Saturday 11 July 2020

हरियाणा






मेरा_हरियाणा 

क्या आप ऐसी भूमि की कल्पना कर सकते हैं जहां परिवार के धन का निर्धारण इस बात से होता है की परिवार में गायों की संख्या कितनी है! जहां हर सुबह सूरज हरी धान के खेतों पर अपनी किरणों का रंग बिखेरता है और शाम के रंगीन क्षितिज एक अपनी ही तरह की बोली में अनोखी और निर्दोष सौहार्द के गीत गुनगुनाते है।

हुक्के, खाट, पीपल, बरगद, कुए, दामण ……. जी हां, यही है हमारा हरियाणा ।

हालांकि सब कहते हैं कि हरियाणा हमारे देश की “ग्रीन बेल्ट” है, लेकिन हमने यह साबित कर दिया है कि हरियाणा सिर्फ़ देश  का “अन्नदाता” हि नहीं बल्कि औद्योगीकरण के लिए भी एक केंद्रीय बिन्दु बन के उभर रहा है
जहां वेदो का निर्माण हुआ, मिथकों और किंवदंतियों के साथ भरा हुआ, हरियाणा का 5000 साल पुरना इतिहास बहुत समृद्ध है। कुरुक्षेत्र युं तो एक साधारण क्षेत्रीय शहर की तरह दिख सकता है, लेकिन वास्तव में हिंदू शिक्षाओं के अनुसार यहि से ब्रह्मांड का उद्गम हुआ और यहि बुराई पर अच्छाई की विजय हुई। ब्रह्मा ने यहि मनुष्य और ब्रह्माण्ड का निर्माण किया और भगवान कृष्ण ने भगवद गीता का धर्मोपदेश दिया। इस्सी मिट्टी पर संत वेद व्यास ने संस्कृत में महाभारत लिखा। महाभारत युद्ध से भी पहले, सरस्वती घाटी में कुरुक्षेत्र क्षेत्र में दस राजाओं की लड़ाई हुई थी। लेकिन लगभग 900 ईसा पूर्व में, यह महाभारत का ही युद्ध था, जिसने इस क्षेत्र को दुनिया भर में प्रसिद्धि दिलाई। महाभारत ने हरियाणा को बहुधनीयका, भरपूर अनाज और बहुधना की भूमि, विशाल धन की भूमि का पता लगाया। “उत्तर भारत का गेटवे” की तरह खड़े हरियाणा कई युद्धों का साक्षी रहा है। पानीपत की तीन प्रसिद्ध लड़ाईएं हरियाणा के आधुनिक पानीपत शहर के पास हुईं।

हमारे यहां के लोग दुनिया में सबसे जुदा है ….. हम जो करते है खुल के करते हैं हमारा ये अपनापन ही तो है जो लोगो को हमारे पास खींच लता हैं … और हाँ भोजन को कैसे भूल सकता है कोई ?? 🙂 हम खाने के लिए जीते हैं मखण, दूध, खोया, मलाई, चूरमा, लाडू, गुड़, कढ़ी, बथुए का रायता, बाजरे की रोटी ..? “जित दूध दही का खाना इस्सा म्हारा हरयाणा” ….. इसे तो आपने सौ बार सुना होगा। यह वह भूमि है जहां आज भी खेतों में जाने वाले किसान अपने साथ रोटी और प्याज़ ले जाते हैं, जहां नाश्ते में लस्सी के बिना दिन अधूरा है और रात में लोगों को गर्म दूध के गिलास के बिना नींद नहीं आये। हमारे यहाँ हर क्षेत्र में अदालत और पुलिस स्टेशन जरूर है, लेकिन आज भी  हमारा विश्वास पंच-परमेश्वर और पारंपरिक पंचायती राज में ज्यादा हैं, वो कहते हैं न जब आपसी विचार-विमर्श और वार्ता से विवाद सुलझ जाये तो कोर्ट कचेरी के चक्कर कौन काटे। यद्यपि आधुनिक युग ने हरयाणा में भी बहुत कुछ बदला है , लेकिन आज भी हमारे यहाँ  विशेष रूप से गांवों में, हम चाचा-चाची, ताउ-ताई, दादा-दादी, भाई-भाभी ……. एक ही छत के नीचे, संयुक्त परिवार रहते मिल जायेंगे। आज भी हम अपने माता-पिता के परामर्श के बिना, चाहे छोटा हो या बड़ा , निर्णय नहीं लेते। हालांकि हमने आधुनिकीकृत दृष्टिकोण को अपनाया है, लेकिन आज भी हम पहले अपने बड़ों का सत्कार पहले और अपना खाना बाद में ग्रहण करते हैं।

