भारत में ब्राह्मणों के कई लड़ाकू गोत्र हुए हैं। इनमें से प्रमुख भूमिहार (पूर्वांचल के लड़ाकू ब्राह्मण) और पेशवा (मराठवाड़ा के देष्ठ और कोंकण ब्राह्मण) हैं जिनमें बाजीराव पेशवा, नानासाहेब पेशवा जैसे कई मशहूर नाम है। ऐसा ही एक लड़ाकू गोत्र ब्राह्मणों का है पंजाब के मोहयाल बामन। इन मोहयाल पंजाबी ब्राह्मणों को ब्रिटिश और सिख इतिहासकारों ने भारत की सबसे निर्भीक, शेरदिल, लड़ाकू जाति बताया है।
पंजाब में एक कहावत है की अगर आपको गाँव में किसी मोहयाल के घर का पता लगाना हो तो आप देखिये की किस छत पर सबसे ज्यादा कौए बैठे हैं। या देखिये की कहाँ शस्त्र चलाने की प्रैक्टिस हो रही है। ज्यादा कौए का मतलब है की वहां आज मॉस बना है। यह ही मोहयाल का घर है। मोहयाल बामन एक मॉस खाने वाले बामन या लड़ाकू बामन माने गए हैं। इन बामनो की बहुत ही महान विरासत है। यह पंजाब के सरंक्षक माने गए हैं । कुछ इतिहासकारों का यह भी दावा है की विश्व विजेता सिकन्दर महान को हराने वाला राजा पोरस एक मोहयाल था। हालांकि कुछ इतिहासकार उन्हें सारस्वत वंश का ब्राह्मण बताते हैं। मोहयाल ब्राह्मण जरूर हैं और कट्टर हिन्दू रहे हैं इतिहासिक तौर पर इन्होंने कभी भी पाठ पूजा वाला काम नही किया। इनका मुख्य पेशा खेती और सेना में सेवा ही रही है। कुछ मोहयाल पशु पालन का व्यवसाय भी करते रहे हैं।
संक्षेप इतिहास :
मोहयाल बामनो का इतिहास भारत में तैनात रहे ब्रिटिश अफसर P.T. Russel Stracey की किताब “The History of the Mohiyals, the martial Race of India” में मिलता है जो उन्होंने अपने लाहौर प्रवास के दौरान लिखी थी।
मोहयाल या मुझाल पंजाबी बामन पंजाब का ऐसा सम्प्रदाय है जिसपर पूरा पंजाबी समाज गर्व ले सकता है। इन बामनो का काम कभी पूजा पाठ करना नही रहा। इतिहासिक रूप से यह पंजाब और अफ़ग़ानिस्तान के हुकुमरान रहे हैं जिनकी रियासत अरब और पर्शिया तक रही। गोरा रंग, ताकतवर शरीर, लम्बा कद इन ब्राह्मणों की पहचान है। आज यह बड़े सरकारी ओहदों और बिज़नस पोस्ट्स पर काबिज हैं।
मोहयाल ब्राह्मण सिर्फ हिन्दू ही नही बल्कि मुसबित के समय अपने योगदान और बलिदान के लिए मुस्लिम और सिख समाज में भी सम्मानित रहे हैं। हम सबने करबला के उस युद्ध के बारे में पढ़ा होगा जिसमे हज़रत मुहम्मद साहब की बेटी फातिमा के बेटे हुसैन को शहीद कर दिया गया था अक्टूबर 18, 680 AD में यजीदी सेना द्वारा। इसी युद्ध में एक मोहयाल बादशाह रहीब हुसैन और हसन साहब की तरफ से लड़े और इनके प्राणों की अंत तक रक्षा की।
युद्ध, साम्राज्य और कुर्बानी की मिसालें :
जब नवम्बर 1675 में सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर को औरंगज़ेब ने दिल्ली में शहीद किया तो उनके साथ शहीदी लेने वाले भाई सती दास, भाई मति दास और भाई दयाल दास तीनों ही मोहयाल बामन थे जो मुगल सेना से युद्ध में सेना का नेतृत्व करते थे।
मशहूर इतिहासकार डॉ हरी राम गुप्ता के अनुसार पंजाब की शाही ब्राह्मण वंशवली जिसने पंजाब, सिंध और अफ़ग़ानिस्तान पर 500 वर्ष तक राज किया वो सभी मोहयाल ब्राह्मण थे। इन शाही ब्राह्मणों की राजधानी नन्दना ( आज का सियालकोट जो पाकिस्तान में है) थी। मुहम्मद ग़ज़नवी जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया वो इन बामनो से अक्सर मार खा कर वापिस जाता रहा। 10वीं शताब्दी में इन ब्राह्मणों का साम्राज्य वजीरिस्तान से सरहिंद और कश्मीर से मुल्तान तक था। इसके अलावा शाहपुर की रियासत के इलाके भी इनके कब्जे में थे।
