Monday, 1 June 2020

Father of all Gangster Don Sharpshooter Badmash Most wanted Criminal One and Only Brahmin barmeshwar Singh Bhumihar ( A True Kissan Farmer and a warrior Pandit )



रणवीर सेना - भारत का उच्च जातीय संगठन हैं, जिसका मुख्य कार्य-क्षेत्र बिहार है। यह कोई आतंकवादी संगठन नहीं ब्लकि मीलिशिया है, क्योंकि यह मुख्यतः जाति आधारित भूमिहार ब्राह्मण संग़ठन है और इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के किसानों के जमीनों की रक्षा करना है। जिन जमीनों पर नक्सलियों द्वारा अवैध कब्जा कर लिया जाता है और सवर्ण किसानों का सामुहिक नरसंहार कर दिया जाता रहा है।

रणवीर सेना की स्थापना 1994 में मध्य बिहार के भोजपुर जिले के गांव बेलाऊर में हुई। दरअसल जिले के किसान भाकपा माले (लिबरेशन) नामक नक्सली संगठन के अत्याचारों से परेशान थे और किसी विकल्प की तलाश में थे। ऐसे किसानों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर छोटी-छोटी बैठकों के जरिये संगठन की रूपरेखा तैयार की। बेलाऊर के मध्य विद्यालय प्रांगण में एक बड़ी किसान रैली कर रणवीर किसान महसंघ के गठन का ऐलान किया गया। तब खोपिरा के पूर्व मुखिया बरमेश्वर सिंह, बरतियर के कांग्रेसी नेता जनार्दन राय, एकवारी के भोला सिंह, तीर्थकौल के प्रोफेसर देवेन्द्र सिंह, भटौली के गुप्तेश्वर सिंह, बेलाउर के वकील चौधरी, धनछूहां के कांग्रेसी नेता डॉ. कमलाकांत शर्मा और खण्डौल के मुखिया अवधेश कुमार सिंह ने प्रमुख भूमिका निभाई। इन लोगों ने गांव-गांव जाकर किसानों को माले के अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। आरंभ में इनके साथ लाईसेंसी हथियार वाले लोग हीं जुटे। फिर अवैध हथियारों का जखीरा भी जमा होने लगा। भोजपुर में वैसे किसान आगे थे जो नक्सली की आर्थिक नाकेबंदी झेल रहे थे। जिस समय रणवीर किसान संघ बना उस वक्त भोजपुर के कई गांवो में भाकपा माले लिबरेशन ने मध्यम और लघु किसानों के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी लगा रखा था। करीब पांच हजार एकड़ जमीन परती पड़ी थी। खेती बारी पर रोक लगा दी गयी थी और मजदूरों को खेतों में काम करने से जबरन रोक दिया जाता था। कई गांवों में फसलें जलायी जा रही थीं और किसानों को शादी-व्याह जैसे समारोह आयोजित करने में दिक्कतें आ रही थीं । इन परिस्थितियों ने किसानों को एकजुट होकर प्रतिकार करने के लिए माहौल तैयार किया। रणवीर सेना के गठन की ये जमीनी हकीकत है

भोजपुर में संगठन बनने के बाद पहला नरसंहार हुआ सरथुआं गांव में, जहां एक साथ पांच मुसहर जाति के लोगों की हत्या कर दी गयी। बाद में तो नरसंहारों का सिलसिला ही चल पड़ा। बिहार सरकार ने सवर्णों की इस किसान सेना को तत्काल प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन हिंसक गतिविधियां जारी रहीं । प्रतिबंध के बाद रणवीर संग्राम समिति के नाम से इसका हथियारबंद दस्ता विचरण करने लगा। दरअसल भाकपा माले ही इस संगठन को रणवीर सेना का नाम दे दिया। और इसे सवर्ण सामंतों की बर्बर सेना कहा जाने लगा। एक तरफ भाकपा माले का हत्यारा दस्ता खून बहाता रहा तो प्रतिशोध में रणवीर सेना के लड़ाके भी खून की होली खेलते रहे। करीब पांच साल तक चली हिंसा-प्रतिहिंसा की लड़ाई के बाद घीरे-घीरे शांति लौटी। लेकिन इस बीच मध्य बिहार के जहानाबाद, अरवल, गया औरंगाबाद, रोहतास, बक्सर और कैमूर जिलों में रणवीर सेना ने प्रभाव बढ़ा लिया। बाद के दिनों में राष्ट्रवादी किसान महासंघ नामक संगठन का निर्माण किया गया। महासंघ ने आरा के रमना मैदान में कई रैलियां की और कुछ गांवों में भी बड़े-बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम हुए। जगदीशपुर के इचरी निवासी राजपूत जाति के किसान रंगबहादुर सिंह को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया। आरा लोकसभा सीट से रंगबहादुर सिंह ने चुनाव भी लड़ा और एक लाख के आसपास वोट पाया। रणवीर सेना के संस्थापक सुप्रीमो बरमेश्वर सिंह उर्फ मुखियाजी पटना में नाटकीय तरीके से पकड़ लिये गये। पकड़े जाने के बाद वे आरा जेल में रहे। जेल में रहते हुए उन्होंने भी लोकसभा का चुनाव लड़ा और डेड़ लाख वोट लाकर अपनी ताकत का एहसास कराया। आज की तारीख में रणवीर सेना की गतिविधियां बंद सी हो गयी हैं। इसके कई कैडर या तो मारे गये या फिर जेलों में बंद हैं। सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया की साल 1 जून 2012 को कुछ कुख्यात अपराधियों ने हत्या कर दी।

ब्रहमेश्वर सिंह उर्फ बरमेसर मुखिया बिहार की जातिगत लड़ाईयों के इतिहास में एक जाना माना नाम है.

भोजपुर ज़िले के खोपिरा गांव के रहने वाले मुखिया ऊंची जाति के ऐेसे व्यक्ति थे जिन्हें बड़े पैमाने पर निजी सेना का गठन करने वाले के रुप में जाना जाता है.

बिहार में नक्सली संगठनों और बडे़ किसानों के बीच खूनी लड़ाई के दौर में एक वक्त वो आया जब बड़े किसानों ने मुखिया के नेतृत्व में अपनी एक सेना बनाई थी.

सितंबर 1994 में बरमेसर मुखिया के नेतृत्व में जो सगंठन बना उसे रणवीर सेना का नाम दिया गया.

उस समय इस संगठन को भूमिहार ब्राह्मण किसानों की निजी सेना कहा जाता था.

इस सेना की खूनी भिड़ंत अक्सर नक्सली संगठनों से हुआ करती थी.

बाद में खून खराबा इतना बढ़ा कि राज्य सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था.

नब्बे के दशक में रणवीर सेना और नक्सली संगठनों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ की बड़ी कार्रवाईयां भी कीं

सबसे बड़ा लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार एक दिसंबर 1997 को हुआ था जिसमें 58 दलित मारे गए थे.

इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर बिहार की जातिगत समस्या को उजागर कर दिया था. इस घटना में भी मुखिया को मुख्य अभियुक्त माना गया था.

ये नरसंहार 37 ऊंची जातियों की हत्या से जुड़ा था जिसे बाड़ा नरसंहार कहा जाता है. बाड़ा में नक्सली संगठनों ने ऊंची जाति के 37 लोगों को मारा था जिसके जवाब में बाथे नरसंहार को अंजाम दिया गया.

इसके अलावा मुखिया बथानी टोला नरसंहार में अभियुक्त थे जिसमें उन्हें गिरफ्तार किया गया 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्सीबिजन रोड से. उन पर पांच लाख का ईनाम था और वो जेल में नौ साल रहे.

बथानी टोला मामले में सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा कि मुखिया फरार हैं जबकि मुखिया उस समय जेल में थे. इस मामले में मुखिया को फरार घोषित किए जाने के कारण सज़ा नहीं हुई और वो आठ जुलाई 2011 को रिहा हुए.

बाद में बथानी टोला मामले में उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिल गई थी.

277 लोगों की हत्या से संबंधित 22 अलग अलग आपराधिक मामलों (नरसंहार) में इन्हें अभियुक्त माना जाता थ. इनमें से 16 मामलों में उन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था. बाकी छह मामलों में ये जमानत पर थे.

जब वो जेल से छूटे तो उन्होंने 5 मई 2012 को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से संस्था बनाई और कहते थे कि वो किसानों के हित की लड़ाई लड़ते रहेंगे.

जब मुखिया आरा में जेल में बंद थे तो इन्होंने बीबीसी से इंटरव्यू में कहा था कि किसानों पर हो रहे अत्याचार की लगातार अनदेखी हो रही है.

मुखिया का कहना था कि उन्होंने किसानों को बचाने के लिए संगठन बनाया था लेकिन सरकार ने उन्हें निजी सेना चलाने वाला कहकर और उग्रवादी घोषित कर के प्रताड़ित किया है.

उनके अनुसार किसानों को नक्सली संगठनों के हथियारों का सामना करना पड़ रहा था.

Sunday, 31 May 2020

Brahmin Pandit King Raja Samrat Pushpmitra Sungh ( पुष्पमित्र शुंग )



प्रतीक रचे जाते है ताकि भविष्य में उन्हें देखकर हम अपने महान पूर्वजो के महान कार्यो द्धारा धर्म वा राष्ट्र रक्षण को समझ सकें और उन्हें यथावत रखने हेतु प्रयासरत रहें....

भारत के इतिहास में महाराज पुष्यमित्र शुंग को जो स्थान मिलना चाहिए था उसे India के कथित शिक्षाविद, बुद्धिजीयों ने “एक राजनयिक विश्वासघात” कहकर प्रचारित किया गया।

हिन्दुओं ने इन इतिहासिक गप्पो को पढा लेकिन कभी प्रश्न नही किये.....

चाणक्य द्धारा निर्मित मौर्य राजवंश के अंतर्गत अखंड भारत का भवन किनका घर बना ?

अशोक ने बौद्ध मत स्वीकार करने के उपरांत सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के लिए क्या किया ?

कैसे एक सुरक्षित शक्तिशाली मगध बोद्ध मत द्धारा कायरता को आत्मसाध कर “अहिंसा परमो धर्म" का जप करते अखंड राष्ट्र को पुनः खंडित होते देखता रहा ?

बौद्ध भिक्षुओं द्धारा यवन आक्रांताओं को सत्ता हेतु निमंत्रण भेजना कैसे मगध के अमात्य वर्ग पचा रहा था ?

यज्ञ अग्नि की प्रजवलित अग्नि को किसका भय था मौर्य राजवंश में ?

क्यों एक ब्राह्मण को अपने ब्राह्मणत्व को त्याग कर सेनापति पुष्यमित्र ही कहना पड़ा ?

सेनापति पुष्यमित्र शुंग को अपने राजा बृहदत्त का वध कर सत्ता अपने नियंत्रण में क्यों लेनी पड़ी ?

बौद्ध मत के राजा बृहदत्त ने सेनापति पुष्पमित्र को यवनों के विरुद्ध युद्ध ना करने का आदेश दिया क्योंकि बोद्ध मत अहिंसक था लेकिन यवन संकट अब सीमाओं के भीतर आ चुका था ऐसे में “अहिंसक" राजा सिंहों की सेना का नेतृत्व करता एक गधा था तो सेनापति पुष्यमित्र ने सिंह की दहाड़ भरते हुए अपनी तलवार को पूर्ण सेना के मध्य ही राजा बृहदत्त के सीने में उतार कर दहाड़ते हुए कहा ....

“ना बृहदत्त मुख्य था ना पुष्यमित्र होगा मगध मेरी जन्मभूमि है मैं इसको यवनों के अधीन ना होने दूंगा, मैं जा रहा युद्धभूमि में, पीछे कौन-कौन है कौन नही आया है नही देखूंगा।"

हर हर महादेव के जयकारों से कई वर्षों बाद मगध की धरती गुंजायमान हुई, 2300 वर्ष पूर्व यह अंतिम युद्ध था जो यवनों और हिन्दुओं के मध्य हुआ इसके उपरांत फिर कभी यवन भरतीय सीमाओं की और ना आए।

बोद्ध राजवंश के प्रतीक हाथी को दबाते हुए सिंह की यह प्रतिमाएं महाराज पुष्पमित्र शुंग का राज्य प्रतीक है।

