#आधुनिक_भारत_के_परशुराम_बाबा_बरहमेश्वर
अभी देश को आजद हुए दो वर्ष ही हुए थे दसवें महिने के 22 तारीख 1949 ये दिन बिहार के संदेश पाँचायत के खोपिरा गावँ के लिये दिवाली जैसा था!!
गावँ के जमींदार और मुखिया बाबू रामबालक सिंह जी के यँहा आधुनिक भारत के परशुराम और गावँ वालों के लिये छोटे मुखिया और बरहमेश्वर दादा ने जन्म लिया था!!
नाम रखा गया बरहमेश्वर नाथ सिंह !!
बरहमेश्वर दादा से उनकी 1 बड़ी बहन थी बाद में दादा के 2 छोटे भाई भी हुए!!
जिंदगी ने छोटी से उम्र में ही कसौटी पर तोलना सुरु कर दिया जब दादा 4 से 5 साल के थे तब उनकी माता जी ने उनको उस रूम में सुला दिया जिस में अनाजों के बोरे रखे गए थे!!
अनाज की सारी बोरिया दादा के ऊपर गिर गयी लेकिन वो सकुशल बच गये बचते कैसे नही आधुनिक भारत के परशुराम जो थे!!
उनका लालन पालन गावँ में ही हुआ उन्होंने प्रथमिक शिक्षा पास के ही बेलऊर मध्य विद्यालय से प्राप्त किया !!
बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के मालिक थे हमेशा क्लास में अग्रणी आते थे!!
माध्यमिक शिक्षा के बाद वो उच्च शिक्षा आगे के शिक्षा के लिये वो आरा गए जँहा से कुछ दिनों के पश्चात उनके मौसा जी उनको उच्च शिक्षा के लिये पटना लेकर चले गए!!
उन्होंने दसवीं की परीक्षा HD हरप्रसाद दास जैन कॉलेज से किया!!
इसके बाद बरहमेश्वर नाथ जी ने 11वीं में साइंस से पढ़ाई से पटना के सर ZD कॉलेज पाटलिपुत्र में एडमिशन लिया और 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से उतीर्ण हुए!!
अब तक उनके मन ने देश की सेवा सैनिक बन कर करने की भावना ने दृढ़ संकल्प कर लिया था!!
17 साल की उम्र में दादा N D A के परीक्षा में बैठे और उन्होंने परीक्षा पूरी तरह तय कर ली उनका वायु सेना में बिहार का पहला ऑफिसर बनना तय था लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था !!
उनको तो सदी के सबसे बड़े महानायक और किसान नेता के रूप में स्थापित करने की तैयारी थी नियति की!!
इसी वर्ष आपसी रंजिश के एक मुकदमे में दादा का नाम डाल दिया गया!!
और इस अंधे कानून ने देश सेवा से ओत प्रोत एक 17 साल के नाबालिक बच्चे को जेल भेज दिया!!
इन्ही कारणों से बरहमेश्वर नाथ सिंह जी का वायु सेना में जाने का सपना और उनकी दिन रात की मेहनत बेरंग हो गई!!
इसी साल वो जेल से बाहर निकले और संदेश पँचायत के लोगों ने सर्वसम्मति से यानी निर्विरोध मुखिया चुन कर अपने छोटे मुखिया को ब्ररहमेश्वर मुखिया बना दिया!!
ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह पूरे बिहार के सब से कम उम्र में मुखिया बन चुके थे वो भी मात्र 17 साल की उम्र में !!
आपको उम्र में टेक्निकल गरबर लेगगा लेकिन उनका सोर्टफिकेट उम्र उनके वास्तविक उम्र से लगभग दो साल जयदा था जो नई नई आजादी पाए देश मे एक सामान्य सी बात थी!!
ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह अब संदेश प्रखंड के खोपिरा पंचायत के साथ साथ अन्य आस पास के जगहों में अपनी न्याय करने की क्षमता और न्याय के लिये किसी भी चट्टान से टकराजाना लोकप्रिय होने लगे !!
उन्होंने अपने पँचायत में दारू गाजा ताश जुआ आदि पर पूर्णतया रोक लगा दी !!
जब कुछ सरकारी कोटे से बटने के लिये आता तो ब्रह्मेश्वर दादा उनको हमेशा गरीबों के बीच मे बाँटते जिस में वो दलितों का खास ख्याल रखते और हमेशा किसी भी योजना में वो घर से कुछ न कुछ लगा कर खर्च करते!!
एक बार मुखिया लोगों की BDO के साथ मीटिंग चल रही थी जँहा पर किसी अन्य प्रखंड के मुखिया के साथ BDO ने अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया बदले में ब्रह्मेश्वर दादा ने उसे वँही पर पिट दिया!!
यँहा पर उनका प्रतिकार जाती के कारण नही न्याय अन्याय के कारण था बाद में दादा को इस केस में भी जेल जाना पड़ा!!
उन्होंने मुखिया रहते हुए बहुत से आदर्श स्थापित किये जो आज भी किसी नेता के लिये असंभव ही है!!
उन्होंने अपने जवानी के दिनों में जब नक्सल आंदोलन का कोई नाम निशान नही था तब बहुत से ऐसे कार्य किये जो ब्रह्मेश्वर दादा के वास्तविक चरित्र को पहचानने में आपकि मद्दत कर सकते हैं!!
दादा ने मुखिया रहते खोपिरा माध्यमिक स्कूल का निर्माण करबाया खोपिरा पँचायत भवन का निर्माण करवाया साथ मे यात्रियों के ठहरने के लिये भगवानपुर में एक ठहराव केंद्र बनाया जिसमे उन्होंने खुद के देख रेख में घर से टेंडर से ज्यादा पैसे लगा कर इन सब का निर्माण कराया!!
जब कभी देवभूमि जाने का मन हो तो खोपिरा जरूर जाइये आपके सबसे बड़े देवता के क्रर्मों से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा उनकी ईमानदारी और दूरदर्शिता का एक बहुत बड़ा प्रमाण खोपिरा माध्यमिक विद्यालय है जो उनके जवानी के दिनों से लेकर आज तक वैसे का वैसा खड़ा है!!
जबकि उनके श्राद्ध कर्म से 1 दिन पहले वँहा पर अग्नि कांड हुआ था जिसमें 21 सिलेंडर फट गए थे!!
छोटी से उम्र में ही ब्रह्मेश्वर दादा अपने साहस न्याय और दूरदर्शीता के कारण पूरे भोजपुर में प्रशिद्ध हो गये!!
उनके पास किसानों और मजदूरों दोनो के लिये विजन था वो कृषि मजदूरों को मजदूर नही भूमिहीन किसान के नाम से बुलाते थे!!
गरीब दलित वर्ग को अपने पुत्र के समान मानते थे और वो कहते थे कि भूमिहीन किसान का देहरी किसी श्रमिक से ज्यादा होना चाहिये!!
लेकिन न्याय के देवता के रहते सवर्णों के साथ अन्याय का दौर ससस्त्र नक्सल अत्याचार सुरु हो गया जो अब खेत लूटने से बढ़ते हुए नर्षनहारों के दौर तक जा चुका था!!
ब्रह्मेश्वर दादा का कहना था हिंसा को खत्म करना ही सबसे बड़ा अंहिसा है!!
जब हिंसा सरकार और सिस्टम के द्वारा आश्रय प्राप्त हो तो उसके खिलाप चुप रहना नपुंसकता है!!
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