलसीदास, सुरदस, रामदास, रबिन्द्रनाथ तागोरे, रामधारी सिंह 'दिनकर हजारीप्रसाद द्विवेदी, सुमित्रानंदन पन्त, रामवृक्ष बेनीपुरी, मनोहर श्याम जोशी, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, दिलीप बलवंत वेंगसरकार, अजित वाडेकर, श्रीनिवासन वेंकत्रघवन, इरापल्ली आनंदरावस प्रसन्ना, बगावत सुब्रमनिया चंद्रशेखर, गुंडप्पा विश्वनाथ, लाक्स्मन सिवारामाकृष्णन, चेतन शर्मा, पर्थासर्ति शर्मा , Ravi शास्त्री, कृष्णामचारी सृक्कंथ, अंजलि, वन्गिपुराप्पू, वेंकट साईं लाक्स्मन, अनिल कुंबले, श्रीनाथ, Venkatesh Prasad, अजय शर्मा , दिनेश कार्तिक, मुरली कार्तिक, रोहित शर्मा, इशांत शर्मा, अमित मिश्र, योगेश्वेर दत्त (रेसेलेर), सुब्रमण्यम बद्रीनाथ, सुरेश रैना, मनीष पाण्डेय, सदगोप्पन रमेश, अजित अगरकर, हृषिकेश कानिटकर, सुनील जोशी, विश्वनाथन आनंद, कीर्ति अ ज़द, थ्यगाराजा, पुरंदरदस, व्यसतिर्था, राघवेन्द्र स्वामी, मुथुस्वामी दीक्षित, श्यामा सस्त्री, र.स.प. बलासुब्रह्मन्यम, विष्णुवर्धन, उषा उठुप, मिथुन चक्रबोर्टी, कविता क्रिस ह्नामुर्ति, हृषिकेश मुख़र्जी, हेमा मालिनी, बासु चत्तेर्जी, सुधीर फडके, बालगंधर्व, डॉ. वसंतराव देशपांडे, अशोक कुमार, किशोरे कुमार, मुकेश, श्रेया घोषाल, उदित नारायन, शांतनु मुख़र्जी, अभिजीत, कुमार सानु, अलका याग्निक, माधुरी दिक्सित, अमृता राव, शर्मीला तागोरे, अदिति गोवित्रिकर, गायत्री जोशी, सोनाली बेंद्रे, रानी मुख़र्जी, काजोल, विद्या बालन, सोनल कुलकर्णी, तानसेन, बैजू बावरा, रति अग्निहोत्री, अपूर्व अग्निहोत्री, सुनील दत्त, संजय दत्त, कमल हस्सन, मौसुमी चत्तेर्जी, चंकी पाण्डेय, रेखा, मिनाक्षी शेषाद्री, मणि रत्नम, भीमसेन जोशी, पंडित रवि शंकर, वीणा दोरेस्वमी इयेंगर, मंगलाम्पल्ली बालमुरली कृष्ण, पंडित जसराज, शिवकुमार शर्मा आदि लोग जन्मे है!
" ॐ अश्वत्थामा वलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण: कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन: सप्तैतांस्स्मरे नित्यं मार्कंडेय तथास्टमम जीवेद वर्ष शतं साग्रमप मृत्यु विवर्जित : . मान्यता है की इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है. आठ नाम इस प्रकार हैं- मतलब ये 8ओ ब्रह्मिन अमर है हर एक युग में ये अमर है - अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, मार्कंडेय, कृपाचार्य और परशुराम ये अमर हैं. मुख में वेद पीठ पर तरकस ,कर में कठिन कुठार विमल शाप और शर दोनों ही थे जिस महान ऋषि के संबल, बाबा परशुराम ने धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था ये बात अटल सत्य है ...जय बाबा परशुराम ...
धाकड़ छोरा पंडित का ..
.या ते अड़ता नहीं , अड़ता है तो पीछे हटता नहीं ...
या तो मारता नहीं मारता है तो माफ़ करता नहीं
धाकड़ छोरा पंडित का ..
जब टाइम कभी किसी पे बुरा आव्गा ,
तो या पंडित ही मदद ने आव्गा ....
जब यो पंडित छोरा आव्गा तो योहे छावेगा
या धाकड़ छोरा पंडित का
देश में पहला भी पंडित क्रांति में आगे आये थे
तब चंदर शेखर आजाद और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जैसे शेर छाए थे ..
देश को बचने आया था और इब भी बचावेगा
धाकड़ छोरा पंडित का ..
पहला किसी ते कुछ बोले न फेर किसी ने कुछ तोले न
जब यो दीपक पराशर रोयल पंडित सम्राट हेम चन्द्र विक्रमादित्य का वंसज आव्गा
तो भगवान परशुराम की छवि दिखाव्गा
यो धाकड़ छोरा पंडित का
Deepak Parashar Royal Pandit-
+91-9416557837
सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य यही पूरा नाम है हेमू का. हेमू इतिहास के भुला दिए गए उन चुनिन्दा महानायकों में शामिल है जिन्होंने इतिहास का रुख पलट कर रख दिया था. हेमू ने बिलकुल अनजान से घर में जन्म लेकर, हिंदुस्तान के तख़्त पर राज़ किया. उसके अपार पराक्रम एवं लगातार अपराजित रहने की वजह से उसे विक्रमादित्य की उपाधि दी गयी.