महाराज पुष्यमित्र शुंग की जय हो

Saturday, 30 May 2020

Deepak Parashar Royal Pandit





मै दीपक पराशर रोयल पंडित (सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य (1501–1556) का वंसज) एक कट्टर पंडित हू और  मरने और मारने के लिए तेयार रहता हू. ! मुझे गर्व है की मै उस जाती  में  जन्मा हु जिसमे अश्वत्थामा, राजा बाली , व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कंडेय, राजा धीर, राजा पुरुस, रानी लक्ष्मीबाई, भगवन बुद्ध, राजा हरिश्चंदर, राजा रावन,  सम्राट हेमू चन्द्र विक्रमादित्य, राजा बीरबल, चकरवर्ती राजा भरत, राजगुरु , बतुकेश्वार दत्त, सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य (1501–1556), मंगल पाण्डेय, नानाविनायक दामोदर सावरकर , साहिब पेशवा रानी  लक्ष्मीबाई ऑफ़ झाँसी, तात्या टोपे, चन्द्रशेकर आजाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, बालगंगाधर तिलक, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल, गोपाल कृष्ण गोखले, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, चाणक्य, गोस्वामी तुलसीदास, सुरदस, रामदास, रबिन्द्रनाथ तागोरे, रामधारी   सिंह 'दिनकर हजारीप्रसाद द्विवेदी, सुमित्रानंदन पन्त, रामवृक्ष बेनीपुरी, मनोहर श्याम जोशी, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, दिलीप बलवंत वेंगसरकार, अजित वाडेकर, श्रीनिवासन वेंकत्रघवन, इरापल्ली आनंदरावस प्रसन्ना, बगावत सुब्रमनिया चंद्रशेखर, गुंडप्पा विश्वनाथ, लाक्स्मन सिवारामाकृष्णन, चेतन शर्मा, पर्थासर्ति शर्मा , Ravi शास्त्री, कृष्णामचारी सृक्कंथ, अंजलि, वन्गिपुराप्पू, वेंकट साईं  लाक्स्मन, अनिल कुंबले, श्रीनाथ, Venkatesh Prasad, अजय शर्मा , दिनेश कार्तिक, मुरली कार्तिक, रोहित शर्मा, इशांत शर्मा, अमित मिश्र, योगेश्वेर दत्त (रेसेलेर), सुब्रमण्यम बद्रीनाथ, सुरेश रैना, मनीष पाण्डेय, सदगोप्पन रमेश, अजित अगरकर, हृषिकेश कानिटकर, सुनील जोशी, विश्वनाथन आनंद, कीर्ति अ ज़द, थ्यगाराजा, पुरंदरदस, व्यसतिर्था, राघवेन्द्र स्वामी, मुथुस्वामी  दीक्षित, श्यामा सस्त्री, र.स.प. बलासुब्रह्मन्यम, विष्णुवर्धन, उषा उठुप, मिथुन चक्रबोर्टी, कविता क्रिस ह्नामुर्ति, हृषिकेश मुख़र्जी, हेमा मालिनी, बासु चत्तेर्जी, सुधीर फडके, बालगंधर्व, डॉ. वसंतराव देशपांडे, अशोक कुमार, किशोरे कुमार, मुकेश, श्रेया घोषाल, उदित नारायन, शांतनु मुख़र्जी, अभिजीत, कुमार सानु, अलका याग्निक, माधुरी दिक्सित, अमृता राव, शर्मीला तागोरे, अदिति गोवित्रिकर, गायत्री जोशी, सोनाली बेंद्रे, रानी मुख़र्जी, काजोल, विद्या बालन, सोनल कुलकर्णी, तानसेन, बैजू बावरा, रति अग्निहोत्री, अपूर्व अग्निहोत्री, सुनील दत्त, संजय दत्त, कमल हस्सन, मौसुमी चत्तेर्जी, चंकी पाण्डेय, रेखा, मिनाक्षी शेषाद्री, मणि रत्नम, भीमसेन जोशी, पंडित रवि शंकर, वीणा दोरेस्वमी इयेंगर, मंगलाम्पल्ली बालमुरली कृष्ण, पंडित जसराज, शिवकुमार शर्मा आदि लोग जन्मे है!

" ॐ अश्वत्थामा वलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण: कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन: सप्तैतांस्स्मरे नित्यं मार्कंडेय तथास्टमम जीवेद वर्ष शतं साग्रमप मृत्यु विवर्जित : . मान्यता है की इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है. आठ नाम इस प्रकार हैं- मतलब ये  8ओ  ब्रह्मिन अमर है  हर एक युग में ये अमर है - अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, मार्कंडेय, कृपाचार्य और परशुराम  ये अमर हैं. मुख में वेद पीठ पर तरकस ,कर में कठिन कुठार विमल शाप और शर दोनों ही थे जिस महान ऋषि के संबल, बाबा परशुराम ने धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था ये बात अटल सत्य है ...जय बाबा परशुराम ...




धाकड़ छोरा पंडित का ..

.या ते अड़ता नहीं , अड़ता है तो पीछे हटता नहीं ...
या तो मारता नहीं मारता है तो माफ़ करता नहीं

धाकड़ छोरा पंडित का ..

जब टाइम कभी किसी पे बुरा आव्गा ,
तो या पंडित ही मदद ने आव्गा ....
जब यो पंडित छोरा आव्गा तो योहे छावेगा

या धाकड़ छोरा पंडित का

देश में पहला भी पंडित क्रांति में आगे आये थे
तब चंदर शेखर आजाद और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जैसे शेर छाए थे ..
देश को बचने आया था और इब भी बचावेगा

धाकड़ छोरा पंडित का ..

पहला किसी ते कुछ बोले न फेर किसी ने कुछ तोले न
जब यो दीपक पराशर रोयल पंडित सम्राट हेम चन्द्र विक्रमादित्य का वंसज आव्गा
तो भगवान परशुराम की छवि दिखाव्गा