हाँ हम अभी भी पुरानी और  पारम्परिक प्रथाओं को मान्यता देते हैं व् उनका नियमित पालन करते हैं चाहे वो हल हो या कुआँ ……। हरियाणा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का इतिहास वैदिक काल तक जाता है। राज्य के लोकगीत जिसे रागनी के नाम से भी जाना जाता है बहुत ही प्रसिद्ध है व् हरयाणा के इतिहास को संजोये हुए अनेक किस्से व् कहानिओं को संजोती है। हमारे हरियाणा के लोगों की अपनी परंपराएं हैं।ध्यान, योग और वैदिक मंत्र का जाप जैसी पुरानी परंपराएं आज भी लोगों  द्वारा निभाई व् मनाई जाती है। प्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेव हरियाणा के ही महेंद्रगढ़ से हैं। होली, दीवाली, तीज, मकर सक्रांति, राखी, दशहरा …….या फिर सावण का झूला त्यौहार हमारी परंपरा का एक अटूट हिस्सा है … .मेहन्दी हमारे लगभग सभी त्योहारों का एक अभिन्न हिस्सा है। हमारी संस्कृति और कला नाटक, किस्से, कहानी और गीतों के माध्यम से व्यक्त की जाती है जिसे गाँवों की आम भाषा में सांग बुलाते हैं। हमारे यहां लोग गहनों के बहुत शौकीन हैं। गहनों में आमतौर पर सोने और चांदी से बने होते हैं मुख्य वस्तुओं में हार, चांदी से बने हंसली (भारी चूड़ी), झलरा (सोने के मोहर या चांदी के रुपए की बनी लम्बी तगड़ी) करणफुल और सोने की बुजनी और पैरों में करि, पाती और छैल कड़ा पहनते हैं।

हमारी सबसे प्रमुख विशेषता तो हमारी भाषा ही है है या यूँ कहें, जिस तरीके और लहजे से यहाँ बात की जाती हैं वो ही तो अलग बनता है हमे।बंगारु हमारे यहाँ बोली जाने वाली सबसे लोकप्रिय बोली है जिसे आमतौर से हरियाणवी के नाम से जाना जाता है, हमारी बोली संभवतः बाहर के लोगों को ठेठ व उग्र प्रतीत हो, लेकिन इसमें ग्रामीण मिटटी की महक से भरपूर व्यंगात्मक सरलता और सीधापन भरा है। आप क्या बोलेंगे हमारे बारे में जो ऊपर से कठोर, बोली से उग्र लेकिन; दिल इतना साफ़ और मक्खन सा नरम? और इस भाईचारे के मक्खन का आनंद लेने के लिए, आपको हरियाणा आने की जरूरत नहीं है बस किसी रस्ते चलते हरयाणवी से दो बातें कर के देख लीजिये।
हरियाणा ने तेजी से आधुनिकता को अपनाया है;  आज, रिकार्ड समय के भीतर हरियाणा ने अपने सभी गांवों को बिजली, सड़कों और पीने योग्य पानी से जोड़ा है। आज हम भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक है, जो हमारे परिश्रम से ही नहीं बल्कि हमारी मिटटी हमारे पूर्वजों के के आशीर्वाद से फलित हो पाया है।
इसमें कोई संदेह नहीं है, यहां कर्म और अनुभव की अपार संभावनाए हैं और रहेंगी 


हरियाणवी संस्कृति – बोलचाल के शब्द

इस पोस्ट में हरियाणा के संस्कृति के आम-बोलचाल के शब्द दिए गए है| जिनका चलन धीरे-धीरे खत्म हो गया है| ये शब्द हमारी हरियाणवी बोली की शान होते थे| आजकल ये शब्द केवल किताबों में ही देखने को मिलते है|
कई बार हरियाणवी बोली के शब्दों से संबन्धित प्रश्न हरियाणा से संबन्धित विभिन्न एक्जाम में पूछ लिए जाते है| हमें उम्मीद है नीचे दी गई जानकारी ऐसे एक्जाम में आपकी मदद करेगी|