एक अन्य वंश के मोहयाल ब्राह्मण राजा हुए राजा दाहर शाह। इन्होंने बहलोल लोधी के समय में उसके एक सुलतान को हराया। इनके पिता ने पंजाब और सिंध में अपना साम्राज्य स्थापित किया और राजा दाहर ने इसे यमुना के किनारों से लेकर जम्मू तक फैला लिया और पुरे सिंध को भी अपने कब्जे में ले लिया। जब दाहर शाह राजा बने तब पंजाब और सिंध का यह इलाका बौद्ध था। उन्होंने घोषणा की जो हिन्दू होगा केवल वही जीवित रहेगा। उन्होंने पुरे साम्राज्य को हिन्दू साम्राज्य घोषित कर दिया। इस वंश के वंशजों ने 200 साल से अधिक समय तक राज्य किया।
कुछ ऐसे ही मशहूर मोहयाल लड़ाकू हुए जैसे भाई परागा ( जो चमकौर के युद्ध में लड़े) , मोहन दास, भाई सती दास, भाई मति दास, पंडित कृपा दत्त ( गुरु गोबिंद को शस्त्र विद्या सिखाने वाले), भाई दयाल दास आदि।
सिख इतिहासकार प्रोफेसर मोहन सिंह दावा करते हैं गुरु गोबिंद के बाद सिख सेनाओं का नेतृत्व करने वाले बन्दा बहादुर उर्फ़ लक्ष्मण दास भी एक मोहयाल ब्राह्मण थे। हालाँकि बहुत से इतिहासकार उन्हें सारस्वत पंजाबी ब्राह्मण भी बताते हैं। भाई परागा ने छठे सिख गुरु हरगोबिन्द के समय मुगलों से युद्ध में सेना का नेतृत्व किया। खालसा पन्थ की स्थापना में सबसे आगे यह मोहयाल ब्राह्मण ही थे। उससे पहले भी इन्ही ब्राह्मणों ने अपने कुल से एक बेटा देने की प्रथा शुरू की थी गुरु की सेना में ताकि धर्म युद्ध को ज़िंदा रखा जा सके। यह लोग बहादुर थे और फ़ौज में लड़ना इनका प्रमुख पेशा था। 17वीं शताब्दी की शुरुआत तक मोहयाल ही प्रमुख खालसा लड़ाके रहे और सेनाओं का नेतृत्व भी इनके हाथ में ही रहा। पेशवा ब्राह्मणों की तरह युद्ध करने की जरूरत के कारण यह ब्राह्मण भी मासाहारी थे।
सिख इतिहास का बारीकी से विश्लेषण बताता है की मोहयाल सिर्फ गुरु की तरफ से लड़ने वाके ब्राह्मण नही थे बल्कि इन्होंने सिख धर्म का नेतृत्व भी किया गुरुयों के बाद। 18वीं सदी तक सिखों के बहुत से आंदोलनों का नेतृत्व मोहयाल ही करते रहे। महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बहुत से मोहयाल बामन सेना में प्रमुख के तौर पर तैनात रहे। खालसा पन्थ की स्थापना में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा और यह सिख धर्म की रक्षा के लिए भी लड़े और बहुत से बलिदान दिए हालाँकि यह हमेशा कट्टर हिन्दू के तौर पर ही जाने गए।
ब्रिटिश इंडिया के समय और आज़ाद भारत में मोहयाल बामनो का फ़ौज में बहुत बड़ा योगदान रहा है। अंग्रेजों के समय में भारत की आर्मी में ब्राह्मणों की 2 regiments थीं। एक थी “Ist Brahmins Regiment” और दूसरी Bengal Regiment ( जो नाम की ही बंगाल रेजिमेंट थी, यह पूर्वांचल के भूमिहार ब्राह्मण जो आज भी अपनी बहादुरी के कारण अपने नाम के साथ सिंह लिखते हैं, उनके लिए थी और उनकी संख्या इसमें 90% तक थी) ।
ब्राह्मण रेजिमेंटें और मोहियाल :
ब्रिटिश इंडिया के समय और आज़ाद भारत में मोहयाल बामनो का फ़ौज में बहुत बड़ा योगदान रहा है। अंग्रेजों के समय में भारत की आर्मी में ब्राह्मणों की 2 regiments थीं। एक थी “Ist Brahmins Regiment” और दूसरी Bengal Regiment ( जो नाम की ही बंगाल रेजिमेंट थी, यह पूर्वांचल के भूमिहार ब्राह्मण जो आज भी अपनी बहादुरी के कारण अपने नाम के साथ सिंह लिखते हैं, उनके लिए थी और उनकी संख्या इसमें 90% तक थी) ।