यो धाकड़ छोरा पंडित का

Deepak Parashar Royal Pandit- 

+91-9416557837

सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य यही पूरा नाम है हेमू का. हेमू इतिहास के भुला दिए गए उन चुनिन्दा महानायकों में शामिल है जिन्होंने इतिहास का रुख पलट कर रख दिया था. हेमू ने बिलकुल अनजान से घर में जन्म लेकर, हिंदुस्तान के तख़्त पर राज़ किया. उसके अपार पराक्रम एवं लगातार अपराजित रहने की वजह से उसे विक्रमादित्य की उपाधि दी गयी.
हेमू का जन्म एक ब्राह्मण श्री राय पूरण दस के घर १५०१ में अलवर राजस्थान में हुआ, जो उस वक़्त पुरोहित (पूजा पाठ करने वाले) थे, किन्तु बाद में मुगलों के द्वारा पुरोहितो को परेशान करने की वजह से रेवारी (हरियाणा) में आ कर नमक का व्यवसाय करने लगे.
काफी कम उम्र से ही हेमू, शेर शाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट (गन पावडर हेतु) उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिताजी के साथ हो लिए थे. सन १५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायु को हरा कर काबुल लौट जाने को विवश कर दिया था. हेमू ने उसी वक़्त रेवारी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव राखी, जो आज भी रेवारी में ब्रास, कोंपर, स्टील के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है.
शेर शाह सूरी की १५४५ में मृत्यु के पाश्चर इस्लाम शाह ने उसकी गद्दी संभाली, इस्लाम शाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचाना और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यो के लिए अपना सलाहकार नियुक्त किया. हेमू ने अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लाम शाह का विश्वासपात्र बन गया... इस्लाम शाह हेमू से हर मसले पर राय लेने लगा, हेमू के काम से खुश होकर उसे दरोगा-ए-चौकी (chief of intelligence) बना दिया गया.
१५४५ में इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद उसके १२ साल के पुत्र फ़िरोज़ शाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिल शाह सूरी ने मार कर गद्दी हथिया ली. आदिल ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया. आदिल अय्याश और शराबी था... कुल मिला कर पूरी तरह अफगानी सेना का नेतृत्व हेमू के हाथ में आ गया था.
हेमू का सेना के भीतर जम के विरोध भी हुआ.. पर हेमू अपने सारे प्रतिद्वंदियो को एक एक कर हराता चला गया.
उस समय तक हेमू की अफगान सैनिक जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था.. अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासको को विदेशी मानते थे, इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफगान दोनों में काफी लोकप्रिय हो गया था.
हुमायु ने जब वापस हमला कर शेर शाह सूरी के भाई को परस्त किया तब हेमू बंगाल में था, कुछ समय बाद हुमायूँ की मृत्यु हो गई.. हेमू ने तब दिल्ली की तरफ रुख किया और रास्ते में बंगाल, बिहार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की कई रियासतों को फ़तेह किया. आगरा में मुगलों के सेना नायक इस्कंदर खान उज्बेग को जब पता चला की हेमू उनकी तरफ आ रहा है तो वह बिना युद्ध किये ही मैदान छोड़ कर भाग गया ,इसके बाद हेमू ने 22 युद्ध जीते और दिल्ली सल्तनत का सम्राट बना।
हेमू ने अपने जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं हारा, पानीपत की लडाई में उसकी मृत्यु हुई जो उसका आखरी युद्ध था.
अक्टूबर ६, १५५६ में हेमू ने तरदी बेग खान (मुग़ल) को हारा कर दिल्ली पर विजय हासिल की. यही हेमू का राज्याभिषेक हुआ और उसे विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया.
लगभग ३ शताब्दियों के मुस्लिम शासन के बाद पहली बार (कम समय के लिए ही सही) कोई हिन्दू दिल्ली का राजा बना. भले ही हेमू का जन्म ब्राह्मण समाज में हुआ और उसको पालन पोषण भी पुरे धार्मिक तरीके से हुआ पर वह सभी धर्मो को समान मानता था, इसीलिए उसके सेना के अफगान अधिकारी उसकी पूरी इज्ज़त करते थे और इसलिए भी क्योकि वह एक कुशल सेना नायक साबित हो चूका था.
पानीपत के युद्ध से पहले अकबर के कई सेनापति उसे हेमू से युद्ध करने के लिए मना कर चुके थे, हलाकि बैरम खान जो अकबर का संरक्षक भी था, ने अकबर को दिल्ली पर नियंत्रण के लिए हेमू से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया. पानीपत के युद्ध में भी हेमू की जीत निश्चित थी, किन्तु एक तीर उसकी आँख में लग जाने से, नेतृत्व की कमी की वजह से उसकी सेना का उत्साह कमजोर पड़ गया और उसे बंदी बना लिया गया... अकबर ने हेमू को मारने से मना कर दिया किन्तु बैरम खान ने उसका क़त्ल कर दिया.
आज कई लोग इतिहास के इस महान नायक को भुला चुके है, किन्तु मुगलों को कड़ी टक्कर देने की वजह से ही हिंदुस्तान कई विदेशी आक्रमणों से बचा रहा... आप खुद ही सोचिये.. बिना किसी राजनैतिक प्रष्ठभूमि के इतनी उचाईयो को छुने वाले का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा.
आज भी हेमू की हवेली जर्जर हालत में रेवारी में है.... भारत ही शायद एक देश है जहा...सच्चे महानायकों की कोई कदर नहीं होती.

Bahmin Pandit King Samrat Raja The Great Dahir Pushkarna



ब्रह्मवीर ब्राह्मण राजा दाहिर सेन जी पिता चच और माता सुहानादी के घर में जन्मे.

पुष्करणा ब्राह्मण कुल में जन्मे दाहिर सेन सिंध के बादशाह थे बचपने से ही वीर, धीर व शेरों की मानिन्द साहसी बालक दाहिर सेन ने बारह वर्ष की अल्पायु में ही सिन्ध का राजपाठ संभाल लिया था।

सिंध के राजपूत राजा के पीछे कोई वंसज नहीं था इसलिए उन्होंने अपने प्रधान चच को राजा बना दिया जिनके पुत्र हुए दाहिर सेन,राजा चच के बाद उनके छोटे भाई चंदर ने सिंध पर 7 साल राज किया जिसमे उन्होंने बोद्ध धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया था जिसके कारन सिंध की जनता में काफी रोष हो गया था 7 साल बाद दाहिर ने सत्ता संभाली और सनातन धर्म को राज्यधर्म घोषित किया पर बोद्ध धर्म को पूर्ण संरक्षण दिया.

प्रजापालक इतना कि दाहिरसेन के शासनकाल में सिन्धु देश का हर नागरिक सुखी सम्पन्न व आनन्द में घूम रहा था।

सिंध का समुद्री मार्ग पूरे विश्व के साथ व्यापार करने के लिए खुला हुआ था। सिंध के व्यापारी उस काल में भी समुद्र मार्ग से व्यापार करने दूर देशों तक जाया करते थे और इराक-ईरान से आने वाले जहाज सिंध के देवल बन्दर होते हुए अन्य देशों की तरफ जाते थे। ईरानी लोगों ने सिंध की खुशहाली का अनुमान व्यापारियों की स्थिति और आने वाले माल अस्बाब से लगा लिया था। हालांकि जब कभी वे व्यापारियों से उनके देश के बारे में जानकारी लेते तो उन्हें यहीं जवाब मिलता कि पानी बहुत खारा है, जमीन पथरीली है, फल अच्छे नहीं होते ओर आदमी विश्वास योग्य नहीं है। इस कारण उनकी इच्छा देश पर आक्रमण करने की नहीं होती, किन्तु मन ही मन वे सिंध से ईष्र्या अवश्य करते थे।
अरब निवासी सिन्ध प्रदेश के लोगों का सुख चैन न देख सके और उन्होने हिंदुस्तान पर जिहाद की घोषणा कर दी.

सिंध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में नौ खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया पर हिंदू बहादुरों से पराजित हुए। जब अरब के खलीफा ने देखा कि उसके सैनिक सिन्धी बहादुरों से जीतने में असमर्थ हैं तो अंत में उस अरब खरीफा ने अपने युवा भतीजे और नाती, इमाम अदादीन मुहम्मद बिन कासिम को 710 ई. में सिन्ध प्रदेश की ओर रवाना किया। यह सेना समुद्री मार्ग से मकरान के रास्ते से सिन्ध राज्य की ओर बढ़ती चली आ रही थी और मोहम्मद बिना कासिम सिन्ध के देवल बंदरगाह पर पहुंचा। वहां पहुंचने के उपरान्त मोहम्मद बिना कासिम ने सोचा कि जांबाज सम्राट दाहर सेन से सीधे तरीके से तो वह कदापि विजयी नहीं हो पाएगा, उसने एक चाल चली.