हरियाणवी संस्कृति – बोलचाल के शब्द

1 बरही/ नेजू - कुएं से पानी खींचने की मोटी रस्सी|
2 दोघड - सिर पर ऊपर नीचे एक साथ दो घड़े|
3 पनिहारन - कुएं से पानी लाने वाली औरतें|
4 पनघट - वह सार्वजानिक कुआं जहाँ से पीने का पानी लाया जाता था|
5 सूड़ - खेत में हल चलाने से पहले की जाने वाली कटाई- छंटाई| (खरपतवार)
6 न्याणा - गाय का दूध निकालने के पूर्व उसके पिछले पैरों को बांधने का रस्सा|
7 नेता - हाथ से दूध बिलोने की रई को घुमाने वाला रस्सा|
8 नांगला - रई को सीधी रखने के लिए डाले जाने वाले दो रस्से |
9 कढावणी - हारे में दूध गर्म करने का मटका|
10 बिलोवना/ बिलोवनी - दूध बिलोने के लिए प्रयोग होने वाला मटका/
11 जमावनी - दूध जमाने का मटका |
12 घीलडी - घी डालने का मिटटी का पात्र |
13 जामण - दूध ज़माने के लिए डाली जाने वाली छाछ |
14 रई - दूध बिलोने का लकड़ी का यन्त्र|
15 हारी - कपडे या घास से बना गोल घेरा जिस पर गर्म बर्तन रखा जाता था|
16 हारा - गोबर के कंडे (उपले) जलाकर कुछ पकाने का स्थान |
17 बांठ/ चाट/ बाखर - पकाकर पशुओं को डाली जानी वाली खाद्य सामग्री, जैसे बिनोले, ग्वार, चने आदि|
18 गोस्से/ उपले/ पाथिये/ थेपड़ी - गोबर के कंडे|
19 कोठला - अनाज डालने का मिटटी का बड़ा पात्र|
20 कोठली - अनाज डालने का मिटटी का छोटा पात्र
21 कूप/ बूंगा - चारा डालने का सरकंडों/ घासफूस से बना ढांचा|
22 मन्जोली - मुज़ की गठरी|
23 मूंज - सरकंडों में से निकला गया वह हिस्सा जिससे रस्सी बनती है|
24 मोगरी - मूंज. फसल आदि को कूटने की मोटी लकड़ी|
25 खाट - चारपाई|
26 प्लाण - गाडी में जोतने से पहले ऊंट की पीठ पर रखा जाने वाला एक लकड़ी का ढांचा |
27 कजावा - ऊंट की पीठ पर रखकर सामान धोने का एक साधन, जिसे प्लाण पर रखा जाता था|
28 राछ - औजार |
29 कूंची - ऊंट की सवारी करने के लिए उसके ऊपर रखा जाने वाला एक ढांचा|
30 बींड - ऊंट को हल में जोतने के लिए प्रयोग होने वाला रस्सों का जाल |
31 जुआ/ जूडा - ऊंट अथवा बैल को हल में जोतने के लिए प्रयोग होने वाला लकड़ी का ढांचा|
32 कुस/फाल - हल में प्रयोग होने वाला लोहे का उपकरण  |
33 ओरना - बिजाई के काम आने वाला बांस से बना एक उपकरण |
34 बिजंडी - बीज डालने का थैला या अन्य पात्र|
35 हलसोतिया - बिजाई शुरू करने के दिन का उत्सव||
36 हाली - हल चलाने वाला|
37 पंजवाल - खेत में पानी देने वाला|
38 पाली - पशु चराने वाला|
39 चीड़स - चमड़े का एक पात्र जिससे कुएं से पानी निकाला जाता था|
40 पूली - फसल की कटाई से समय कुछ मात्र के एक साथ बांधे गए पौधे |
41 दुबका - ऊंट या किसी अन्य पशु के पैरों को बांधना ताकि वह भाग न सके|
42 झावली - मिटटी का एक पात्र, जिसमें सामान डालते थे|
43 झावला - दूध गर्म करने के मटके (कढ़ावनी) को ढकने का मिटटी का पात्र जिसमें भाप निकलने को छेद होते थे
44 मांडना - गेरू या रंगों से दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी|
45 साथिये - स्वस्तिक आदि |
46 कुंडा - मिटटी का एक पात्र जिसमें आटा गूंथा जाता था|