Ist Brahmins Regiment में ज्यादातर सैनिक मोहयाल बामन या सारस्वत पंजाबी बामन ही थे। इस रेजीमेंट को 1942 में बन्द कर दिया गया। ऐसे ही बंगाल रेजिमेंट में भूमिहारों की भरती पर रोक लगा दी गयी । इसका कारण था की 1857 के विद्रोह में इन रेजिमेंटों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियारबन्द विद्रोह किया। फिर 1942 में इन्होंने आज़ादी मांगते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज़ो की तरफ से लड़ने को मना कर दिया। ब्रिटिश यह बात समझ चूके थे की आज़ादी के लड़ाई में बलिदान देने और इसका नेतृत्व करने में ब्राह्मण ही सबसे आगे हैं। 1857 में मंगल पाण्डे का विद्रोह, फिर नाना साहेब ब्राह्मण की सेना का लखनऊ और कानपूर की रियासत पर कब्जा , रानी लक्ष्मी बाई , तांत्या टोपे जैसे ब्राह्मण राजाओं का विद्रोह जो अंग्रेजों पर बहुत भारी पड़ा। इसके अलावा भारत रिपब्लिकन आर्मी के प्रमुख पंडित आज़ाद, उनके सहयोगी बिस्मिल , राजगुरु ,BK दत्त आदि, महानतम राष्ट्रवादी क्रन्तिकारी सावरकर और ऐसे ही कई अन्य आदि सभी ब्राह्मण थे और इन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। इसलिए बामन समाज में अंग्रेओं का विश्वास बिलकुल नही रहा। इसलिए अंग्रेज़ो को लगा की यह बामन अगर सेना में रहे तो बार बार विद्रोह करेंगे, इसलिए Ist Brahmins Regiment को बन्द कर दिया गया और बंगाल रेजिमेंट में सिर्फ मुसलमानों और यादवों की भर्ती रखी गयी। ब्रिटिश लोगों ने सेना में सिर्फ अपनी वफादार रेजिमेंटों को रखा और दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद भारत गणराज्य ने प्रशासन ना चला पाने की अपनी कम समझ की वजह से सेना के ठीक उसी प्रारूप को चालू रखा बिना किसी छेड़ छाड़ के और बामनों को उनकी पहचान यानि उनकी रेजिमेंटों से दूर कर दिया गया।
मोहयालों का सिख धर्म से दूर होना :
यह जानना काफी रोचक है की मोहयाल सिख धर्म से दूर कैसे हुए। इसका एक कारण था की पंजाब में मोहयाल और सिख समाज ने अंग्रेजों को पुरे भारत के मुकाबले सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी। इसलिए अंग्रेजों ने इनमे फुट डाली। इसके अलावा स्वामी दयानंद ने जब आर्य समाज का प्रचार शुरू किया । तब उन्होंने पाया की सिख धर्म वैदिक सनातन धर्म के विपरीत जा चुका था। इसलिए उन्होंने वैदिक मान्यताओं को दुबारा लोगों को बताया। आर्य समाज को पंजाब के लाहोर , रावलपिंडी आदि में बड़ा समर्थन मिला।इसके अलावा 20वीं शताब्दी की शुरुआत में अकाली लहर और सिंह सभा का प्रभाव चला। इसके प्रभाव से कई गुरुद्वारों से ब्राह्मणों को बाहर निकाल दिया गया। यहाँ तक हरिमंदिर साहिब से मूर्तियां निकाल कर बाहर कर दी गयीं। इसका सीधा प्रभाव मोहयालों पर पड़ा। वो सिखों से अलग हो गए। जट्ट सिख सिख धर्म के सर्वेसर्वा हो गए और मोहयाल और सिखों के सम्बंधों में दुरी आ गयी|
Noted Mohyal Brahmins of current era :
Former Army General Arun Vaidya ( who lead operation Bluestar, martyred later in a terrorist attack)
Former Army General G.D. Bakshi
Army Chief General VN Sharma
Lt_Gen_Praveen_Bakshi
Major General AN Sharma
Most awareded soldier of Indian army Lt. General Zorawar Bakshi
Former Army General Yogi Sharma
Captain Puneet Dutt (martyred in Jammu)
Lt. Saurabh Kalia (martyred in Kargil war)
Major Somnath Sharma (Martyred in Kahmir Battle, awarded Paramveer Chakra)
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