वह यह कि उस समय भारत देश के अन्य प्रांतों की तरह सिन्ध प्रदेश में भी बौद्ध धर्म का प्रचार हो रहा था। उसने बौद्ध धर्म को मानने वाले मोक्षवास नामक हैदरपोल के राज्यपाल को अपने चंगुल में फंसा लिया, इस कदर कि मोक्षवास और देवल राजा ज्ञानबुद्ध ने अरबी सेनापित मोहम्मद बिन कासिम को अपना क्षेत्र,खाना पानी सौंपने के अलावा सिन्ध पर जीत हासिल करने के लिए अपनी सेनाएं तक सौंप दीं और मोक्ष्वास देशद्रोही हो गया.

मोहम्मद बिना कासिम के वारे-न्यारे हो गए और उसने हैदराबाद सिन्ध के नीरनकोट पर हमला कर दिया। फिर कासिम रावनगर की ओर बढ़ा। तदुपरान्त चित्तौर में बहादुर दाहिर सेने का अरबी सेनाओं से युद्ध हुआ। यह भयंकर युद्ध नौ दिन तक चलता रहा।इसमें क्षत्रिय,जाट और ठाकुरों ने भी सहयोग दिया और इन नौ दिनों में बहादुर सम्राट दाहिर सेन की सेना अरबियों का सफया करती हुई आगे बढ़ती जा रही थी। अरबी सेना पराजय के कगार पर थी।रात हुई तो युद्ध रुका और सब अपने सूबे में सू रहे थे तभी गद्दार राजा मोक्षवास अरबों की मदद के लिए अपनी फौज लेकर रणभूमि में पहुंच गया। यह युद्ध 21 दिनों तक चलता रहा और अंत में मुघलो की हार हुई.

उसके बाद कासिम ने सोचा दाहिर महिलाओ की इज्जत करते हे इसलिए वो महिला भेष में दाहिर के पास गए और मदद मांगी ये सुनते ही दाहर सेन दुश्मन की चाल को समझ नहीं पाया और अपनी महिला प्रजा की रक्षा के लिए उनके साथ जाते जाते अपनी सेना से काफी दूर आ गया तो गद्दारों ने दाहिरसेन के हाथी के सम्मुख आग के बाणरूपी गोले छोड़ना प्रारम्भ कर दिया।दाहिर सेन हाथी से गिरने पर भी लड़ते रहे पर अंत में शहीद हो गए.

कासिम की सेना उसके बाद सिंध पहुची जहा ब्रह्मिनी रानी और किले की महिलाओ ने तीरों और भालो से किया ये देख कर कासिम की सेना फिर से पीछे हट गयी,पर रानियों को नहीं पता था की मोक्श्वास एक गद्दार हो चूका था उसने महल में प्रवेश किया सहानुभूति लेकर और रात को धोके से अलोर के किले का दरवाजा खोल दिया ये जानकार सभी ब्रह्मिनी रानी और महिलाए जोहर के अग्निकुंड में कूद गयी.पर पीछे रह गयी दाहिर सेन की 2 बेटिया सूर्य अर परमाल.

ब्रह्मकन्य सूर्य और परमल के खून बदले को उबाल खा रहा था कासिम ने सोचा इन दोनों लडकियों को खालिफा को उपहार में भेज देगा तो खुश होंगे,ये सोचकर दोनों लडकियों को अरब भेजा वहा पहुचकर अरब के खलीफा ने दोनों ब्रह्मकन्य को देखा तो फ़िदा हो गया तभी सूर्य और परमाल ने अपनी नीति चलायी और बोली आपके सेनापति केसे हे खलीफा को आपको ये खुबसूरत फुल भेज तो हे पर उससे पहले वो खुद फुल के खुसबू ले चुके हे.

ये सुनकर खलीफा तिलमिला गया और हुक्म दिया की मीर कासिम को चमड़े के बोरी में सी कर अरब लाया जाए पर कासिम का दम घुट गया चमड़े के बोर में जब सीकर लाया गया वो मर गया जब लाश अरब पहुची दरबार में खलीफा के सामने सूर्य और परमाल ने हकीक़त बाताई की ये सब उनकी साजिश थी इतना कहकर दोनों बहेनो ने जय सिंध जय दाहिर बोलते बोलते एक दुसरे को खंजर मार कर शहीद हो गयी.

ये देख कर खलीफा बोला निश्चित ही हमने सिंध जेसा देश नहीं देखा जहा की महिला भी इतनी वफादार हो सिंध को पाने में हमने बहुत कुछ खो दिया.

वीर ब्राह्मण राजा दाहिर सेन उनकी ब्रह्मिनी रानी और वीरांगना सूर्य परमाल ब्राह्मण समाज का गौरव हे.

ब्राह्मण सदा अजय सनातन धर्म की जय
जय परशुराम

Bhagwan Parshuram भगवान परशुराम



भृगुश्रेष्ठमहर्षि जमदग्निद्वारा संपन्न पुत्रेष्टि-यज्ञसे प्रसन्न देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को विश्ववंद्यमहाबाहुपरशुराम का जन्म हुआ। वे भगवान् विष्णु के आवेशावतारथे।

पितामह भृगुद्वारा संपन्न नामकरण-संस्कार के अनन्तर राम, किंतु जमदग्निका पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किए रहने के कारण परशुराम कहलाए। आरंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीकके आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीकसे सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यपजीसे विधिवत् अविनाशी वैष्णव-मंत्र प्राप्त हुआ।

तदनंतर कैलाश गिरिश्रृंगस्थित भगवान् शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्यविजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरूभी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थमें किए कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान् विष्णु ने उन्हें त्रेतामें रामावतार होने पर तेजोहरणके उपरांत कल्पान्तपर्यंततपस्यारतभूलोक पर रहने का वर दिया।

श्रीमद्भागवत में दृष्टांत है कि गंधर्वराजचित्ररथको अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा-तट पर जल लेने गई माता रेणुका आसक्त हो गई। तब हवन-काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्निने पत्नी के आर्यमर्यादाविरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचारवशपुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दी।

अन्य भाइयों द्वारा साहस न कर पाने पर पिता के तपोबलसे प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेदनएवं समस्त भाइयों का वध कर डाला, और प्रसन्न जमदग्निद्वारा वर मांगने का आग्रह किए जाने पर सभी के पुनर्जीवित होने एवं उनके द्वारा वध किए जाने संबंधी स्मृति नष्ट हो जाने का ही वर मांगा।

कथानक है कि हैहयवंशाधिपतिका‌र्त्तवीर्यअर्जुन [सहस्त्रार्जुन] ने घोर तप द्वारा भगवान् दत्तात्रेयको प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाएं तथा युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया था। संयोगवश वन में आखेट करते वह जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुंचा और देवराज इंद्र द्वारा उन्हें प्रदत्त कपिला कामधेनु की मदद से हुए समस्त सैन्यदलके अद्भुत आतिथ्य सत्कार पर लोभवशजमदग्निकी अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया।