हेमू का जन्म एक ब्राह्मण श्री राय पूरण दस के घर १५०१ में अलवर राजस्थान में हुआ, जो उस वक़्त पुरोहित (पूजा पाठ करने वाले) थे, किन्तु बाद में मुगलों के द्वारा पुरोहितो को परेशान करने की वजह से रेवारी (हरियाणा) में आ कर नमक का व्यवसाय करने लगे.
काफी कम उम्र से ही हेमू, शेर शाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट (गन पावडर हेतु) उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिताजी के साथ हो लिए थे. सन १५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायु को हरा कर काबुल लौट जाने को विवश कर दिया था. हेमू ने उसी वक़्त रेवारी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव राखी, जो आज भी रेवारी में ब्रास, कोंपर, स्टील के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है.
शेर शाह सूरी की १५४५ में मृत्यु के पाश्चर इस्लाम शाह ने उसकी गद्दी संभाली, इस्लाम शाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचाना और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यो के लिए अपना सलाहकार नियुक्त किया. हेमू ने अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लाम शाह का विश्वासपात्र बन गया... इस्लाम शाह हेमू से हर मसले पर राय लेने लगा, हेमू के काम से खुश होकर उसे दरोगा-ए-चौकी (chief of intelligence) बना दिया गया.
१५४५ में इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद उसके १२ साल के पुत्र फ़िरोज़ शाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिल शाह सूरी ने मार कर गद्दी हथिया ली. आदिल ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया. आदिल अय्याश और शराबी था... कुल मिला कर पूरी तरह अफगानी सेना का नेतृत्व हेमू के हाथ में आ गया था.
हेमू का सेना के भीतर जम के विरोध भी हुआ.. पर हेमू अपने सारे प्रतिद्वंदियो को एक एक कर हराता चला गया.
उस समय तक हेमू की अफगान सैनिक जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था.. अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासको को विदेशी मानते थे, इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफगान दोनों में काफी लोकप्रिय हो गया था.
हुमायु ने जब वापस हमला कर शेर शाह सूरी के भाई को परस्त किया तब हेमू बंगाल में था, कुछ समय बाद हुमायूँ की मृत्यु हो गई.. हेमू ने तब दिल्ली की तरफ रुख किया और रास्ते में बंगाल, बिहार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की कई रियासतों को फ़तेह किया. आगरा में मुगलों के सेना नायक इस्कंदर खान उज्बेग को जब पता चला की हेमू उनकी तरफ आ रहा है तो वह बिना युद्ध किये ही मैदान छोड़ कर भाग गया ,इसके बाद हेमू ने 22 युद्ध जीते और दिल्ली सल्तनत का सम्राट बना।
हेमू ने अपने जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं हारा, पानीपत की लडाई में उसकी मृत्यु हुई जो उसका आखरी युद्ध था.
अक्टूबर ६, १५५६ में हेमू ने तरदी बेग खान (मुग़ल) को हारा कर दिल्ली पर विजय हासिल की. यही हेमू का राज्याभिषेक हुआ और उसे विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया.
लगभग ३ शताब्दियों के मुस्लिम शासन के बाद पहली बार (कम समय के लिए ही सही) कोई हिन्दू दिल्ली का राजा बना. भले ही हेमू का जन्म ब्राह्मण समाज में हुआ और उसको पालन पोषण भी पुरे धार्मिक तरीके से हुआ पर वह सभी धर्मो को समान मानता था, इसीलिए उसके सेना के अफगान अधिकारी उसकी पूरी इज्ज़त करते थे और इसलिए भी क्योकि वह एक कुशल सेना नायक साबित हो चूका था.
पानीपत के युद्ध से पहले अकबर के कई सेनापति उसे हेमू से युद्ध करने के लिए मना कर चुके थे, हलाकि बैरम खान जो अकबर का संरक्षक भी था, ने अकबर को दिल्ली पर नियंत्रण के लिए हेमू से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया. पानीपत के युद्ध में भी हेमू की जीत निश्चित थी, किन्तु एक तीर उसकी आँख में लग जाने से, नेतृत्व की कमी की वजह से उसकी सेना का उत्साह कमजोर पड़ गया और उसे बंदी बना लिया गया... अकबर ने हेमू को मारने से मना कर दिया किन्तु बैरम खान ने उसका क़त्ल कर दिया.
आज कई लोग इतिहास के इस महान नायक को भुला चुके है, किन्तु मुगलों को कड़ी टक्कर देने की वजह से ही हिंदुस्तान कई विदेशी आक्रमणों से बचा रहा... आप खुद ही सोचिये.. बिना किसी राजनैतिक प्रष्ठभूमि के इतनी उचाईयो को छुने वाले का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा.
आज भी हेमू की हवेली जर्जर हालत में रेवारी में है.... भारत ही शायद एक देश है जहा...सच्चे महानायकों की कोई कदर नहीं होती.
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