47 कुलडा - मिटटी का मटके जैसा छोटा पात्र, जो पानी लस्सी आदि डालने के काम आता था|
48 कुलड़ी - कुलडे से छोटे आकर का पात्र|
49 सिकोरा - मिटटी का एक बर्तन|
50 बरवा - मिट्टी का एक बर्तन |
51 सीठना - दामाद को गीत के रूप में दी जाने वाली गालियाँ |
52 खोड़िया - एक नृत्य |
53 बटेऊ - दामाद
54 लनीहार - दुल्हन को लेने आया मेहमान|
55 बधाण - ऊंट/बैल गाडी, ट्रक्टर ट्राली या ट्रक आदि में लादे गए सामान को बांधने का रस्सा
56 सांकल - दरवाजे की कुण्डी|
57 चूरमा - मोटी रोटी का चूरा बनाकर उसमें घी डालकर बनाया गया व्यंजन|
58 लापसी - आटे को भूनकर उसमें मीठा पानी मिलाकर बनाया गया गाढा व्यंजन|
59 पांत/ सीरा - आटे को भूनकर उसमें मीठा पानी मिलाकर बनाया गया पतला व्यंजन
60 कसार/ पंजीरी - आटे को भूनकर उसमें मीठा मिलकर बनाया गया सूखा पाउडर |
61 - सत्तूभूने हुए जौ का आटा|
62 बिजणा पंखी - हाथ से हवा करने का पंखा / हाथ से हवा करने की घूमने वाली पंखी|
63 टोकनी - पीतल का घड़ा|
64 झाल/ मौण - मिटटी का घड़े से बड़े आकार का बर्तन|
65 सुराही - लम्बी गर्दन और बीच में पानी निकालने के छेड़ युक्त घड़े के आकर का मिटटी का पात्र|
66 गिर्डी - पत्थर का गोल आकर का एक उपकरण जो गहाई के काम आता है|
67 रहट - बैलों की मदद से कुएं से पानी निकालने का एक यन्त्र|
68 धोरा/ धाना - खेतों में पानी बहाने का नाला|
69 सरकंडा/ झूंडा/ झूंड - एक प्रकार का पौधा जिस के तने और पत्ते छप्पर आदि बनाने काम में लिए जाते हैं
70 छाज - सरकंडे के उपरी हिस्से तुलियों से बना एक पात्र जो अनाज साफ़ करने के काम आता है|
71 छालनी - लोहे से बना एक पात्र जो छानने के काम आता है|
72 चाकी - पत्थर से बना आटा पीसने का यन्त्र|
73 कीला - हाथ से चलने वाली चक्की का धुरा जिस पर ऊपरी पाट घूमता है|
74 मानी - हाथ चक्की के ऊपरी पाट में लगने वाला लकड़ी का टुकड़ा जो कीले पर टिकता है|
75 - गरंडहाथ चक्की का घेरा जिसमें पिसा हुआ आटा गिरता है|
76 छिक्का - घी, दूध या रोटी रखने का रस्सी का जाला| पशुओं के मुंह पर लगने वाले जले को भी छिक्का कहते हैं
77 रास - ऊंट की लगाम|
78 हाथेली - हल का वह भाग जिसे पकड़ कर हल चलाया जाता है|
79 चाक - लकड़ी का बना वह गोल चक्का जिस पर रस्सी चढ़ा कर कुंए से पानी निकाला जाता है|
80 नोट - मिटटी के मटके आदि बर्तन बनाने का यंत्र भी चाक कहलाता है|
81 कहोड - ऐसी लकड़ी जो ऊपर दो हिस्सों में बंट जाती है और जिस पर चाक लगाकर कुएं से पानी निकाला जाता है
82 ढाणा - कुएं से चीड़स से पानी निकाल कर जिस हौद में डाला जाता है|
83 खेल - पशुओं के पानी पीने की हौद|
84 गूण - कुएं से पानी खींचते समय ऊंट या बैल जिस गढ़े में जाते हैं|
85 मंडासा - कुएं के उपरी हिस्से पर बनायीं गयी दीवार|
86 बिटोड़ा - गोसे/ उपलों का व्यवस्थित ढेर|
87 पराली - चावल के पोधों का भूसा|
88 कड़बी - बाजरे/ज्वार के पोधों का भूसा|
89 तूड़ी - गेंहूँ/जौ के पोधों का भूसा|
90 नलाव/ नलाई/ निनान - फसल में उगी खरपतवार को निकलना


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