कुपित परशुरामजीने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएं काट डालीं व सिर को धड से पृथक कर दिया। तब सहस्त्रार्जुनके दस हजार पुत्रों ने प्रतिशोधवशपरशुराम की अनुपस्थिति में ध्यानस्थ जमदग्निका वध कर डाला। रेणुका पति की चिताग्निमें प्रविष्ट हो सती हो गई। क्षुब्ध परशुरामजीने प्रतिशोधवशमहिष्मतीनगरी पर अधिकार कर लिया, हैहयोंके रुधिर से स्थलंतपंचक क्षेत्र में पांच सरोवर भर दिए और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुनके पुत्रों के रक्त से किया।

उन्होंने अश्वमेघमहायज्ञ कर सप्तद्वीपयुक्तपृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी और इंद्र के समक्ष शस्त्र त्यागकर सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग [महेंद्रा] पर आश्रम बनाकर रहने लगे। उन्होंने त्रेतायुगमें रामावतार के समय शिवजी का धनुष भंग होने पर आकाश-मार्ग द्वारा मिथिलापुरीपहुंच कर प्रथम तो स्वयं को विश्व-विदित क्षत्रियकुलद्रोहीबताते हुए
बहुत भाँति तिन्हआँख दिखाए और क्रोधान्ध हो सुनहु राम जेहिशिवधनुतोरा।
सहसबाहुसम सो रिपु मोरा॥ तक कह डाला। फिर, वैष्णवी शक्ति का हरण होने पर संशय मिटते ही वैष्णव धनुष श्रीराम को सौंप दिया और क्षमा-याचना कर
अनुचित बहुत कहेउअज्ञाता।क्षमहुक्षमामंदिरदोउ भ्राता॥
तपस्या के निमित्त वन-गमन कर गए-
कह जय जय जय रघुकुलकेतू।भृगुपतिगये वनहिंतप हेतू॥।
वाल्मीकीय रामायण में दशरथनंदनश्रीराम ने जमदग्निकुमारपरशुराम का पूजन किया, और परशुराम ने श्रीरामचंद्रजीकी परिक्रमा कर आश्रम की ओर प्रस्थान किया।

उन्होंने श्रीराम से उनके भक्तों का सतत् सान्निध्य एवं चरणारविंदोंके प्रति सुदृढ भक्ति की ही याचना की। वे शस्त्रविद्याके महान् गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्याप्रदान की थी। ब्रह्मावैवर्तपुराण में कथानक है कि कैलाश स्थित भगवान् शंकर के अन्त:पुर में प्रवेश करते समय गणेशजीद्वारा रोके जाने पर बलपूर्वक प्रवेश का प्रयास किया। तब गणपति ने उन्हें स्तम्भित कर अपनी सूँड में लपेटकर समस्त लोकों में भ्रमण कराते हुए गोलोकमें भगवान् श्रीकृष्ण का दर्शन कराके भूतल पर पटक दिया। चेतनावस्थामें आने पर कुपित परशुरामजीद्वारा किए गए फरसे के प्रहार से गणेशजीका एक दाँत टूट गया, जिससे एकदंतकहलाए। उन्होंने एकादश छन्दयुक्तशिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्रम्भी लिखा।
इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-
ॐ जामदग्न्याय्विद्महे महावीराय्धीमहि,तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।
वे पुरुषों के लिए आजीवन एक पत्नी-व्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि-पत्नी अनसूया,अगस्त्य-पत्नी लोपामुद्राव प्रिय शिष्य अकृतवणके सहयोग से नारी-जागृति-अभियान का विराट संचालन भी किया। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपदग्रहण कर शस्त्रविद्याप्रदान करना शेष है।



भगवान परशुराम ने ही की थी भगवान राम राज्य स्थापना की भूमिका । भगवान परशुराम और राम दोनों हीं भगवान विष्णु हीं थे ..फिर कौन विष्णु हमारे इसको कॊ लेकर कैसा संघर्ष ? 

कुछ प्रसिद्ध रामायण वक्ताओं के मुख से कई बार यह सुनाई देता है कि परशुराम क्रोधी थे, जनकपुर में धनुष भंजन के बाद जब वह यज्ञ शाला में पहुंचे तो वे बड़े क्रुद्ध हुए। लक्ष्मण ने उन्हें खूब छकाया, जब भगवान श्रीराम ने उनके धनुष में तीर का संधान किया तो राम के सम्मुख नतमस्तक होकर चले गए आदि-आदि। 

परशुराम दशावतारों में हैं। क्या उन्हें इतना भी आभास नहीं होगा कि यह धनुष किसने तोड़ा? क्या वह साधारण पुरुष हैं? 

श्रीराम द्वारा धनुष तोड़ने के बाद समस्त राजाओं की दुरभिसंधि हुई कि श्रीराम ने धनुष तो तोड़ लिया है, लेकिन इन्हें सीता स्वयंवर से रोकना होगा। वे अतः अपनी-अपनी सेनाओं की टुकड़ियों के साथ धनुष यज्ञ में आए समस्त राजा एकजुट होकर श्रीराम से युद्ध के लिए कमर कस कर तैयार हो गए। 

धनुष यज्ञ गृह युद्ध में बदलने वाला था, ऐसी विकट स्थिति में वहां अपना फरसा लहराते हुए परशुराम जी प्रकट हो गए। वे राजा जनक से पूछते हैं कि तुरंत बताओ कि यह शिव धनुष किसने तोड़ा है, अन्यथा जितने राजा यहां बैठे हैं.... मैं क्रमशः उन्हें अपने परशु की भेंट चढ़ाता हूं। 

तब श्रीराम विनम्र भाव से कहते हैं- हे नाथ शंकर के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। परशुराम-राम संवाद के बीच में ही लक्ष्मण उत्तेजित हो उठे, विकट लीला प्रारंभ हो गई। संवाद चलते रहे लीला आगे बढ़ती रही परशुराम जी ने श्रीराम से कहा अच्छा मेरे विष्णु धनुष में तीर चढ़ाओ... तीर चढ़ गया, परशुराम जी ने प्रणाम किया और कहा मेरा कार्य अब पूरा हुआ, आगे का कार्य करने के लिए श्रीराम आप आ गए हैं। गृह युद्ध टल गया। 

सारे राजाओं ने श्रीराम को अपना सम्राट मान लिया, भेंट पूजा की एवं अपनी-अपनी राजधानी लौट गए। श्रीराम के केंद्रीय शासन नियमों से धर्मयुक्त राज्य करने लगे। देश में शांति छाने लगी अब श्रीराम निश्चिंत थे क्योंकि उन्हें तो देश की सीमाओं के पार से संचालित आतंक के खिलाफ लड़ना था, इसीलिए अयोध्या आते ही वन को चले गए। 

पंचवटी में लीला रची गई, लंका कूच हुआ। रावण का कुशासन समाप्त हुआ, राम राज्य की स्थापना हुई। अतः राम राज्य की स्थापना की भूमिका तैयार करने वाले भगवान परशुराम ही थे।

Histroy of Great Indian Pandit Brahmin Hindu King Hamu Chandra Vikramaditya Bhargwa



Histroy of Great Indian Pandit King............हेमू ( सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य ) को जानते है आप...?

सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य यही पूरा नाम है हेमू का. हेमू इतिहास के भुला दिए गए उन चुनिन्दा महानायकों में शामिल है जिन्होंने इतिहास का रुख पलट कर रख दिया था. हेमू ने बिलकुल अनजान से घर में जन्म लेकर, हिंदुस्तान के तख़्त पर राज़ किया. उसके अपार पराक्रम एवं लगातार अपराजित रहने की वजह से उसे विक्रमादित्य की उपाधि दी गयी.
हेमू का जन्म एक ब्राह्मण श्री राय पूरण दस के घर १५०१ में अलवर राजस्थान में हुआ, जो उस वक़्त पुरोहित (पूजा पाठ करने वाले) थे, किन्तु बाद में मुगलों के द्वारा पुरोहितो को परेशान करने की वजह से रेवारी (हरियाणा) में आ कर नमक का व्यवसाय करने लगे. 
काफी कम उम्र से ही हेमू, शेर शाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट (गन पावडर हेतु) उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिताजी के साथ हो लिए थे. सन १५४० में शेर शाह सूरी ने हुमायु को हरा कर काबुल लौट जाने को विवश कर दिया था. हेमू ने उसी वक़्त रेवारी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव राखी, जो आज भी रेवारी में ब्रास, कोंपर, स्टील के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है.
शेर शाह सूरी की १५४५ में मृत्यु के पाश्चर इस्लाम शाह ने उसकी गद्दी संभाली, इस्लाम शाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचाना और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यो के लिए अपना सलाहकार नियुक्त किया. हेमू ने अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लाम शाह का विश्वासपात्र बन गया... इस्लाम शाह हेमू से हर मसले पर राय लेने लगा, हेमू के काम से खुश होकर उसे दरोगा-ए-चौकी (chief of intelligence) बना दिया गया. 
१५४५ में इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद उसके १२ साल के पुत्र फ़िरोज़ शाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिल शाह सूरी ने मार कर गद्दी हथिया ली. आदिल ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया. आदिल अय्याश और शराबी था... कुल मिला कर पूरी तरह अफगानी सेना का नेतृत्व हेमू के हाथ में आ गया था.
हेमू का सेना के भीतर जम के विरोध भी हुआ.. पर हेमू अपने सारे प्रतिद्वंदियो को एक एक कर हराता चला गया.
उस समय तक हेमू की अफगान सैनिक जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था.. अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासको को विदेशी मानते थे, इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफगान दोनों में काफी लोकप्रिय हो गया था. 
हुमायु ने जब वापस हमला कर शेर शाह सूरी के भाई को परस्त किया तब हेमू बंगाल में था, कुछ समय बाद हुमायूँ की मृत्यु हो गई.. हेमू ने तब दिल्ली की तरफ रुख किया और रास्ते में बंगाल, बिहार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की कई रियासतों को फ़तेह किया. आगरा में मुगलों के सेना नायक इस्कंदर खान उज्बेग को जब पता चला की हेमू उनकी तरफ आ रहा है तो वह बिना युद्ध किये ही मैदान छोड़ कर भाग गया ,इसके बाद हेमू ने 22 युद्ध जीते और दिल्ली सल्तनत का सम्राट बना।
हेमू ने अपने जीवन काल में एक भी युद्ध नहीं हारा, पानीपत की लडाई में उसकी मृत्यु हुई जो उसका आखरी युद्ध था.
अक्टूबर ६, १५५६ में हेमू ने तरदी बेग खान (मुग़ल) को हारा कर दिल्ली पर विजय हासिल की. यही हेमू का राज्याभिषेक हुआ और उसे विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया.
लगभग ३ शताब्दियों के मुस्लिम शासन के बाद पहली बार (कम समय के लिए ही सही) कोई हिन्दू दिल्ली का राजा बना. भले ही हेमू का जन्म ब्राह्मण समाज में हुआ और उसको पालन पोषण भी पुरे धार्मिक तरीके से हुआ पर वह सभी धर्मो को समान मानता था, इसीलिए उसके सेना के अफगान अधिकारी उसकी पूरी इज्ज़त करते थे और इसलिए भी क्योकि वह एक कुशल सेना नायक साबित हो चूका था. 
पानीपत के युद्ध से पहले अकबर के कई सेनापति उसे हेमू से युद्ध करने के लिए मना कर चुके थे, हलाकि बैरम खान जो अकबर का संरक्षक भी था, ने अकबर को दिल्ली पर नियंत्रण के लिए हेमू से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया. पानीपत के युद्ध में भी हेमू की जीत निश्चित थी, किन्तु एक तीर उसकी आँख में लग जाने से, नेतृत्व की कमी की वजह से उसकी सेना का उत्साह कमजोर पड़ गया और उसे बंदी बना लिया गया... अकबर ने हेमू को मारने से मना कर दिया किन्तु बैरम खान ने उसका क़त्ल कर दिया.
आज कई लोग इतिहास के इस महान नायक को भुला चुके है, किन्तु मुगलों को कड़ी टक्कर देने की वजह से ही हिंदुस्तान कई विदेशी आक्रमणों से बचा रहा... आप खुद ही सोचिये.. बिना किसी राजनैतिक प्रष्ठभूमि के इतनी उचाईयो को छुने वाले का व्यक्तित्व कैसा रहा होगा.
आज भी हेमू की हवेली जर्जर हालत में रेवारी में है.... भारत ही शायद एक देश है जहा...सच्चे महानायकों की कोई कदर नहीं होती.

Bhagwan Parshuram Sena



कश्मीर के पंडितो ने कभी नहीं सोचा होगा की जिस हिन्दू धरम की रक्ष्या के लिए वे आपनी जान दे रहे है वे हिन्दू आज उनको कायर बोलकर गाली देगे... मेने काफ्फी बार आपनी बात फसबूक पर डाली लकिन कुछ ही लोगो ने मेरा साथ दिया नहीं तो लगबग सभी ने मुझे गली दी........ तो हिन्दू धर्म ने पंडित जाती को कवल गाली के इलावा कुछ नहीं दिया........ आज कोई हिन्दू नहीं उत्तेर दे रहा मेरी बात का क्यों ?? न ही तो कोई इज्जत है पंडित लोगो के हिन्दू धरम मे और न कोई औकात, न ही सहयोग ........ जिस जगह पंडित लोगो खुश है उनको दुसरो से कोई मतलब नहीं है तो क्यों न मै इस्लाम काबुल करू ?? 


मैं पूछता हूं उनसे जो आपने आप को केवल हिंदू समझते है कि कोन सा राज्य है जहा पर हिंदू ही हिंदू को नहीं मरते ........ आओ और देखो हरियाणा में यहाँ तो मुस्लिम ना के बराबर है........ तो क्या यहाँ जुल्म, हत्या, चोरी, आदि नहीं होती ?? अभी लगभग १ साल पहले 2006 मे यहाँ मिर्चपुर में एक हिंदू बहुसंख्क जाति ने अल्पसंख्क जाति कि माँ-बहन एक कर दी......... यहाँ दलितो के मकान हिंदू जाटो ने जला दिए.... उनकी लड़की के साथ बलात्कार किया.... जिन्दा जला दिया....... जब रोहतक कोर्ट में केस गया तो बनिया जज को धमकी मिली कि यदि जाटो के हक में फेसला नहीं दिया तो तुम्हे मार देगे......... जज ने आपनी शिकायत गृह विभाग में कि तब केस रोहणी दिल्ही कोर्ट में पहोचआ.............. ९२ लोग जेल में गए..... काफ्फी ग्वाह  मार दिए गए........... अब ८५ लोग बय्जत बरी हो गए है........... आज हालत ऐसी है कि मिर्चपुर में कोई दलित परिवार नहीं है .... काफ्फी दिन वे लोग मजनू टिल्ला गुरुद्वरा में रहे........... अब बरी जाटो ने बोला है कि जो दलित गवाही देगा वो मरेगा.......... 


२-९-२०११ को में पाकिस्तान से आये हिन्दुओ से मिला उनसे बाते कि पूछा कि आप लोगो को पाकिस्तान में क्या दिकत है तो उन्होंने बताया कि मुस्लिम पाकिस्तान में हिन्दुओ को कुछ नहीं मानते... ना ही हिन्दुओ का आदर करते.... पाकिस्तान में हर सरकारी पद पर ज्यादातर मुस्लिम लोग है .... हिन्दुओ कि जमीनओ पर मुस्लिम कब्ज़ा कर लेते है.... हिन्दुओ कि बहन-बेटियों को कुछ नहीं समझते.... पुलिस भी मुस्लिमो का साथ देती है..... हिंदू देवी देवताओ का नाम लेने पर मुस्लिम हिन्दुओ को गाली देते है.... यदि कोई हिंदू.... मुस्लिम लड़की से शादी कर ले तो मुस्लिम एक होकर उस हिंदू को मार देते है........... आदि .............." उसकी बात सुनकर मुझे लगा कि ये तो हरियाणा कि बात कर रहे है जहाँ मुस्लिम का रोल हिंदू जाट कर रहे है और हिन्दुओ का रोल पण्डित और अन्य जातिया कर रही है...... यहाँ भी भगवान परशुराम का नाम लेना गुनाह है..... 


कभी आप लोगो का हरियाणा में आना हो तो कर्पया आप यहाँ २-३ दिन या ज्यादा दिनों तक रहे और दिल से देखे गे की हम इस स्वंत्रत भारत में नहीं बल्कि गुलामी से भी बुरे दिनओ में जी रहे है! यहाँ आप देखे गे के यहाँ एक बहुशंकाक जाति है जो और किसी जाति को इंसान ही नहीं मानती! आप यहाँ देखे गे के केवल एक ही जाति के लोग आपको यहाँ पर सभी सरकारी नोकरी में ...मिलेगे और आरक्षण  भी मांगते दिखाई देगे! यहाँ वो जाति हिंदू जाट है जो और सभी जाति के लोगो को कुचल रही है और सबसे बड़ा दुश्मन ये यहाँ पण्डित जाति के लोगो को मानते है. तो जब हम आपने ही देश में हिन्दुओ के बिच में ही सुरक्षित नहीं है तो आप किस आजादी की बात करते है . यहाँ पर सभी ऊची पोस्टों पर आपको उसी जाति के लोग मिलेगे. यहाँ का मुख्मंत्री, पॉलिश आदि में आपको केवल जाट ही दिखाई देगा. सबसे ज्यादा जमीन और सरकारी नोकरी जाटो के पास है हरियाणा में फिर भी ये लोग आर्क्सन मांगते दिखाई देते है. और जातियां हरियाणा को छोड कर दुसरे राज्यों में जा रही है.

इस देश की जनसँख्या में सबसे ज्यादा तादात पण्डित जाति की है और भारत में केंद्रीय सरकारी नोकरी और आई. ए. एस. सबसे ज्यादा पण्डित जाति के लोग है ! जहाँ भी ज्ञान की बात और प्रधान बनाने की बात होती है वहाँ भी पण्डित ही सबसे ज्यादा है लेकिन पण्डित जाति के लोगो में एकता नहीं है! इसलिए हमे दूसरी जाति कुचलती है! यदि हम एक हो जाये तो हम से बढकर कोई नहीं है ना ही ज्ञान में और ना ही युद्ध में 

आज का हिंदू :- १. वैसे तो गाय को माता कहता है लेकिन जब बछड़े को गो साला में २०० रूपये देने के डर सड़क पर ही छोड देते है 
२. गाय जब किसी खेत में कुछ घास आदि खा ले तो उसको डंडे मारते है 
३. गाय दूध ना दे तब दवाई कि सुई लगाते है 
४. बछड़ा खुला कर दूध पी ले तो गाय और बच्चे दोनों को डंडे मरते हो 
५. जब मुल्ले गाय खाते है तो हिंदू को बुरा लगता है और हिन्दुओ कि गो सालाओ से खुद हिंदू ही बीमार और बछडओ को मुल्...लो को चोरी छुपे बेच देते है ..........
६. ७०% हिंदू माँस खाते है ....... क्या सभी जीव एक जेसे नहीं है!
७. हिंदू पुलिस वाले २००-२०० रुपयों में गायओ से भरा ट्रक छोड देते है 
८. जातिवाद करते है ... भगवान तक को जाति में बाट देते है ........
९. कभी भी एकता नहीं थी और ना है ( किसी भी युग के इहिताश को देख लो ) पहेले भी मुल्लो और अंग्रजो ने राज किया और आज भी फिल्मो और राजनीती में वे ही राज कर रहे है ! 
१०. महाभारत में भाई ही आपस में लड़ रहे थे ........ रामायण में भी हिंदू ही आपस में लड़ रहे थे ........... और आज भी दिग्विग्य, त्रिवेदी, लालू आदि हिन्दुओ से ही लड़ रहे है


मै  हरियाणा से हु यहाँ हिन्दू जाट लोगो ने कहा हम बलवान है ! उतर प्रदेश में राजपूत लोगो ने कहा की हम बलवान है! जमू कश्मीर में मुसलमान लोगो ने कहा की हम बलवान है... मै कहता हु की वक्त बलवान है......

“किसकी है मजाल छेड़े जो “दिलेर” को 
 “गर्दिश” में हो तो “कुत्ते” भी घेर लेते है “शेर” को !”






ब्राह्मण

ब्राह्मण में ऐसा क्या है कि सारी दुनिया ब्राह्मण के पीछे पड़ी है। इसका उत्तर इस प्रकार है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी न...